स्वर्णयुग था इंदिरा गांधी का शासनकाल-सं
डॉ जगन्नाथ मिश्रइंदिरा गांधी के व्यक्तित्व में अपने पितामह पं मोतीलाल नेहरू की एकांतिक गरिमा, महात्मा गांधी की निर्भीकता, कवि रवींद्र की मानवीयता और अपने पिता पं जवाहरलाल नेहरू की उदारता एकाकार हो उठी. शक्ति और साहस इंदिरा जी की अपनी विशेषता थी. हिम्मत और दृढ़ता, अंत:शक्ति और समझदारी, मानव की विरासत और भविष्य के […]
डॉ जगन्नाथ मिश्रइंदिरा गांधी के व्यक्तित्व में अपने पितामह पं मोतीलाल नेहरू की एकांतिक गरिमा, महात्मा गांधी की निर्भीकता, कवि रवींद्र की मानवीयता और अपने पिता पं जवाहरलाल नेहरू की उदारता एकाकार हो उठी. शक्ति और साहस इंदिरा जी की अपनी विशेषता थी. हिम्मत और दृढ़ता, अंत:शक्ति और समझदारी, मानव की विरासत और भविष्य के प्रति दृष्टि इन सब क्षेत्रों में इंदिरा गांधी के बराबर आज के समय में कम लोग हुए हैं. इंदिरा जी जिस समय प्रधानमंत्री हुईं, घोर निराशा के वातावरण में देश घिरा हुआ था. आर्थिक स्थिति काफी अस्थिर थी. ऐसे में उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि बापू और पंडित जी के स्वप्नों को साकार करने के लिए समय-समय पर जनता से किये गये वादों को पूरा करने के लिए जन सहयोग से ही प्रतिक्रियावादी शक्तियों का मुकाबला किया जा सकता. उसके बाद उन्होंने कांग्रेस द्वारा पारित दस सूत्रीय कार्यक्रम को अमली जामा पहनाने के लिए ठोस कदम उठाये. इसके लिए सर्वप्रथम उन्हें कांग्रेस के अंदर ही विरोध का सामना करना पड़ा. लेकिन, इसके लिए वह तैयार थीं. उनका वर्ष 1970 से वर्ष 1974 तक बतौर प्रधानमंत्री कार्यकाल भारत का स्वर्ण युग कहा जा सकता है. इस दौरान इंदिरा जी ने पाकिस्तान को तोड़ कर बांग्लादेश बना डाला. पहला परमाणु परीक्षण पोखरण में करके भारत की वैज्ञानिक परमाणु शक्ति का पूरी दुनिया में लोहा मनवाया. इंदिरा गांधी जनता की नब्ज भलीभांति जानती थी. उनको एहसास था देश की कोटि-कोटि जन भावनाओं का, जो समाज में एक लंबे अरसे से उपेक्षित चला आ रहा था. (लेखक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हैं.)