नालंदा की विरासत को सजाने में महाविहार की भूमिका अहम

नवनालंदा महाविहार का 63वां स्थापना दिवस समारोह मनाबिहारशरीफ/ नालंदा. प्राचीन भारत में नालंदा व तक्षशिला दो बड़े संस्कृति व ज्ञान के केंद्र थे. इस सत्य को कोई झूठला नहीं सकता है. इसके खंडहर आज भी मौजूद हैं, जो अपनी विरासत को आज भी बताने के लिए काफी हैं. ये बातें भारत सरकार के पूर्व सचिव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 20, 2014 11:02 PM

नवनालंदा महाविहार का 63वां स्थापना दिवस समारोह मनाबिहारशरीफ/ नालंदा. प्राचीन भारत में नालंदा व तक्षशिला दो बड़े संस्कृति व ज्ञान के केंद्र थे. इस सत्य को कोई झूठला नहीं सकता है. इसके खंडहर आज भी मौजूद हैं, जो अपनी विरासत को आज भी बताने के लिए काफी हैं. ये बातें भारत सरकार के पूर्व सचिव व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व महानिदेशक केएन श्रीवास्तव ने डीम्ड यूनिवर्सिटी नवनालंदा महाविहार के 63वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहीं. उन्होंने कहा कि भाग्यशाली हूं, एसएसआइ में आने के बाद मुझे नालंदा व तक्षशिला दोनों जगह जाने का अवसर मिला. नव नालंदा महाविहार से जुड़ने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ. सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ाने व ज्ञान बढ़ाने के जो कार्य नव नालंदा महाविहार द्वारा किये जा रहे हैं, वह तक्षशिला में नहीं हो पा रहा है. भारत व पाकिस्तान दोनों प्राचीन भारत के ही अंग हैं. इसलिए पाक सरकार की यह जवाबदेही है कि तक्षशिला यूनिवर्सिटी का एक बार फिर से जीर्णोद्धार किया जाये. उन्होंने कहा कि ह्वेनसांग ने अपने ग्रंथ में जो नालंदा का विवरण किया है, उसके आधार पर आर्कियोलॉजिकल विभाग का सर्वे में केवल 5-10 प्रतिशत ही है. 90 प्रतिशत का सर्वे अब भी बाकी है. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए शेष बचे 90 प्रतिशत भू-भाग का ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे जरूरी है.

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