पटना : बदलते वक्त के साथ बिहार की राजधानी पटना भी बदला. कभी मौर्य साम्राज्य की राजधानी रहने वाला पाटलीपुत्र गुजरते वक्त के साथ पटना बन गया. पटना एक ऐसा नाम है, जो किसी परिचय का मोहताज नहीं. लेकिन, बदलते दौर में पटना की कई ऐतिहासिक इमारतों पर सवालिया निशान भी लगने लगे. ना जाने कितनी इमारतें जमींदोज हो गयी तो कितनी धरोहरें आखिरी सांसें गिन रही हैं. इन पर उदासी की धूल परत-दर-परत चढ़ चुकी है. शहर की जर्जर होती धरोहरों की दुर्दशा की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक नायाब पहल की गयी. और, मौका चुना गया वैलेंटाइन डे को. सारी कोशिश पटना कलेक्ट्रेट के ऐतिहासिक इमारत को बचाने की रही.
स्तंभों को गले लगाकर मनाया वैलेंटाइन डे
दरअसल, पटना कलेक्ट्रेट के ऐतिहासिक इमारत को गिराये जाने का प्रस्ताव है. दूसरी ऐतिहासिक धरोहरों पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. इसकी तरफ लोगोंका ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ लोगों ने अनूठी पहल की. लोगोंके एक समूह ने करीब दो सौ साल पुराने पटना कलेक्ट्रेट के स्तंभों को गले लगाकर वैलेंटाइन डे मनाया. वैलेंटाइन डे के मौके पर इस अनूठी पहल के लिए कुछ लोगों का चयन किया गया था. इसमें अमेरिका में पढ़े वकील, युवा कवि के साथ स्थानीय निवासी भी थे. पटना उच्च न्यायालय के वकील कुमार शानू की मानें तो पटना कलेक्ट्रेट की इमारत को ढहाए जाने की खबर झटके से कम नहीं. लिहाजा उन्होंने धरोहरों के साथ जश्न मनाने का फैसला लिया.
‘सेव हिस्टोरिक पटना कलेक्ट्रेट’ की पहल
पटना कलेक्ट्रेट की इमारत के साथ वैलेंटाइन डे का जश्न मनाने का आयोजन ‘सेव हिस्टोरिक पटना कलेक्ट्रेट’ संस्था ने किया था. शानू ने बताया कि वर्ल्ड क्लास सिटी धरोहरों को संरक्षित करती है. अमेरिका में रहने वाले बड़ी संख्या में लोग बिहार की विरासत पर गर्व करते हैं. अमेरिका और दूसरे देशों के कई दोस्त कलेक्ट्रेट की दुर्दशा से परेशान हैं. युवा कवि अंचित पांडे ने कहा कि किसी शहर की पहचान मॉल और बड़ी शोरूम से नहीं, धरोहरों से होती है. बता दें साल 2016 में कलेक्ट्रेट को ढहाए जाने के प्रस्ताव का डच राजदूत अल्फोंसस स्टोलींगा और लंदन के गांधी फाउंडेशन ने विरोध किया था. इसी जगह ऑस्कर जीत चुकी फिल्म ‘गांधी’ के अधिकतर हिस्सों की शूटिंग हुई थी.