जाति-व्यवस्था को युगानुकूल बनाने की आवश्यकता : सुशील मोदी

पटना : इंडिका, पटना की ओर से आइआइएम, बंगलुरू के पूर्व प्राध्यापक आर. वैद्यानाथन की पुस्तक ‘कास्ट एज सोशल कैपिटल’ पर आयोजित परिचर्चा में बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जाति व्यवस्था अव्यवस्था का शिकार हो गयी है, जिसे युगानुकूल बनाने की जरूरत है. जातीय गणना के लिए बिहार विधानमंडल की ओर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 25, 2020 5:37 PM

पटना : इंडिका, पटना की ओर से आइआइएम, बंगलुरू के पूर्व प्राध्यापक आर. वैद्यानाथन की पुस्तक ‘कास्ट एज सोशल कैपिटल’ पर आयोजित परिचर्चा में बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जाति व्यवस्था अव्यवस्था का शिकार हो गयी है, जिसे युगानुकूल बनाने की जरूरत है. जातीय गणना के लिए बिहार विधानमंडल की ओर से सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया गया है, मगर यह चुनौतीपूर्ण कार्य है. 2011 से 13 के बीच करायेगये सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना में 46 लाख जातियां दर्ज की गयीं, जिनमें 8 करोड़ त्रुट्टियां पायीगयी. 6.70 करोड़ के परिमार्जन के बावजूद 1.40 करोड़ अशुद्धियां रह गयीं, जिसके कारण उसका प्रकाशन संभव नहीं हो सका.

सुशील मोदी ने कहा कि 1901 में हुई जातीय गणना में 1,646 तो 1931 में 4,147 जातियां दर्ज हुई थी. 1941 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण जातीय गणना नहीं हो सकी. फिलहाल जातियां अनेक उपजातियों में बंटी हुई हैं. कर्मणा न होकर जन्मना होने से जाति सामाजिक बुराइयों में तब्दील हो गयी है. 1871 में हुई पहली जाति गणना के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी जाति का वर्ण (श्रेणी) बदलने के लिए आवेदन दिया था.

उन्होंने कहा कि पहली जातीय गणना के बाद सामाजिक भेदभाव, असामनता व हाथ से काम करने वालों को सम्मान नहीं देने के कारण वैश्य व शुद्र श्रेणी के लोग अपने को ब्राह्मण और क्षत्रिय घोषित करने लगे. आर्य समाज के प्रभाव से जब बिहार में अहिरों ने जनेऊ पहनना शुरू किया तो बेगूसराय, लखीसराय में उनका विरोध हुआ. हरेक जाति अपने को इतिहास के नायकों से जोड़ने लगी. शराब, मांस का सेवन नहीं करने, जनेऊ पहन और श्राद्ध की अवधि सवर्णों की तरह कम करके ऊंची जाति होने का दावा करने लगी.

उन्होंने कहा कि जाति के जकड़न का लाभ उठा कर अंग्रेजों ने पृथक निर्वाचन की व्यवस्था कर दी. हिंदू समाज को तोड़ने के लिए दलितों को दियेगये पृथक निर्वाचन के अधिकार का गांधी जी ने विरोध किया जिसके बाद पूणा समझौता में तय हुआ कि दलितों का पृथक क्षेत्र होगा, मगर उन्हें समाज के सभी लोग वोट देंगे. सैकड़ों वर्षों के प्रयास के बावजूद जाति व्यवस्था और उसकी बुराइयों को समाप्त करने में आज भी सफलता नहीं मिली है.

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