हमसे हो न सका सौदा जमीर का
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुधवार को विश्वास मत पर तीन घंटों से अधिक समय तक चले वाद-विवाद का जवाब देते समय पूरे रौ में दिखे. 50 मिनटों के अपने संबोधन में उन्होंने पुराने सहयोगी भाजपा को जम कर कोसा. राजद की टोका-टोकी का जवाब दिया और कांग्रेस तथा भाकपा समेत साथ देनेवाले चार निर्दलीय सदस्यों की […]
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुधवार को विश्वास मत पर तीन घंटों से अधिक समय तक चले वाद-विवाद का जवाब देते समय पूरे रौ में दिखे. 50 मिनटों के अपने संबोधन में उन्होंने पुराने सहयोगी भाजपा को जम कर कोसा. राजद की टोका-टोकी का जवाब दिया और कांग्रेस तथा भाकपा समेत साथ देनेवाले चार निर्दलीय सदस्यों की तारीफ की. हम उनके भाषण को यहां शब्दश: छाप रहे हैं.
यह नौबत क्यों आयी? कल तक जो साथ थे, आज विपक्ष की भूमिका में हैं. आज जो यहां नारा लगा, उससे साबित हो गया कि हमारा निर्णय सही है, मौजूं है. अपनी बात कह कर वे चले गये. लोकतंत्र में सबों को अपनी बात कहने का अधिकार है. लेकिन, बात कहिए, तो सुनिए भी. पर, वे अपनी बात कह कर चले गये. यह कमजोरी का परिचायक है. कुछ लोग बहुत तरह की गलतफहमी के शिकार हैं. यही घातक होता है.
लोकतंत्र में चर्चा, विमर्श से समाधान होता है. अगर ऐसा होता, तो आज जो नौबत आयी, नहीं आती. लोग कहते हैं कि जनादेश साथ रहने पर आया था. 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में दो चरणों तक नेता का नाम घोषित नहीं हुआ था. इसके बाद नेता का नाम घोषित हुआ, तो आगे के चरणों में अच्छा रिजल्ट आया. अक्तूबर-नवंबर 2005 के चुनाव में नेता का नाम पहले से ही घोषित कर दिया गया. ठोस व पूर्ण बहुमत मिला. 2010 में नेता का नाम पहले से घोषित था, तो विशाल बहुमत मिला. लेकिन, बिहार के काम की जब प्रशंसा की, तो कई लोगों को तकलीफ होने लगी. साझा उपलब्धि किसी के लिए आलोचना कैसे हो सकती है.
यह कौन-सी प्रवृत्ति है. हमें तो बिहार की साझा सरकार और हो रहे कामों पर नाज होनी चाहिए थी. जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में हमने कहा- बिहार के विकास मॉडल की चर्चा की. बिहार सरकार के विकास का मॉडल क्या है- समावेशी विकास. सबों को साथ लेकर चलना. मैंने न केवल बुनियादी ढांचे का विकास किया, बल्कि मानव विकास पर बल दिया. हिंदू, मुसलिम, अगड़ा, पिछड़ा, दलित, महादलित सबों को साथ लेकर चले. पंचायती राज में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया. अभी तो कई राज्य इस दिशा में सोच ही रहे हैं. हमने क्या कहा था- देश का नेतृत्व वही करे, जो सबों को साथ लेकर चले. अभी गंठबंधन का दौर है. नेतृत्व उसके हाथों में होनी चाहिए, जो सबों को साथ लेकर चलें. आज सदन में क्या हुआ. जनादेश बिहार के कामों पर मिला है और नारा किसी और का लग रहा है. इससे तो स्पष्ट हो गया कि आगे क्या होना था. अगर बिहार के अनुसार काम होते, तो गंठबंधन ठीक तरीके से चलते रहता. बाहरी हस्तक्षेप होने पर ही सारा मामला गड़बड़ाया. लेकिन, न जाने क्या हो गया है.
दिवा स्वप्न है कि हवा बह रही है
लोगों को लग रहा है कि हवा बह रही है. कौन-सी हवा बह रही है, यह हमें मालूम नहीं. देश बड़ा है. विविधताओं से भरा देश है. अगर कोई सोचता है कि हवा बहाने से काम हो जायेगा, तो वह दिवास्वप्न है. यह स्वप्न बेबुनियाद साबित होगा. बहुभाषी देश में सबों को साथ लेकर चलना जरूरी है. आरएसएस का बयान आया है कि हम हिंदुत्व पर चलेंगे. इस साफ है कि हमने जो निर्णय लिया, वह सही साबित हुआ. 2003 के गुजरात का सीडी बांटा जा रहा है. रेल मंत्री के तौर पर गया था. सरकारी कार्यक्रम में आलोचना नहीं कर सकते. यह भी कहा था कि गुजरात पर बड़ा दाग लगा है. 2005 वर्ष 2003 के पहले आता है या बाद में. 2005 के चुनाव में क्यों नहीं उन्हें बुलाया गया, जिसका नारा लगाया जा रहा है. उस समय तो कुछ और ही नारा लगाया गया था. (एनडीए का नारा उस समय ‘नीतीश कुमार- नया बिहार’ था). 2009 के लोकसभा चुनाव में भी नहीं बुलाया गया था.
