विश्वासघाती नहीं : नीतीश
पटना: 17 साल पुराना गंठबंधन टूटा, तो अब बयानों के तीर भी चलने लगे हैं. भाजपा के विश्वासघात के आरोप लगाने पर सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दो टूक कहा – जो अपने बुजुर्गो को भूल गये, वे विश्वासघात का आरोप न लगाएं. भारतीय संस्कृति में बुजुर्गो को सम्मानित करने की परंपरा है. भाजपा […]
पटना: 17 साल पुराना गंठबंधन टूटा, तो अब बयानों के तीर भी चलने लगे हैं. भाजपा के विश्वासघात के आरोप लगाने पर सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दो टूक कहा – जो अपने बुजुर्गो को भूल गये, वे विश्वासघात का आरोप न लगाएं. भारतीय संस्कृति में बुजुर्गो को सम्मानित करने की परंपरा है. भाजपा में अटल-आडवाणी का दौर समाप्त हो चुका है. अब नया दौर चला है, जिसमें तालमेल बिठाने में मुश्किल हो रही थी.
अंत तक किया प्रयास : सोमवार को जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम के बाद नीतीश कुमार संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे. उन्होंने भाजपा के साथ संबंधों, पहले दिये अपने बयान और एनडीए से अलग होने के हर सवाल का खुल कर जवाब दिया. कहा – गंठबंधन बचाये रखने के लिए हमने अपनी ओर से पूरी कोशिश की. बातचीत के लिए बुलाया. हां कह कर प्रदेश भाजपा के नेता नहीं आये. आखिर मिलने में गुनाह क्या था.
इतने दिनों का साथ था. बातचीत करके एक रोडमैप बना लेते कि अगर साथ नहीं रहना है, तो कैसे हटा जा सकता है. हमने अंतिम प्रयास कैबिनेट की बैठक बुला कर की. सोचा, मंत्रिमंडल से त्यागपत्र नहीं दिये हैं, तो जरूर आयेंगे. कैबिनेट में उनके नहीं आने पर मजबूरी में निर्णय लेना पड़ा. एनडीए हमने नहीं छोड़ा. उन्होंने हमें छोड़ा है.
बाहरी हस्तक्षेप ने बिगड़ा काम
नेशनल एजेंडे के बुनियादी सिद्धांतों से भाजपा के हटने के कारण अलग होने की विवशता आ गयी. प्रदेश भाजपा नेताओं के साथ हमारे बेहतर संबंध रहे हैं. जब तक बाहरी हस्तक्षेप नहीं हुआ, गंठबंधन ठीक-ठाक चलता रहा.
जॉर्ज को भूला नहीं, उपचुनाव में राज्यसभा भेजा
मुख्यमंत्री ने जॉर्ज फर्नाडीस को भूल जाने के आरोप पर कहा, छद्म समर्थकों ने 2009 में जॉर्ज साहब को मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़वाया. नतीजा क्या हुआ. हमने तो उन्हें उपचुनाव में राज्यसभा में भेज कर सम्मान दिया. हमें अफसोस है कि एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व अस्वस्थ हैं. हम उनके स्वास्थ्य की लगातार जानकारी लेते रहते हैं.
एजेंडे से क्यों हटे
1995 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद विपक्षी मतों के बिखराव को रोकने के लिए बिहार में 1996 में समझौता हुआ था. बाद में 13 दिनों की एनडीए सरकार में जदयू में शामिल नहीं हुआ था. 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी, तो उस समय नेशनल एजेंडा बना. उसमें विवादित मुद्दों को अलग रखा गया. अब उस नेशनल एजेंडे से अलग हट कर काम किया जा रहा है. एनडीए से अलग होने का निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया गया. दिसंबर तक का समय दिया गया कि नेता चुनें और घोषित करें. लेकिन, हाल के घटनाक्रम ने दीवार की लिखावट को साफ कर दिया था.
2005,2009 के बयान भी देख लें
2003 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा किये जाने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि यह मान्य परंपरा है कि सरकारी कार्यक्रम में जिस राज्य में आप गये हैं, वहां की प्रशंसा करें. यह प्रोटोकॉल भी है कि जहां जाएं, वहां की शिकायत न करें. रेलमंत्री के तौर पर कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ मंच साझा किया. इन कार्यक्रमों को राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए. जहां तक गुजरात का सवाल है, वहां जदयू ने भाजपा से समझौता नहीं किया था. एक या दो सीट, जदयू को जो भी आये, वह अपने दम पर था. इसलिए व्याख्या करनेवाले लोग 2003 के बाद 2005, 2009 के बयान को भी देख लें.
रिसर्च के बाद ही कोई नतीजे पर पहुंचे. कांग्रेस के साथ जाने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि मामले को ट्विस्ट न किया जाये. निराशा हाथ लगेगी. जदयू इस स्थिति में नहीं है कि केंद्र में सरकार बना ले. अगले चुनाव के बाद बड़े दलों की जिम्मेवारी है कि वे सरकार बनाने के लिए कैसे लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं.
19 को विश्वास मत
मुख्यमंत्री ने कहा कि 19 को विस के विशेष सत्र में विश्वास मत हासिल होगा. सरकार यूं ही काम करती रहेगी.