Loading election data...

पढ़ें राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर का लेख: अयोध्या धाम के गुणवत्तापूर्ण विकास को लेकर अब अटकलें तेज

सुरेंद्र किशोर,राजनीतिक विश्लेषकजून,1984 में इंडियन फेडरेशन आॅफ वर्किंग जनर्लिस्ट का अयोध्या में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था. संगठन के प्रधान के विक्रम राव के अनुसार इस अवसर पर दक्षिण भारत की कुछ महिला पत्रकार भी रामलला का मंदिर देखने गयी थीं. टाट के तले रामलला को देखकर उन पत्रकारों की आंखों में आंसू आ गये थे. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 7, 2020 6:10 AM

सुरेंद्र किशोर,राजनीतिक विश्लेषक
जून,1984 में इंडियन फेडरेशन आॅफ वर्किंग जनर्लिस्ट का अयोध्या में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था. संगठन के प्रधान के विक्रम राव के अनुसार इस अवसर पर दक्षिण भारत की कुछ महिला पत्रकार भी रामलला का मंदिर देखने गयी थीं. टाट के तले रामलला को देखकर उन पत्रकारों की आंखों में आंसू आ गये थे. लौट कर उनमें से कई पत्रकारों ने उस पर लेख लिखे. विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित उन लेखों को पढ़कर देश-दुनिया का ध्यान मंदिर निर्माण की जरूरत की ओर गया.पहले और बाद की घटनाएं तो इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं.

सुप्रीम कोर्ट के गत साल के फैसले के बाद अब वहां भव्य राम मंदिर का निर्माण होने जा रहा है. पत्थर तरासने का काम तो अयोध्या में वर्षों से चल रहा है और लगभग पूरा हो चला है. मंदिर के निर्माण के साथ ही अयोध्या का भी त्वरित विकास होगा, पर कैसा विकास होगा ? सुव्यवस्थित होगा या बेतरतीब ढंग से होगा ? उस पर केंद्र और राज्य सरकार को विशेष ध्यान देना होगा. उम्मीद है कि सरकारें ध्यान देंगी ही. पास के राज्य बिहार और नेपाल का भी अयोध्या से विशेष लगाव है. मंदिर बन जाने के बाद उम्मीद है कि यहां से अधिक लोग जायेंगे अयोध्या नगरी का ऐसा विकास हो कि वहां जाने वालों को कोई असुविधा न हो.

शराब तस्करों के पीछे निजी जासूसों को लगाएं

बिहार में शराब बंदी कितना प्रभावकारी है ? इस बात की पड़ताल पटना जिला प्रशासन ने मजिस्ट्रेट से कराने की निर्णय किया है. ठीक ही है. वह भी करा लीजिए, किंतु राज्य सरकार को चाहिए कि वह नमूने के तौर पर किसी साख वाली निजी या सरकारी खुफिया एजेंसी से शराबबंदी की मौजूदा स्थिति की जांच कराये.यह कि तस्करी के पीछे कितनी बड़ी ताकतें हैं. राज्य सरकार को छोड़कर शराब-बालू की तस्करी की कहानी सब जानते हैं. यह कि इस गलत कारोबार को नीचे से ऊपर तक के कितने छोटे -बड़े अफसरों,नेताओं और अपराधियों का समर्थन व सहयोग मिला हुआ है. फिर भी बड़े अपराधी नहीं पकड़े जा रहे हैं. लगता है कि राज्य की शीर्ष सत्ता के समक्ष कोई निजी खुफिया एजेंसी ही सही तस्वीर पेश कर सकती है.

इसे ही तो कहते हैं राजनीति !

बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या से पीड़ित राज्यों का सम्मेलन सितंबर, 1992 में दिल्ली में हुआ था.कांग्रेसी सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री एसबी चव्हाण की सदारत में असम, बंगाल, बिहार, त्रिपुरा, अरुणाचल और मिजोरम के मुख्यमंत्री और मणिपुर, नगालैंड एवं दिल्ली के प्रतिनिधि थे. सम्मेलन में सर्वसम्मत प्रस्ताव पास किया गया कि सीमावर्ती जिलों के निवासियों को परिचयपत्र दिये जायें. सम्मेलन की राय थी कि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में अवैध प्रवेश से देश के विभिन्न भागों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन सहित अनेक गंभीर समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं.इस समस्या से निबटने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा मिलकर एक समन्वित कार्ययोजना बनाने पर भी सहमति बनी,किंतु 1992 और 2020 के बीच समस्या और भी गंभीर हुई. इस समस्या पर आज कांग्रेस की राय कितनी अलग है ? आखिर क्यों ? क्योंकि इसे ही राजनीति कहते हैं.

कम खर्च में अधिक लाभ

पटना के पास करीब चार किलोमीटर लंबी एक खास तरह की सड़क है.दानापुर स्टेशन के पास की सरारी गुमटी से निकल कर यह सड़क कोरजी होते हुए राष्ट्रीय हाइवे -98 से मिलती है.फिलहाल यह सड़क आरइओ के जिम्मे है. इसका चैड़ीकरण हो जाये तो यह दो राष्ट्रीय राजमार्गों को जोड़ देगी.दानापुर-बिहटा मार्ग यदि एनएच-98 से जुड़ जाये, तो उस इलाके में जाम की समस्या कम हो जायेगी. कम लागत, अधिक लाभ ! हां,उसके लिए सरारी गुमटी पर रोड ओवर ब्रिज बनाना होगा जो एनएच -98 को दानापुर -बिहटा एनएच से जोड़ देगा. राज्य की ऐसी जो भी अन्य छोटी ग्रामीण सड़कें यदि दो एसएच या दो एनएच को आपस में जोड़ती हों ,तो उनके विकास से अधिक लाभ मिलेगा. हालांकि खर्च काफी कम होगा. यह दो नदियों को जोड़ने जैसा ही होगा.

किसान संतान को मिले नौकरी में तरजीह

केंद्र सरकार का अनुमान है कि अगले पांच साल में अच्छे वेतन वाली पांच करोड़ नौकरियां मिलेंगी.

इन नौकरियों में से कुछ प्रतिशत नौकरियों को दो खास तबकों के लिए आरक्षित कर देनी चाहिए.

यदि किसान परिवार के लोगों को इन नौकरियों में तरजीह मिले तो कृषि का भी विकास तेज होगा.

यदि ऐसे परिवारों के लिए कुछ सीटें रिजर्व हों जिन परिवारों को अब तक कोई भी सरकारी नौकरी या ठेका नहीं मिला हो तो अर्थव्यवस्था बेहतर होगी. गरीबी कम करने में सरकार को मदद मिलेगी.

और अंत में

एक खबर के अनुसार आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘एनी व्हेयर लैंड रजिस्टेशन’ की सुविधा उपलब्ध है. यानी, वहां राज्य के भीतर किसी भी रजिस्ट्री आॅफिस में किसी अन्य जिले की जमीन का भी रजिस्ट्रेशन संभव है. ऐसी जमीन के विवरण के कंप्यूटरीकरण के बाद ऐसा संभव हुआ है. बिहार में भी कंप्यूटरीकरण बड़े पैमाने पर हो चुका है. कुछ बाकी है तो वह भी जल्द ही पूरा हो जायेगा. उसके बाद यहां भी नेट बैंकिंग की तरह कहीं भी ‘नेट निबंधन’ की सुविधा राज्य सरकार चाहे तो बड़े पैमाने पर मिल सकती है.

Next Article

Exit mobile version