कई बार रविवार को बैठक
हम अपनी ओर से कटुवचन नहीं कहेंगे. राजनीतिक बातों का जवाब राजनैतिक तरीके से दिया जायेगा. कल जो हुआ, ठीक नहीं है. ऐसा नहीं होनी चाहिए. दोनों दलों को संयम से काम लेना होगा. लेकिन, हमला दूसरी तरफ से हुआ था. ऐसा नहीं होनी चाहिए. लेकिन, बिहार को छोड़ बाहर की बात की जाने लगी. विवादित व्यक्ति को हम स्वीकार नहीं करेंगे. यह संभव नहीं है कि जो आप चाहते हैं, उसे हम स्वीकार कर लें. आज दुखड़ा रो रहे हैं. सेवायात्र से लौटे, तो बातचीत के लिए बुलाया था. सोचा था कि आगे क्या करना है, मिल-बैठ कर बातचीत कर लेंगे कि अगर अलग ही होना है, तो कैसे अलग हों. रविवार को कैबिनेट की बैठक की बात कही जा रही है.
16 अप्रैल, 2006, 19 नवंबर, 2006, नौ दिसंबर, 2007, 31 मार्च, 2013 और 16 जून, 2013 को एक अणो मार्ग में रविवार को कैबिनेट की बैठक हो चुकी है. सात दिसंबर, 2008 को मंत्रिमंडल सचिवालय सभाकक्ष में कैबिनेट की बैठक हो चुकी है. इस सरकार में अब तक 20 बार रविवार को कैबिनेट की बैठक हुई है. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे इंटरव्यू की चर्चा की गयी. हमने क्या कहा था. हमने तो बस इतना ही कहा था कि हमारी चिंताओं का सार्वजनिक रूप से निराकरण की जाये. राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी कह रहे थे कि राज्य में अनिश्चय का माहौल कायम हो गया था. इसलिए हमने मात्र 72 घंटे में विश्वास मत हासिल करने का निर्णय लिया. हमारे पास 118 विधायक हैं. चार निर्दलीय तो शुरू से ही समर्थन कर रहे हैं. कांग्रेस ने समर्थन दिया.
… तो, बंद था सुपरफ्लॉप
अब विश्वासघात की बात कर रहे हैं. बंद की घोषणा की. कहां बंद हुआ. नंदकिशोर जी अपनी दुकान खोल कर पूरे बिहार में बंद करा रहे थे. वीरचंद पटेल की घटना नहीं होती, तो बंद सुपरफ्लॉप था. लोग अपनी मरजी से जहां जाना चाह रहे थे, आये-गये. बंद तो फोटो खिंचाने का अवसर होता है. ट्रेन के इंजन पर चढ़ गये और टायर जला कर कुछ देर यातायात को बंद कर दिया. जिस तरह के नारे लगाये जा रहे हैं, उससे तो लगता है कि अलग होकर ठीक निर्णय लिया.
पिछड़ी जाति के होने से कोई पिछड़ों का हमदर्द नहीं बन जाता अब पिछड़ा वर्ग के नेता की दुहाई दी जा रही है. कॉरपोरेट घरानों की हमदर्दी से कोई पिछड़ा वर्ग का नेता नहीं हो जाता. और, केवल पिछड़ी जाति में जन्म लेने से भी कोई इस वर्ग का नेता नहीं हो जाता. चौधरी चरण सिंह पिछड़ा वर्ग में जन्म नहीं लिये थे. लेकिन, वे हमेशा पिछड़ों के विकास में लगे रहे और यूपी सहित उत्तर भारत में ख्याति प्राप्त की. राजनारायण, मधु लिमये जैसे नेता भी पिछड़े वर्ग में नहीं जन्म लिया था. वीपी सिंह ने तो मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कीं. व्यक्ति की पहचान जाति से नहीं, काम से होती है. जो पिछड़े वर्ग की विचारधारा को साथ लेकर चले, उसकी भलाई करे, वही उसका नेता हो सकता है. हिंदुत्व के रास्ते चल कर पिछड़े वर्ग का विकास नहीं किया जा सकता. दलित मुसलिम व दलित क्रिश्चियन को एसी में शामिल करने की बात की, तो उस समय लोकसभा में भाजपा नेता नाराज हुए थे. भारत में धर्म बदलने से जात नहीं बदल जाती. लेकिन, हमने कभी भी अपनी नीतियों से समझौता नहीं किया. किसी एक जात के बजाय समूचे ओबीसी का ख्याल रखना होगा. जातीय सम्मेलन कराये जा रहे हैं. पहले राजद ऐसा सम्मेलन किया करता था. कॉरपोरेट घरानों ने एक हवा उड़ायी है. हवा से देश नहीं बदलता.
कॉरपोरेट घरानों के दम पर कुछ देर के लिए प्रचार जरूर मिलता है. लेकिन, यह एक तरह का भ्रम है. केंद्र में सरकार बनाने के लिए 272 सांसद चाहिए. जब हम एनडीए में थे, तो उस समय भी यह संख्या 200 से आगे नहीं आ पाती. अब तो अलग हो गये. यह गंठबंधन का दौर है. कोई भ्रम में न रहे कि वह अकेले दम पर केंद्र में सरकार बना लेगा. नतीजे बतायेंगे. हम अपनी नीतियों व सिद्धांत के कारण अलग हुए हैं. हमें तो खुशी होती कि पुराने भी साथ बैठते. लेकिन, उनकी नीतियों के कारण ही हम अलग हुए.