फुलवारी शरीफ: नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के विरुद्ध विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों की एक साझा सम्मेलन अमीर-ए-शरीयत हजरत मौलाना मोहम्मद वली रहमानी साहब की अध्यक्षता में इमारत शरिया, फुलवारी शरीफ के कान्फ्रेंस हॉल में आयोजित हुई. जिसमें उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने एकजुट हो कर सीएए , एनआरसी एवं एनपीआर का विरोध किया एवं कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 भारतीय संविधान की आत्मा एवं उस की बुनियादी धाराओं के विरुद्ध है.
अमीर-ए-शरियत मौलाना मोहम्मद वली रहमानी ने किसी भी हाल में सीएए, एनपीआर एवं एनआरसी को कबूल नहीं करेंगे.उन्होंने कहा कि आगामी 25 जनवरी को होने वाले मानव श्रृंखला और 29 जनवरी को भारत बंद का सब लोग समर्थन करेंगे. बैठक का संचालन कार्यवाहक नाजिम इमारत शरिया मौलाना शिब्ली कासमी ने की. इस मौके पर हम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, कांग्रेस नेता सदानंद सिंह , पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, राष्ट्रीय प्रधान महासचिव एजाज अहमद, सीपीआई के सत्यनारायण सिंह, माले के धीरेंद्र सिंह, पूर्व मंत्री नागमणि सहित विभिन्न धार्मिक संगठनों के नेता एवं बामसेफ के पदाधिकारी भी उपस्थित थे.
बैठक में सभी दलों के नेताओं ने इस बात का फैसला लियाकि 25 जनवरी को मानव श्रृंखला तथा 29 जनवरी को बामसेफ द्वारा आयोजित भारत बंद को समर्थन दिया जायेगा और खुलकर लोग सड़कों पर उतरेंगे.बैठक में कहा गया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 में बिना किसी दस्तावेज के गैर कानूनी तौर पर आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी एवं ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता दी गयी है. इस सूची से केवल मुसलमानों को अलग रखा गया है जो सरासर धर्म के आधार पर विभाजन एवं भेदभाव है. इसलिए केंद्र सरकार से हमारी मांग है कि वह तुरंत इस कानून को वापस ले. दूसरी बात यह है कि सरकार ने इस कानून मे धार्मिक आधार पर प्रताड़ना को आधार बनाया है अगर यह बात सही है और प्रताड़ना ही आधार है तो भारत के पड़ोसी देश केवल पाकिस्तान, बंग्लादेश एवं अफगानिस्तान ही नहीं है, बल्कि नेपाल, श्रीलंका, तिब्बत, चीन एवं मयांमार इत्यादि भी हैं जहां से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होने वालों ने पलायन किया है, कानून में उनका भी उल्लेख होना चाहिए.
श्रीलंका में हजारों की संख्या में तमिल प्रताड़ित हुए हैं म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया गया. तिब्बत में दलाई लामा एवं उन के अनुयाइयों को प्रताड़ित किया गया जिसकी वजह से वह आज भी भारत में शरण लिए हुए हैं. नेपाल से सैकड़ों गोरखा पलायन कर के आये हैं. उनका उल्लेख न करना यह बतलाता है कि यह कानून बड़े पैमाने पर त्रुटियों एवं धार्मिक पक्षपात से भरा हुआ है एवं संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है.
इस बैठक में एनपीआर को लेकर भी चर्चा हुई और इस पर भी चिंता प्रकट करते हुए कहा गया कि केंद्र सरकार ने अप्रैल से एनपीआर का एलान कियाहैं, हम समझते हैं कि यह सरकार का धोखा है और वह एनआरसी के प्रावधानों को एपीआर में सम्मिलित कर के अपनी पॉलिसी लागू करना चाहती है, इसलिए एनपीआर भी देश के लिए सही नहीं है, क्योंकि एनपीआर भी एनआरसी का ही पहला चरण है. इसलिए हम एनपीआर का भी विरोध करते हैं और केंद्र सरकार से मांग करते हैं कि एनपीआर को भी वापिस लिया जाए. इसी प्रकार हम बिहार सरकार से भी मांग करते हैं कि व एनपीआर की मौजूदा शक्ल के बायकाट का स्पष्ट ऐलान करे.
मीटिंग में सर्व सहमति से निम्नलिखित प्रस्ताव भी पारित हुए
केंद्र सरकार की पालिसी है कि जो लोग कागज के द्वारा अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकेंगे उन को सरकार द्वारा प्रताड़ित किया जायेगा. इस में केवल मुसलमान नहीं फसेंगे बल्कि सभी कमजोर, दलित, आदिवासी, पिछड़े, अनपढ़, गरीब किसान मजदूर, अनुसूचित जाती एवं जनजाति, बेघर, रास्तों एवं सड़कों के किनारे गुजारा करने वाले अनाथ एवं बेसहारा लोग, आश्रमों में रहने वाली विधवा माता बहनें आदि इस कानून के चपेट में आयेंगे. वह लोग जो रोजाना कमाते खाते हैं और जिनके लिए बाप दादा के जन्म के पेपर लाना असंभव है.
इसके अलावा सभी राजनीतिक पार्टियां से अपीलकरतेहुए कहा गया कि जिला, ब्लॉक एवं पंचायत स्तर प्रदर्शन में भाग लें एवं इस कानून के विरुद्ध उस समय तक आंदोलन जारी रखें जबतक कानून वापस नले लिया जाये. बिहार सरकार से मांग किया गया एनपीआर का मुकम्मल बायकाट करे क्योंकि एनपीआर एनआरसी का ही पहला चरण है. यह देश के नागरिकों को दूसरे दर्जे का शहरी बनाने का नापाक मंसूबा है. सभी हिंदू समाज के लोगों से आग्रह किया गया की एकजुट हो कर इस कानून के विरोध में खड़े हों. असम में एनआरसी से बाहर रह गये भारतीयों के लिए कोई स्थायी समाधान निकाले जाएं. पूरे देश में इस कानून के विरुद्ध जहां भी प्रदर्शन हो रहा है हम सब उसके साथ हैं एवं उस का सपोर्ट करते हैं. यूपी में प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध सरकार जुल्म अत्याचार का विरोध किया गया.