व्यवस्था सुधारने के लिए नालियों की सफाई के खर्चे का ऑडिट जरूरी

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक क्या पिछले कुछ वर्षों में पटना की नालियों की सही ढंग से सफाई हुई थी? इस मद में कितने खर्च हुए और उसका कितना सदुपयोग हुआ? पटना के लोगों की यह आम धारणा है कि नाले-नालियों की समुचित सफाई नहीं होती. वैसे तो थोड़े ही समय में उम्मीद से अत्यंत अधिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 4, 2019 6:02 AM

सुरेंद्र किशोर

राजनीतिक विश्लेषक
क्या पिछले कुछ वर्षों में पटना की नालियों की सही ढंग से सफाई हुई थी? इस मद में कितने खर्च हुए और उसका कितना सदुपयोग हुआ? पटना के लोगों की यह आम धारणा है कि नाले-नालियों की समुचित सफाई नहीं होती. वैसे तो थोड़े ही समय में उम्मीद से अत्यंत अधिक वर्षा भारी जलजमाव का मूल कारण रहा, पर नालों की पूरी सफाई हुई होती, तो लोगों को थोड़ा कम कष्ट होता.
पटना की साफ-सफाई को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ साल पहले पिछले मेयर के समक्ष सार्वजनिक रूप से अपना गुस्सा जाहिर किया था, पर कुव्यवस्था ऐसी है जो सुधरने का नाम ही नहीं लेती. आये दिन नगर निगम के विवादास्पद कामों को लेकर खबरें आती रहती हैं.
नगरवासियों के इस बार के अपार कष्ट को देखते हुए राज्य सरकार को चाहिए कि वह भ्रष्टाचार और काहिली के लिए जिम्मेदार अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे ताकि लोगों के ‘घाव’ पर थोड़ा मलहम लग सके. आश्चर्य है कि भारी खर्च के बावजूद मुहल्लों से संप हाउसों तक पानी नहीं पहुंचते. कहीं पहुंचते भी हैं तो अधिकतर संप हाउस काम नहीं करते.
1975 की बाढ़ का एक दृश्य
पश्चिमी पटना की एक संपन्न बस्ती में सहायता पहुंचाने वालों की नाव एक मकान से आकर टिकी. छत पर एक स्त्री खड़ी थी. बगल में दो छोटे- छोटे बच्चे. भूख और प्यास से कुम्हालाये हुए चेहारों पर आतंक और बेबसी के भाव . 48 घंटे के बाद उस तरफ मदद देने वाले लोग पहुंचे थे. छत और नाव के बीच की दूरी कुछ अधिक थी और हाथ से किसी चीज को पकड़ पाना संभव नहीं था. कार्यकर्ताओं ने कहा कि कोई रस्सी लटका कर उसके सहारे पानी ऊपर खींच ले.
रस्सी घर में नहीं थी. स्त्री की आंखों से निरंतर आंसू गिर रहे थे. कुछ न मिलने पर उसने अपनी साड़ी नीचे लटका दी. कार्यकर्ता ने कोने में बंधी गांठ खोली तो उसमें एक परची मिली. अंग्रेजी में लिखा था कि ‘मेरे पति दौरे पर हैं’. राहत पाकर उसे कुछ तसल्ली हुई होगी. उसका ख्याल था कि अगर उसके पति घर पर होते तो उसे इस तरह की स्थिति से न गुजरना पड़ता, लेकिन जिनके पति घर पर थे उनकी भी तो वही हालत थी.
कानून के दुरुपयोग के खिलाफ
अनुसूचित जाति और जनजाति उत्पीड़न से संरक्षण कानून पर सुप्रीम कोर्ट का ताजा निर्णय आ गया है. अब यह कानून अपने मूल रूप में है. उससे पहले 20 मार्च, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस कानून के तहत गिरफ्तारी से पहले सरसरी तौर पर पुलिस आरोप की सत्यता की जांच कर ले. खैर अब अलग ढंग से इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के उपाय करने होंगे. अपने मुख्य मंत्रित्वकाल में मायावती ने इस कानून के दुरुपयोग को रोकने का ठोस उपाय किया था.
उसका सकारात्मक असर भी हुआ था. इस उद्देश्य से राज्य मुख्यालय ने तब उत्तरप्रदेश के सारे जिलों के आरक्षी अधीक्षकों को सर्कुलर भेजा था. उसमें दुरुपयोग रोकने का उपाय बताया गया था. सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्णय से उत्पन्न नयी परिस्थिति से निबटने के लिए मायावती शासनकाल के उस सर्कुलर को अन्य राज्य मंगवा लें ताकि न किसी को गलत ढंग से फंसाया जा सके और न ही अनुसूचित जाति-जनजाति के किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई ज्यादती हो.
यासिन मलिक पर मुकदमा
जेकेएलएफ के अध्यक्ष यासिन मलिक पर 1990 में भारतीय वायु सेना के चार अफसरों की हत्या का मुकदमा चल रहा है. वह अभी जेल में बंद है. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई होगी. सामूहिक हत्या यह एक ऐसा मुकदमा है जिसके आरोपित यासिन यह स्वीकार कर चुका है कि उसने हत्याएं की थीं. उसकी स्वीकारोक्ति दिल्ली की एक बड़ी पत्रिका में बहुत पहले छप चुकी है.
पत्रिका के साथ इंटरव्यू में यासिन मलिक ने उन हत्याओं को औचित्यपूर्ण भी ठहराया था. यह पता नहीं चल सका है कि उस पत्रिका के संवाददाता को गवाह के रूप में कोर्ट में पेश करने का अभियोजन पक्ष का कोई इरादा है या नहीं. करीब 30 साल पहले हुई इन हत्याओं के मुजरिम को यह व्यवस्था हाल तक पालती-पोसती रही. 2006 में तो यासिन मलिक ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात भी की थी.
सोशल मीडिया पर जाली खबरों को रोकने के इसे आधार से जोड़ने का सुझाव आया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि सरकार इंटरनेट के दुरुपयोग नहीं रोक सकती तो हम इस पर विचार करेंगे. जानकार लोग कह रहे हैं कि सोशल मीडिया को आधार से जोड़ने के लिए संबंधित कानून में संशोधन करना पड़ेगा.
जो कुछ करना पड़े ,पर सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकना ही होगा. इस कारगर मीडिया को प्रामाणिक बनाये रखना अधिक जरूरी है. यह आम लोगों की आवाज का एक कारगर प्लेटफाॅर्म है.

Next Article

Exit mobile version