नयी दिल्ली/पटना : भाजपा ने बुधवार को कहा कि कांग्रेस के समर्थन से बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार सरकार के विश्वासमत हासिल करने ने साबित कर दिया है कि उनकी पार्टी जदयू उसी दल के षडयंत्र में फंस गई है जिसका वह आज से पहले तक विरोध करती आई है.
इसने यह भी साबित कर दिया है कि जदयू ‘भ्रष्टाचार की गोंद’ से चिपक चुकी है.पार्टी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने यहां कहा, ‘‘आज के विश्वास मत ने दिखा दिया है कि भाजपा के साथ मिलकर जदयू ने जिस कांग्रेस के खिलाफ जीत दर्ज करके सरकार बनाई आज उसी के आगे घुटने टेक दिए हैं.’’ उन्होंने कहा कि जदयू तमाम उम्र कांग्रेस को बुरा भला कहने के साथ उसका विरोध करती आई है. लेकिन बिहार विधानसभा में आज हुए विश्वास मत ने साबित कर दिया है कि वह न सिर्फ उसके बिछाए षडयंत्र में फंस गई बल्कि सत्ता में बने रहने के लिए उसके आगे घुटने टेक दिए जिससे उसे उसके कंधे का सहारा मिल जाए.
यह पूछे जाने पर कि भाजपा ने विश्वासमत के खिलाफ मत देने की बजाए विधानसभा से वाकआउट क्यों किया, लेखी ने कहा, क्योंकि हम जानते थे कि जदयू ‘‘भ्रष्टाचार के गोंद से चिपक गई है.’’ इस सवाल पर भाजपा से अलग होते ही जदयू भ्रष्ट कैसे हो गई, उन्होंने कहा, ‘‘हम अभी उसे भ्रष्ट नहीं कह रहे हैं, बल्कि यह कह रहे हैं कि वह भ्रष्टाचार की गोंद यानी कांग्रेस के साथ जा मिली है.’’
नीतीश का बहुमत
बिहार विधानसभा में नीतीश ने विश्वासमत हासिल कर लिया है. उन्हें पक्ष में 126 वोट मिलें जबकि विपक्ष में मात्र 24 वोट पड़े. सरकार के खिलाफ पडे 24 वोटों में 22 राजद और दो निर्दलीय हैं. विश्वामत हासिल करने के बाद नीतीश ने कांग्रेस और सीपीआई को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा बीजेपी भ्रम फैला रही है बीजेपी को सिर्फ गुजरात विकास की चर्चा करती है उसे बिहार का विकास नजर नही आता. दूसरी ओर बीजेपी विधायकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर एनडीए को मिले जनादेश के साथ छल करने का आरोप लगाते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया. नीतीश ने इसका जवाब देते हुए कहा कि बीजेपी का बुलाया गया बंद सुपरफ्लाप रहा. उन्होंने कहा कि बीजेपी का ओबीसी कार्ड नहीं चलेगा.
पिछड़ी जाति में जन्म लेने से कोई पिछड़े वर्ग का नेता नहीं हो जाता है. उन्होंने नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा कि बिहार में किसी का विकास मॉडल नहीं चलेगा, बिहार में सिर्फ बिहार का विकास मॉडल होना चाहिए.देश को बांटने वाले बर्दास्त नहीं है. नीतीश ने भाजपा जदयू गंठबंधन के टूट जाने पर कहा कि हम बस इतना चाहते थे कि भाजपा हमारी चिंताओं का निराकरण सार्वजनिक तौर पर करें. हम चाहते थे कि पीएम पद के उम्मीदवार की घोषणा हो जाती. भाजपा दिन में सपने देख रही है अगर हम साथ होते तो भी लोस चुनाव में 200 सीटों का आकड़ा प्राप्त करना कठिन था.
राजग से अलग होने के बाद बिहार विधानसभा में जदयू ने आज जहां विश्वास मत के जरिये अपना बहुमत साबित किया वहीं भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर राजग को मिले जनादेश के साथ छल करने का आरोप लगाते हुए सदन से वाकआउट कर दिया. इससे पहले भाजपा विधायक दल के नेता नंदकिशोर यादव ने सदन में कहा ‘हम जानते हैं कि आपने विश्वास मत हासिल करने के लिए बहुमत जुटा लिया है. हम वाकआउट कर रहे हैं.’ यादव की घोषणा के बाद भाजपा विधायक सदन से बाहर चले गए. उस समय नीतीश कुमार सरकार द्वारा पेश किए गए विश्वासमत पर चर्चा हो रही थी. नवंबर 2005 में राजग गठबंधन ने बिहार में सत्तारुढ़ राजद नीत संप्रग सरकार को हरा कर सरकार बनाई थी. उसके बाद से पहली बार भाजपा के 91 विधायक विपक्ष में बैठेंगे.
यादव ने मुख्यमंत्री पर जनादेश के साथ छल करने का आरोप लगाते हुए कहा कि मतदाता अगले आम चुनावों में और वर्ष 2015 में होने वाले विधानसभा चुनावों में जदयू को सबक सिखाएंगे. भाजपा के इस वरिष्ठ नेता ने कहा ‘अगले आम चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव के लिए ज्यादा समय नहीं है. इन चुनावों में बिहार की जनता आपको :मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी को: सबक सिखाएगी.’ प्रत्यक्ष तौर पर जदयू से अलग दलों के मतों को अपनी ओर करने के प्रयास में यादव ने कहा कि वर्ष 2010 में फिर से सत्ता में आने के बाद विधायक-विधानपार्षद स्थानीय क्षेत्र विकास निधि समाप्त करने के लिए मुख्यमंत्री जिम्मेदार हैं.
उन्होंने कहा ‘मैंने बिहार के विधायकों की स्थानीय क्षेत्र विकास निधि समाप्त करने के आपके फैसले का विरोध किया था लेकिन आपने मुङो अपने फैसले के पक्ष में आने के लिए समझा लिया था.’ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल से भाजपा के 11 मंत्रियों को बर्खास्त करने के बाद राज्यपाल डी वाई पाटिल से रविवार को मुलाकात की थी.
243-सदस्यों वाली विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 122 सदस्यों की जरूरत है. जेडीयू के पास 118 विधायक हैं. विधानसभा में बीजेपी के 91, आरजेडी के 22, कांग्रेस के चार, एलजेपी और सीपीआई के एक-एक विधायकों के अलावा छह निर्दलीय विधायक हैं. यानी नीतीश को विश्वासमत हासिल करने के लिए महज चार विधायकों की दरकार थी. छह निर्दलीय विधायकों में चार पहले ही जेडीयू के पक्ष में वोट डालने की बात कह चुके थे, ऐसे में नीतीश के लिए राह बिल्कुल आसान थी.