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पटना : सरकार राज्य में निर्यात को देगी बढ़ावा : सुशील मोदी

सभी जिलों में उत्पादों की पहचान कर किया जायेगा निर्यात पटना : डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि आगामी वित्तीय वर्ष के दौरान बिहार में निर्यात को बढ़ावा दिया जायेगा. सभी जिलों से एक से दो उत्पादों की पहचान की जायेगी और इसका निर्यात कराया जायेगा. निर्यात को बढ़ावा देने के लिए […]

सभी जिलों में उत्पादों की पहचान कर किया जायेगा निर्यात
पटना : डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि आगामी वित्तीय वर्ष के दौरान बिहार में निर्यात को बढ़ावा दिया जायेगा. सभी जिलों से एक से दो उत्पादों की पहचान की जायेगी और इसका निर्यात कराया जायेगा. निर्यात को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार हर संभव मदद करेगी. उन्होंने इसके लिए सभी बैंकों को भी हर तरह से मदद करने के लिए कहा है.
डिप्टी सीएम ने नाबार्ड के स्टेट फोकस पेपर 2020-21 को शहर के ज्ञान भवन में जारी करने के दौरान ये बातें कहीं. नाबार्ड ने आगामी वित्तीय वर्ष 2020-21 में बिहार के लिए एक लाख 36 हजार करोड़ की ऋण क्षमता का आकलन किया है. इसमें 292 करोड़ निर्यात क्षेत्र के लिए रखा गया है. उन्होंने कहा कि लैंडलॉक स्टेट होने की वजह से देश के कुल निर्यात में बिहार की हिस्सेदारी आधा प्रतिशत से भी कम है.
इसे बढ़ाने के लिए राज्य सरकार खास रणनीति तैयार करेगी. वित्तीय 2014-15 में बिहार ने सात लाख 74 हजार मीटरिक टन विभिन्न तरह के खाद्यान्नों का निर्यात किया था. इसका मूल्य एक हजार 748 करोड़ रुपये है. 2018-19 में यह बढ़कर नौ लाख 35 हजार मीटरिक टन का निर्यात किया गया, जिसका मूल्य करीब ढाई हजार करोड़ है. इसमें सबसे ज्यादा 32 प्रतिशत बासमती चावल, 29 प्रतिशत मक्का व 6.11 प्रतिशत गेहूं समेत अन्य खाद्यान्न शामिल हैं. बिहार में निर्यात के क्षेत्र में 46 प्रतिशत की ग्रोथ रेट दर्ज की गयी है.
ज्ञान भवन में नाबार्ड का राज्य क्रेडिट सेमिनार
राज्य के विकास में बैंकों की भूमिका अहम : मोदी
डिप्टी सीएम ने कहा कि राज्य के विकास में बैंकों की
भूमिका बेहद अहम है. मंदी से उबारने में भी बैंकों की भूमिका बेहद अहम हो जाती है. इसके लिए ग्रामीण इलाकों में खासतौर से बैंकों की शाखाओं को बढ़ाने की जरूरत है.
वर्तमान में आठ हजार 432 पंचायतों में महज तीन हजार 700 में ही अभी बैंकों की शाखाएं हैं, जो आधा से कम हैं. उन्होंने कहा कि मछली के उत्पादन में राज्य अभी राष्ट्रीय औसत से 40 हजार मीटरिक टन कम है. इस वर्ष यह पूरा हो जायेगा. इसके बाद बाहर से दूसरे राज्यों से मछली के आयात की जरूरत नहीं पड़ेगी.
उन्होंने कहा कि बैंकों के स्तर से किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की संख्या लगातार घटती जा रही है. 2014-15 में नयी केसीसी 36 लाख 14 हजार थी, जो 2018-19 में घटकर 19 लाख 55 हजार हो गयी है. यह बेहद चिंता का विषय है. बैंकों की इस उदासीनता के कारण ही किसानों को महंगी ब्याज दर पर निजी वित्तीय संस्थानों से ऋण लेनी पड़ती है. ऐसी ही स्थिति फसल ऋण में भी है. 2018-19 में सिर्फ 18 हजार 445 करोड़ का ही फसल ऋण किया गया है.
नाबार्ड के साथ समीक्षा की जरूरत
इस दौरान वित्त विभाग केप्रधान सचिव डॉ एस सिद्धार्थ ने कहा कि कॉमर्शियल बैंकों की कृषि के क्षेत्र में ऋण देने की रुचि घटती जा रही है. इसका कारण पता करने के लिए प्रत्येक महीने पांच सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले बैंकों की नाबार्ड के साथ समीक्षा करने की जरूरत है. इस पहल को जल्द शुरू करने के लिए नाबार्ड से कहा गया है. इस कार्यक्रम को पशु ए‌वं मत्स्य संसाधन विभाग की प्रधान सचिव एन विजयलक्ष्मी, ग्रामीण विकास विभाग के सचिव अरविंद चौधरी, आरबीआइ के क्षेत्रीय निदेशक देवेश लाल, नाबार्ड के सीजीएम अमिताभ लाल व एसबीआइ के सीजीएम महेश गोयल समेत अन्य लोगों ने भी संबोधित किया.

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