दस साल के भीतर निर्माण ढहने पर विशेष सजा का हो प्रावधान

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक यह कहानी जीटी रोड की है. यह सड़क दिल्ली को कोलकाता से जोड़ती है. फिर भी इसकी हालत देखिए. गत माह यह खबर आयी कि कर्मनाशा नदी पर बना पुल ढह गया. दस साल ही पहले यह पुल बन कर तैयार हुआ था. घटिया निर्माण के कारण इसके चार में से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 3, 2020 9:05 AM
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
यह कहानी जीटी रोड की है. यह सड़क दिल्ली को कोलकाता से जोड़ती है. फिर भी इसकी हालत देखिए. गत माह यह खबर आयी कि कर्मनाशा नदी पर बना पुल ढह गया. दस साल ही पहले यह पुल बन कर तैयार हुआ था.
घटिया निर्माण के कारण इसके चार में से तीन पिलर क्षतिग्रस्त हो गये. दिल्ली से जांच टीम आयी. टीम ने पहली नजर में यह पाया कि पिलर में लगी लोहे की छड़ें न सिर्फ घटिया स्तर की हैं, बल्कि अपर्याप्त संख्या में हैं. याद रहे कि इस पुल को सौ साल तक ठीकठाक अवस्था में रहना था, पर घटिया निर्माण तथा भारी वाहनों के कारण 10 साल में ही बर्बाद हो गया, जबकि उस पुल के बगल में अंग्रेजों के जमाने में बना पुल अब भी चालू अवस्था में है.
जानलेवा लापरवाही
सामरिक दृष्टि से भी इतने महत्वपूर्ण मार्ग के पुल के निर्माण में इतनी बड़ी लापरवाही की हिम्मत वही ठेकेदार और इंजीनियर कर सकते हैं जिन्हें लगता है कि उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकता.
आश्चर्य है कि यह सब ऐसे मंत्री के मंत्रालय से जुड़े निर्माण कार्य में हो रही है जिस मंत्री को कई लोग कार्यकुशल बताते नहीं थकते. घटिया निर्माण के कारण समय से पहले संरचनाओं के ढह जाने की कहानी न तो नयी है और न ही किसी एक सरकार या विभाग से जुड़ी घटना है. घटिया निर्माण करने वाले और करवाने वाले इंजीनियरों , ठेकेदारों तथा अन्य संबंधित लोगों के खिलाफ विशेष सजा का प्रावधान कानून में करना होगा.
साख कायम रखनी हो तो निराधार आलोचनाओं से बचें
फिल्म अभिनेत्री पायल रोहतगी ने पिछले दिनों नेहरू-गांधी परिवार को लेकर आपत्तिजनक बातें कहीं और लिखी थीं. उन्हें कुछ दिनों के लिए इस कारण जेल में रहना पड़ा था.
उन पर केस हो गया है.उन पर तो केस हुआ,पर आपत्तिजनक बातें लिखने वाले अन्य अनेक लोगों पर केस नहीं होते. इसलिए वे बच जाते हैं. इससे उनका मनोबल बढ़ जाता है. वे सोशल मीडिया का दुरुपयोग करते रहते हैं. जवाहरलाल नेहरू के पूर्वज के बारे में ऐसी आपत्तिजनक बातें लिखना जिनका कोई सबूत नहीं है,घोर निंदनीय है. नेहरू के बारे में कहने-लिखने के लिए बहुत सारी बातें हैं.
कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक बातें, पर, वे सब जानने के लिए तो किसी को पढ़ना पड़ेगा. खूब पढ़ना पड़ेगा. उसकी जहमत कितने लोग उठाते हैं ? इसलिए चर्चा में बने रहने के लिए सुनी-सुनाई अपुष्ट बातों को लेकर कुछ -कुछ लिखते रहते हैं. ऐसा अन्याय नेहरू ही नहीं , बल्कि कुछ अन्य नेताओं के साथ होता रहता है. सोशल मीडिया इस दौर का उपहार है. इसका सदुपयोग करिए. अन्यथा,इस माध्यम पर जब कड़ा पहरा लग जायेगा, तो असुविधा होने लगेगी.
जिम्मेदार पिता,पर दोष माता पर !
बच्ची जनने के कारण महिला की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी. यह खबर पटना जिले की धनरूआ से आयी है. ऐसी खबरें आती ही रहती हैं. ऐसी हत्याएं जागरूकता की कमी के कारण होती हैं.
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार कोई पत्नी शिशु कन्या या शिशु बालक को जन्म देती है,यह बात पति की उत्पत्ति ग्रंथि यानी आनुवंशिकी पर निर्भर करता है. बालिका या बालक के मामले में सिर्फ पत्नी की कोई भूमिका नहीं होती, किंतु समाज में फैली गलत धारणा के कारण शिशु कन्या को जन्म देने वाली स्त्री ही कई बार प्रताड़ित की जाती हैं. यदि इसको लेकर जमीनी स्तर जागरूकता अभियान चलाया जाये, तो कई घर उजड़ने से बच जायेंगे.
और अंत में
हाल की देशव्यापी हिंसक घटनाओं के पीछे सिमी और पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया जैसे अतिवादी संगठनों के नाम आ रहे हैं. याद रहे कि 2001 में सिमी पर जब प्रतिबंध लग गया, तो सिमी के लोगों ने ही इंडियन मुजाहिद्दीन और पीएफआइ बनाये. पिछले कुछ दशकों में देश के अनेक प्रमुख नेताओं और बुद्धिजीवियों ने सिमी के बचाव में बयान दिये. उन नेताओं से यह उम्मीद की जा सकती है कि वे अब इन संगठनों कब बचाव नहीं करेंगे. अच्छा तो यह होता कि वे अपनी पिछले बयानों के लिए अफसोस जाहिर कर देते.

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