सचिवालय को खंगाला सीबीआइ की टीम ने
बिहार तक पहुंची आंच सरैया कोया टांड़ और उरमा पहाड़ी कोल ब्लॉक से जुड़े कागजात की गहन जांच पटना : कोल ब्लॉक घोटाले की आंच बिहार तक भी पहुंची है. सीबीआइ की दो सदस्यीय विशेष टीम ने दो दिनों तक सचिवालय स्थित खनन एवं भूतत्व विभाग में कोल ब्लॉक से जुड़े कागजातों की गहन जांच […]
बिहार तक पहुंची आंच
सरैया कोया टांड़ और उरमा पहाड़ी कोल ब्लॉक से जुड़े कागजात की गहन जांच
पटना : कोल ब्लॉक घोटाले की आंच बिहार तक भी पहुंची है. सीबीआइ की दो सदस्यीय विशेष टीम ने दो दिनों तक सचिवालय स्थित खनन एवं भूतत्व विभाग में कोल ब्लॉक से जुड़े कागजातों की गहन जांच की. सीबीआइ डीएसपी के नेतृत्व में आयी यह टीम गुरुवार की शाम को लौट गयी.
सीबीआइ टीम ने बिहार को पूर्व में आवंटित दो कोल ब्लॉक उरमा पहाड़ी और सरैया कोयाटांड़ से जुड़े तमाम कागजातों और फाइलों को खंगाला. हालांकि जांच दल ने किसी विभागीय अधिकारियों से कोई पूछताछ नहीं की. सुप्रीम कोर्ट ने 19 कोल ब्लॉक को छोड़ कर शेष 214 ब्लॉक का आवंटन रद्द कर कोल ब्लॉक आवंटन प्रक्रिया की जांच सीबीआइ से कराने का निर्देश दिया है.
रद्द हुए कोल ब्लॉक में बिहार के दो प्रमुख ब्लॉक सरैया कोयाटांड़ और उरमा पहाड़ी भी शामिल है. ये दोनों कोल ब्लॉक झारखंड में हैं. इससे पहले विभाग ने सीबीआइ मुख्यालय को दोनों कोल ब्लॉक से जुड़े कागजातों को भेजा था, लेकिन टीम छानबीन से जुड़े कई अन्य तथ्यों की पुष्टि करने के लिए यहां आयी हुई थी.
कोयाटांड़
आठ साल से विवाद
2006 में केन्द्र ने बिहार को सरैया कोयाटांड़ कोल ब्लॉक आवंटित किया था. गोमिया जिले में मौजूद इस कोल ब्लॉक को विकसित करने के लिए ग्लोबल टेंडर हुआ था. टेंडर में जो कंपनी एल-1 या पहले स्थान पर थी, उसने अंतिम चरण में अपना नाम वापस ले लिया.
इसके बाद एल-2 या दूसरे स्थान पर मौजूद मोनेट इस्पात इनर्जी लिमिटेड को यह टेंडर मिल गया. परंतु टेंडर की सभी प्रक्रिया पूरी होने के बाद इस कंपनी को काफी समय तक वर्क ऑर्डर नहीं मिला. इसी दौरान वित्त विभाग और बिहार के तत्कालीन महाधिवक्ता ने यह कहते हुए आपत्ति दर्ज करा दी कि इस कोल ब्लॉक को बिहार राज्य खनिज विकास निगम को आइडीए (इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट ऑथिरिटी) के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर विकसित करना चाहिए.
मोनेट इस्पात ने इसके खिलाफ हाइकोर्ट में रिट दायर किया. फैसला कंपनी के पक्ष में हुआ. इसके बाद राज्य सरकार एलपीए में चली गयी, जो खारिज हो गयी. फिर सरकार ने रिव्यू के लिए याचिका दायर की. यह मामला अब तक सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. फैसला आने के पहले ही ‘कोलगेट घोटाला’ में जांच का आदेश देते हुए सभी कोल ब्लॉक को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया.
उरमा पहाड़ी
विकसित होने के पहले रद्द
दूसरा कोल ब्लॉक उरमा पहाड़ी खनन एवं भूतत्व विभाग की लापरवाही और झारखंड की उदासीनता के कारण नहीं विकसित हो सका. 2008 में इसका आवंटन किया गया था. झारखंड के दुमका जिले में स्थित उरमा पहाड़ी में बिहार की 62.5 फीसदी हिस्सेदारी थी. इसे विकसित करने के लिए दोनों राज्यों ने मिलकर झार-बिहार कोलवरी लिमिडेट नामक कंपनी बनायी थी.
कंपनी के 10 सदस्यों की कमेटी में बिहार राज्य खनिज विकास निगम के एमडी समेत चार अधिकारी सदस्य हैं. परंतु राज्य खनिज विकास निगम की खस्ताहाल और अधिकारियों की लापरवाही के कारण इसे विकसित करने की कभी कोई जोरदार पहल नहीं हुई. अप्रैल, 2012 में टेंडर निकालने की तैयारी हुई, लेकिन मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया. बिहार की सुस्ती देख कोयले की अधिकता वाले राज्य झारखंड नेभी इसे विकसित करने पर खास ध्यान नहीं दिया. नतीजा स्थिति सुधरने से पहले ही यह रद्द हो गया.
क्या है कोल ब्लॉक घोटाला
सीएजी (कैग) ने खुलासा किया था कि कोल ब्लॉक मनमाने तरीके से आबंटित करने से सरकार को भारी नुकसान हुआ. बेहद सस्ती कीमतों पर बगैर नीलामी के खदानों से कोयला निकालने के ठेके निजी कंपनियों को दिये गये. कैग रिपोर्ट में जुलाई, 2004 से अब तक हुए 142 कोयला ब्लाक आवंटन से 1.86 लाख करोड़ रु पये के नुकसान का अनुमान लगाया गया है.
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न कंपनियों को 1993 से आवंटित किए गए 218 कोयला ब्लॉकों में से 214 के आवंटन रद्द कर दिये. प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने सिर्फ चार कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द नहीं किया. रद्द होने से बचे कोयला ब्लाकों में एनटीपीसी और सेल के एक-एक ब्लाक और दो ब्लॉक अति वृहद विद्युत परियोजनाओं के लिए दिये गये हैं.