पश्चिम बंगाल में राजनेताओं के गंठजोड़ से सारधा समूह द्वारा निवेशकों के करीब 4500 करोड़ रुपये हड़पने का खुलासा हुआ है. यह रकम गरीब व मध्य वर्ग की गाढ़ी कमाई थी. बिहार व झारखंड में भी करीब सात सौ नॉन बैंकिंग कंपनियां सक्रिय हैं, जो निवेशकों को सपना दिखा कर उगाही करती रही हैं. कुछ तो पैसे लेकर फरार भी हो चुकी हैं. अधिकतर पश्चिम बंगाल की हैं. चिट-फंड कंपनियों की कारगुजारियों का जायजा लेती किस्तवार रिपोर्ट.
पटना: बंगाल में सारधा ग्रुप आफ कंपनी के खुलासे के बाद बिहार-झारखंड में भी नॉन बैकिंग और चिट फंड कंपनियों के पोल खुलने लगे हैं. इन राज्यों में सात सौ से अधिक ऐसी कंपनियां सक्रिय हैं, जिनने बिहार और झारखंडवासियों की जेब से 2500 करोड़ से अधिक रकम उगाह ली है. यह आंकड़ा बिहार व झारखंड में प्रभात खबर के प्रतिनिधियों ने अपने स्नेत से जुटाया है. आधा दर्जन से अधिक कंपनियों के खिलाफ आर्थिक अपराध इकाई, पटना में और पूरे बिहार में 14 जगहों पर दर्जन भर कंपनियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है. बिहार-झारखंड के 42 कंपनियों पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने पैसे जमा करने से रोक लगा दी है. इसके बाद भी पैसे दोगुने और तीन गुने करने के नाम पर लोगों क े पैसे ठग रही है.
झारखंड के संथाल परगना में 140 नॉन बैंकिंग कंपनियों के कार्यालयों में छापेमारी हुई. 111 कार्यालयों को सील किया गया. इनमें से 58 कंपनियां देवघर की हैं. इस इलाके से 900 करोड़ की उगाही हुई. देवघर से 100 करोड़ रुपये की उगाही हुई. कोयलांचल स 30 कंपनियं ने 250 करोड़ की उगाही की. जमशेदपुर की आठ कंपनियों ने करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे किये हैं. कंपनियों के पांव पटना, जमशेदपुर, धनबाद, रांची के इर्द- गिर्द तक पहुंच चुके हैं.
अधिकतर कंपनियों के मुख्यालय पश्चिम बंगाल में हैं. पटना के पुलिस अधिकारियों के मुताबिक इन कंपनियों के द्वारा अकेले बिहार से प्रति माह पचास करोड़ रुपये की उगाही की जा रही है. अब तक जो तथ्य सामने आये हैं, उसके मुताबिक पिछले दो वर्षों में करीब 12 सौ करोड़ की रकम इन कंपनियों ने बिहार से वसूले हैं.
जांच के बाद यह रकम कई गुना अधिक हो सकती है. यह रकम 31 मार्च, 1999 तक नन बैकिंग कंपनियों द्वारा उगाही की गयी 1277 करोड़ से अलग है. छपरा, गया, भागलपुर, अररिया और किशनगंज समेत कई जिलों में रीयल स्टेट के नाम पर भी लोगों से पैसे जमा लिये जा रहे हैं. कई कंपनियां नाम बदल कर धड़ल्ले से धंधा कर रही हैं.
मुख्यालय बंगाल में केंद्र सरकार की ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन आफिस’ ने बंगाल में मुख्यालय रखनेवाली 73 कंपनियों की पहचान की है. इनकी जांच शुरू कर दी गयी है. इनमें बिहार में पैसे वसूल रही रोजवैली ग्रुप, विबग्योर , विश्वमित्र इंडिया ग्रुप और सारधा ग्रुप आफ कंपनीज भी शामिल हैं. अकेले रोजवैली ग्रुप की 15 कंपनियां जांच के घेरे में हैं.
कंपनी बनाम सोसायटी
अधिक ब्याज देने के नाम पर नयी-नयी कंपनियां और सोसायटी सामने आ रही हैं. 2006 में जब सेंट्रल बैंक आफ इंडिया ने अपने क र्मियों पर बैंक के नाम से सोसायटी चलाने पर रोक लगा दी, तो शातिर कर्मचारियों ने स्वावलंबी को-आपरेटिव सोसायटी के नाम से बिहार के सहकारिता विभाग से निबंधन प्राप्त कर लिया. बिहार सरकार की आर्थिक अपराध इकाई के अनुसार इस सोसायटी के संचालकों ने आम निवेशकों के पैसे से हजारीबाग में 27 एकड़ जमीन खरीद कर डेंटल कॉलेज खोल लिया.
अब भी सक्रिय हैं कंपनियां
बंगाल में जहां सारधा के पोल खुलने के बाद बड़े पैमाने पर लोग अपनी जमा राशि मांगने घरों से बाहर निकले हैं. वहीं बिहार इन कपंनियों के लिए सेफ जोन बन गया था. अब जाकर पटना, सासाराम, फारबिसगंज, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, बांका, जमुई, भोजपुर, छपरा में कुछ कंपनियों के खिलाफ उनके दफ्तरों पर छापेमारी हुई, कुछ कार्यालय सील भी हुए. पर जिस संख्या में धोखाधड़ी हुई है, उसकी तुलना में जनता सामने नहीं आ रही है. सेबी ने 2011 में रोजवैली ग्रुप आफ कंपनी को आम लोगों से जमा लेने पर रोक लगा रखी है. इसके बावजूद कई जगहों पर कंपनी के एजेंट सक्रिय हैं. निवेश किये गये पैसे से रोजवैली ग्रुप ऑफ कंपनी आइपीएल की टीम कोलकाता नाइटराइडर्स को स्पांसर्ड कर रही है.
सहकारी समितियां भी
सहकारिता कानूनों की आड़ में केवल बिहार में चार सौ से अधिक समितियां चल रही हैं. इन पर रिजर्व बैंक की अनुमति के बिना आम लोगों से करोड़ों की रकम जमा कराने के आरोप हैं. राज्य सरकार के आर्थिक अपराध इकाई के मुताबिक पंजाब नेशनल बैंक के कर्मचारियों ने भी इसी तरह का सोसायटी गठित किया है. बिना रिजर्व बैंक की अनुमति के यह सोसायटी भी पैसे वसूल रही है. इन कंपनियों के पास किसी की बेटी की शादी का पैसा जमा है, तो किसी ने अपने खून-पसीने की कमायी को जल्द बढ जाने की उम्मीद में निवेश किया है.
रोज वैली होटल के नाम पर कर रही एडवांस बुकिंग
कोलकाता की रोजवैली ग्रुप आफ कंपनी अपनी ग्रुप के कथित होटलों में ठहरने के नाम पर एडवांस पैसा वसूल रही है. अररिया जिले के फारबिसगंज के एसडीओ ने जब इस कंपनी के संचालकों को टोका और नोटिस जारी किया, तो कंपनी की ओर से दलील यह दी गयी कि हम एडवांस ले रहे हैं. और रिजर्व बैंक के कानूनों के मुताबिक यह ननबैकिंग के दायरे में नहीं आता. फारबिसगंज में जिन कंपनियों को नोटिस दिया गया है, उनमें अधिकतर ने जवाब नहीं दिया. दो कंपनियों ने जवाब दिया भी, तो असंतोषजनक.