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मुजफ्फरपुर आश्रयगृह मामला: अदालत ने ब्रजेश ठाकुर, 11 अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई

नयी दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक आश्रयगृह में कई लड़कियों के यौन शोषण और शारीरिक उत्पीड़न के मामले में ब्रजेश ठाकुर को अंतिम सांस तक कारावास में रखने की सजा सुनाई. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ ने मामले में 11 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई. […]

नयी दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक आश्रयगृह में कई लड़कियों के यौन शोषण और शारीरिक उत्पीड़न के मामले में ब्रजेश ठाकुर को अंतिम सांस तक कारावास में रखने की सजा सुनाई. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ ने मामले में 11 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई. अदालत ने ठाकुर को 20 जनवरी को पॉक्सो कानून और भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की संबंधित धाराओं के तहत बलात्कार तथा सामूहिक बलात्कार का दोषी ठहराया था.

अदालत ने अपने 1,546 पृष्ठों के फैसले में ठाकुर को धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 324 (खतरनाक हथियारों या माध्यमों से चोट पहुंचाना), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), उकसाने, पॉक्सो कानून की धारा 21 (अपराध होने की जानकारी देने में विफल रहने) और किशोर न्याय कानून की धारा 75 (बच्चों के साथ क्रूरता) के तहत भी दोषी ठहराया है. सीबीआई ने ठाकुर को ‘‘शेष जीवन तक’ कारावास दिये जाने की मांग करते हुए कहा था कि दोषियों के प्रति उदारता नहीं दिखाई जानी चाहिए क्योंकि मामले में पीड़िताएं नाबालिग है.

सरकारी वकील अमित जिंदल ने अदालत से कहा था कि मामले में दोषी ठहराये गये पांच दोषियों-ठाकुर, दिलीप कुमार वर्मा, रवि रोशन, विकास कुमार और विजय कुमार तिवारी को उनके शेष जीवन तक कारावास की सजा दी जानी चाहिए। मुजफ्फरपुर के बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के पूर्व प्रमुख वर्मा, सीडब्ल्यूसी के सदस्य कुमार और अन्य आरोपी गुड्डू पटेल, किशन कुमार और रामानुज ठाकुर को पॉक्सो कानून के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न, और भादंसं एवं पॉक्सो कानून के तहत आपराधिक षड्यंत्र, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, चोट पहुंचाने, बलात्कार के लिए उकसाने और किशोर न्याय कानून की धारा 75 के तहत दोषी ठहराया गया था.

दो आरोपियों राम शंकर सिंह और अश्विनी को आपराधिक षड्यंत्र और बलात्कार के लिए उकसाने के अपराधों का दोषी पाया गया. इनके अलावा महिला आरोपियों शाइस्ता प्रवीन, इंदु कुमारी, मीनू देवी, मंजू देवी, चंदा देवी, नेहा कुमारी, हेमा मसीह, किरण कुमारी को आपराधिक षड्यंत्र, बलात्कार के लिए उकसाने, बच्चों के साथ क्रूरता और अपराध होने की रिपोर्ट करने में विफल रहने का दोषी पाया गया था.

कुछ दोषियों की ओर से पेश हुए अधिवक्ता धीरज कुमार ने कहा था कि वे फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे. इस मामले में बिहार की पूर्व समाज कल्याण मंत्री और जदयू की तत्कालीन नेता मंजू वर्मा को भी आलोचना का शिकार होना पड़ा था, जब उनके पति के ठाकुर के साथ संबंध होने के आरोप सामने आये थे. मंजू वर्मा ने आठ अगस्त, 2018 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर इस मामले को सात फरवरी, 2019 को बिहार के मुजफ्फरपुर की स्थानीय अदालत से दिल्ली के साकेत जिला अदालत परिसर की पॉक्सो अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था. यह मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) द्वारा 26 मई, 2018 को बिहार सरकार को एक रिपोर्ट सौंपने के बाद सामने आया था.

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