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मुजफ्फरपुर आश्रय गृह कांड : सीबीआई ने SC से कहा, बच्चों की हत्या के सबूत नहीं

नयी दिल्ली : केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि बिहार के मुजफ्फरपुर आश्रय गृह में बच्चों की हत्या के कोई सबूत नहीं मिले हैं. जांच एजेंसी ने शीर्ष अदालत को बताया कि आश्रय गृह परिसर से दो कंकाल बरामद हुए थे, लेकिन फाॅरेंसिक जांच में पता चला कि […]

नयी दिल्ली : केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि बिहार के मुजफ्फरपुर आश्रय गृह में बच्चों की हत्या के कोई सबूत नहीं मिले हैं. जांच एजेंसी ने शीर्ष अदालत को बताया कि आश्रय गृह परिसर से दो कंकाल बरामद हुए थे, लेकिन फाॅरेंसिक जांच में पता चला कि वे एक महिला और एक पुरूष के थे. प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई ओर न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने इस मामले की जांच के बारे में सीबीआई की प्रगति रिपोर्ट स्वीकार कर ली और साथ ही जांच दल के दो अधिकारियों को इससे मुक्त करने की भी अनुमति प्रदान कर दी.

जांच एजेंसी की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि बच्चों से बलात्कार और यौन हिंसा के आरोपों की जांच का काम पूरा हो गया है और संबंधित अदालतों में आरोप पत्र भी दाखिल किये जा चुके हैं. वेणुगोपाल ने कहा कि जिन बच्चों के बारे में बताया जा रहा था कि उनकी हत्या कर दी गयी है, उन्हें खोज लिया गया है और वे जीवित हैं. अटार्नी जनरल ने कहा कि सीबीआई ने बिहार में 17 आश्रय गृहों के मामलों की जांच की और इनमें से 13 मामलों में आरोप पत्र दाखिल कर दियेगये हैं, जबकि चार मामलों में प्रारंभिक जांच की गयी और बाद में उन्हें बंद कर दिया गया क्योंकि उनमें किसी प्रकार की गड़बड़ी के साक्ष्य नहीं मिले.

सीबीआई ने इन मामलों की जांच की प्रगति रिपोर्ट सोमवार को न्यायालय में पेश की थी. जांच एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इन चार मामलों में किसी भी प्रकार का अपराध होने के साक्ष्य नहीं मिले और इसलिए इनमें कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी. जांच ब्यूरो ने यह भी कहा था कि बिहार सरकार को जांच रिपोर्ट के नतीजे सौंपने के साथ ही उससे विभागीय कार्रवाई करने और संबंधित गैर सरकारी संगठनों का पंजीकरण रद्द करने तथा उन्हें काली सूची में डालने की कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है.

मुजफ्फरपुर में एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित आश्रय गृह में अनेक लड़कियों का कथित रूप से यौन शोषण करने और उनके साथ हिंसा का मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की एक रिपोर्ट से उजागर हुआ था. इस रिपोर्ट के बाद ही शीर्ष अदालत में एक जनहित याचिका दायर की गयी. इसमें इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने और न्यायालय की निगरानी में स्वतंत्र जांच एजेंसी से इन आरोपों की जांच कराने का अनुरोध किया गया था. शीर्ष अदालत ने इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी.

इससे पहले, बिहार पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी. यही नहीं, न्यायालय ने इस आश्रय गृह की संवासनियों के साथ यौन हिंसा की घटनाओं में बाहरी व्यक्तियों की संलिप्तता के आरोपों की जांच का भी निर्देश दिया था. न्यायालय ने बाद में इस मामले को बिहार की अदालत से दिल्ली के साकेत अदालत परिसर में पोक्सो कानून से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली अदालत में स्थानांतरित कर दिया था.

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