आरोही को ढूंढ़ने में जलती-बुझती रही ज्योति की लौ
पटना : एक साल की हंसती-मुस्कुराती आरोही जब रावण वध के बाद मां ज्योति से बिछुड़ गयी, तो फिर एक मां पर अगले दो घंटे कैसे गुजरी होगी यह आप कल्पना कर सकते हैं. दो घंटे बाद गांधी मैदान के पास ही चबूतरे पर आरोही को देखा तो सही मायनों में उसकी विजयादशमी हुई. हम […]
पटना : एक साल की हंसती-मुस्कुराती आरोही जब रावण वध के बाद मां ज्योति से बिछुड़ गयी, तो फिर एक मां पर अगले दो घंटे कैसे गुजरी होगी यह आप कल्पना कर सकते हैं. दो घंटे बाद गांधी मैदान के पास ही चबूतरे पर आरोही को देखा तो सही मायनों में उसकी विजयादशमी हुई. हम बात कर रहे हैं कि कंकड़बाग के पीसी कॉलोनी के ए-ब्लॉक में रहनेवाली ज्योति कुमारी की जो अपने पति, मां और छोटी बेटी आरोही के साथ भगदड़ की शिकार होने से बाल-बाल बच गयी.
उसके पति रविंद्र कुमार कंकड़बाग में ही जेनरल स्टोर की दुकान चलाते हैं. दशहरे के दो दिन पहले ही दुकान से छुट्टी लेकर उन्होंने पत्नी ज्योति के साथ मिल कर रावण वध देखने का कार्यक्रम तय किया था. मां आशा देवी और बेटी आरोही के साथ तय समय से एक घंटे पहले ही जगह ले ली थी. ज्योति के साथ उसकी मासूम बेटी आरोही रावण को जलता देख हंस रही थी और तालियां भी बजा रही थीं. मानो वो भी रावण वध का मर्म समझ रही हो, लेकिन यह खुशी बस चंद लमहों की ही मेहमान थी. जैसे ही ज्योति आरोही को गोद में लेकर एक्जीबिशन रोड वाले गेट की ओर बढ़ी कि भगदड़ मच गयी.
आपाधापी में आरोही उसके हाथों से छूट गयी. मिनटों में बड़े-बड़े शरीर सड़क पर निढाल पड़े थे, आरोही को नहीं देख कर रविंद्र और आशा देवी की तो आशा ही चली गयी. तीनो आरोही को ढूंढ़ने में एक-दूसरे से बिछड़ गये, इधर-उधर अनहोनी की निगाहों से खोजने में लग गये. अचानक चमत्कार हुआ और दो घंटे के भीतर गांधी मैदान के बाउंड्री के पास ही आरोही अपनी मुस्कुराहट के साथ फिर उनकी नजरों के सामने दिखायी दे गयी, मानो उन्हें जन्नत ही मिल गयी हो.