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ठेकेदारों ने पटना विवि को किया ब्लैकलिस्टेड

पटना: पटना विवि में विभिन्न परियोजनाओं के काम करानेवाले ज्यादातर ठेकेदारों के करीब 70-80 लाख रुपये बकाया हैं. काम कराने के बाद भी बकाया राशि का भुगतान नहीं होने की वजह से अब ऐसी स्थिति आ गयी है कि नये काम में कोई हाथ भी डालना नहीं चाहता है. एक तरह से ठेकेदारों ने पीयू […]

पटना: पटना विवि में विभिन्न परियोजनाओं के काम करानेवाले ज्यादातर ठेकेदारों के करीब 70-80 लाख रुपये बकाया हैं. काम कराने के बाद भी बकाया राशि का भुगतान नहीं होने की वजह से अब ऐसी स्थिति आ गयी है कि नये काम में कोई हाथ भी डालना नहीं चाहता है. एक तरह से ठेकेदारों ने पीयू को पूरी तरह से ब्लैकलिस्टेड कर दिया है. नये काम के लिए टेंडर ही नहीं डाल रहे हैं. कई विकास परियोजनाएं लंबित हैं. ठेकेदारों ने कई जगहों पर आधा-अधूरा काम करके छोड़ दिया है.

काम लंबित : 10 से अधिक ठेकेदारों का पैसा फंसा है. इन्होंने कई योजनाओं का ठेका लिया था और काफी हद तक काम भी पूरा कराया, लेकिन आगे की राशि का भुगतान नहीं होने की वजह से इन्होंने काम रोक दिया.

ढुलमुल रवैया : ऐसा नहीं है कि विवि के पास इन ठेकेदारों को देने के लिए पैसे नहीं हैं. 11वीं पंचवर्षीय योजना में 7 करोड़ 56 लाख रुपये विवि को स्वीकृत किये गये थे, लेकिन इस राशि का पूरा उपयोग विवि नहीं कर पाया. इसमें बची हुई राशि भी बरबाद हो गयी होती, अगर यूजीसी के द्वारा मार्च 2015 तक का एक्सटेंशन नहीं दिया गया होता. अगर समय पर काम करा कर राशि का सही जगह उपयोग कर लिया जाता, तो ये दिक्कत नहीं आती और पुरानी परियोजनाएं भी पूरी हो गयी होतीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पैसे रहते हुए भी काम नहीं हुए. यह सब सिर्फ और सिर्फ विवि के ढुलमुल रवैये और धीमी कार्य प्रणाली का नतीजा है.

कैसे करें काम, हो रहा घाटा

ठेकेदार गोविंद कुमार ने बताया कि उनका करीब 23 लाख रुपये यूनिवर्सिटी पर बकाया है. उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में अन्य ठेकेदारों का भी लाखों रुपये बकाया है. यही वजह है कि कोई भी ठेकेदार अब पीयू में नया टेंडर लेने को तैयार नहीं है. टेंडर डालने से लेकर विभिन्न प्रक्रियाओं को पूरा करने में ही मोटी रकम लग जाती है. एक अनुमान के अनुसार कुल राशि का करीब पांच से दस प्रतिशत तक इन प्रक्रियाओं और सिक्यूरिटी मनी के नाम पर खर्च होती है. इसके बाद भी जब लंबे समय तक पेमेंट नहीं होता है, तो उन्हें और भी घाटा सहना पड़ता है.

करीब 70-80 लाख रुपये बकाया है. इसी वजह से इधर कुछ टेंडर निकाले गये हैं, लेकिन ठेकेदार टेंडर नहीं डाल रहे हैं. पेमेंट को लेकर फाइल विवि को भेज दिया गया है.

सचिन दयाल यूनिवर्सिटी इंजीनियर

कमेटी बनायी गयी है कि जो इस पर काम कर रही है. सारे पुराने कार्यो की समीक्षा की जा रही है. कमेटी जैसे-जैसे मामलों का निबटारा करते जायेगी, वैसे-वैसे पेमेंट किया जायेगा.

अनिल कुमार वर्मा फाइनेंस अफसर

देखना होगा कि किन-किन परियोजनाओं में राशि खर्च की गयी है और कितना काम हुआ है. ठेकेदारों का पेमेंट किया जायेगा. लेकिन, पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही.

प्रो बलराम तिवारी रजिस्ट्रार

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