रविशंकर उपाध्याय @ पटना
यह कहानी संघर्षों से भरी है. हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल-कॉलेज से ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई करने वाली अर्चना कुमारी ने शादीशुदा और एक बच्चे की मां होने के बावजूद अपने हौसले से कोर्ट में न्यायिक अधिकारी बनने का सफर तय किया है. जिस कोर्ट में उनके पिता गौरीनंदन चपरासी की नौकरी किया करते थे, उसी कोर्ट में अब जज बिटिया फैसले सुनाएगी. राजधानी के कंकरबाग की रहनेवाली अर्चना कुमारी ने संघर्षों से यह मुकाम हासिल किया है. बिहार न्यायिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा में अर्चना कुमारी का चयन हुआ है. साधारण से परिवार में जन्मी अर्चना के पिता गौरीनंदन जी सोनपुर सिविल कोर्ट जिला छपरा में चपरासी के पद पर थे. शास्त्रीनगर कन्या हाईस्कूल से उन्होंने 12 वीं तक की शिक्षा ग्रहण की. इसके बाद पटना विवि से ग्रेजुएशन किया. इसी दौरान पिता की दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारी अर्चना पर आ गयी. उन्होंने पढ़ाई भी की और कोचिंग में पढ़ा कर परिवार भी चलाया.
पति ने पुणे विवि में एलएलबी में कराया एडमिशन
पटना मेडिकल कॉलेज में क्लर्क राजीव रंजन से विवाह के बाद उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से पुणे यूनिवर्सिटी से एलएलबी और बीएमटी लॉ कालेज पूर्णिया से एलएलएम किया. अपने दूसरे प्रयास में उन्होंने बिहार न्यायिक सेवा में सफलता प्राप्त की है.अर्चना कहती हैं कि जज बनने का सपना तब देखा था जब वह सोनपुर जज कोठी में एक छोटे से कमरे में परिवार के साथ रहती थीं. उन्होंने बताया कि छोटे से कमरे से उन्होंने जज बनने का सपना देखा जो आज पूरा हुआ है. उन्होंने कहा कि पिता की मृत्यु के बाद बहुत कष्ट झेले लेकिन मैंने सपना पूरा करने के प्रयास नहीं छोड़े. उन्होंने कहा कि शादी के बाद लॉ किया, एलएलएम किया और दिल्ली में ज्यूडिशियरी की तैयारी छात्रों को करायी. उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि पिता की मृत्यु के बाद मां ने हर मोड़ पर साथ दिया, पति ने सहयोग किया और भाई-बहन ने ऊर्जा दी, जो मेरे लिए हौसला बनी. उन्होंने कहा कि नारी जो ठान ले वह कर सकती है. कठिनाइयां हर सफर में आती हैं लेकिन हौसला नहीं छोड़ना चाहिए.