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दंगा व उन्माद फैलाने के मामलों में 40 फीसदी भूमिका सोशल साइट्स की

पटना : इन दिनों सोशल साइट्स का गलत उपयोग भी बड़े स्तर पर शुरू होने लगा है. राज्य में दंगा और उन्माद फैलाने के मामलों में सोशल साइट्स की भूमिका बढ़ गयी है. राज्य के सभी 1064 थाना क्षेत्रों से प्रत्येक महीने इस तरह के औसतन 200 मामले सामने आते हैं. इनमें 35-40 फीसदी मामले […]

पटना : इन दिनों सोशल साइट्स का गलत उपयोग भी बड़े स्तर पर शुरू होने लगा है. राज्य में दंगा और उन्माद फैलाने के मामलों में सोशल साइट्स की भूमिका बढ़ गयी है. राज्य के सभी 1064 थाना क्षेत्रों से प्रत्येक महीने इस तरह के औसतन 200 मामले सामने आते हैं. इनमें 35-40 फीसदी मामले ऐसे होते हैं, जिनमें दंगा-फसाद या उन्माद या किसी तरह का हंगामा कराने या फैलाने में सोशल साइट्स की भूमिका बेहद अहम रही है.

ऐसे मामलों में सोशल साइट्स की वजह से कई बार स्थिति बिगड़ी है. इसमें धार्मिक उन्माद या नफरत से जुड़े मामले ज्यादा होते हैं, जिन्हें सोशल साइट्स की मदद से आसानी से वायरल कर दिया जाता है. परंतु राज्य के थानों में सोशल साइट्स से जुड़े मामलों की रोकथाम करने के लिए कोई ठोस तंत्र मौजूद नहीं है.
पूरे राज्य में सिर्फ पटना स्थित मुख्यालय में ही साइबर एक्सपर्ट की टीम है, जो इस तरह के मामले की शिकायत मिलने पर कार्रवाई करती है. पूरे राज्य के लिए यह टीम नाकाफी साबित हो रही है. नियमानुसार राज्य के किसी थाने में अगर आइपीसी की धारा 295 या 153 (ए) के अंतर्गत मुकदमा दर्ज होता है, तो इसकी एफआइआर दर्ज करने से पहले संबंधित थाने को विधि विभाग से परामर्श लेना आवश्यक होता है.
राज्य स्तर पर साइबर क्राइम यूनिट का गठन कर दिया गया है. कुछ जिलों में इसका गठन किया गया है, जल्द ही सभी जिलों में इसका गठन हो जायेगा. राज्य स्तर पर गठित यूनिट की जिम्मेदारी लगातार ऐसी साइट्स या किसी पोस्ट पर नजर रखने की भी होती है. ऐसे कई संदिग्ध मामलों में संबंधित साइट या पोस्ट को वायरल होने से पहले ही बंद कर दिया जाता है.
-जितेंद्र कुमार (एडीजी, पुलिस मुख्यालय)

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