अलग पहचान की छटपटाहट

पटना: मुजफ्फरपुर के चतुभरुज स्थान की 30 वर्षीया रीना देवी जिस्मफरोशी के ऐसे दलदल में फंसी हैं, जिससे निकलना शायद आसान नहीं. लेकिन, वह अपनी बेटी को इस धंधे से अलग रखना चाहती हैं, मगर उसकी पहचान उसका पीछा नहीं छोड़ रही. वह सरकार से मदद चाहती हैं, ताकि अपनी बेटी को समाज की मुख्यधारा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:52 PM

पटना: मुजफ्फरपुर के चतुभरुज स्थान की 30 वर्षीया रीना देवी जिस्मफरोशी के ऐसे दलदल में फंसी हैं, जिससे निकलना शायद आसान नहीं. लेकिन, वह अपनी बेटी को इस धंधे से अलग रखना चाहती हैं, मगर उसकी पहचान उसका पीछा नहीं छोड़ रही.

वह सरकार से मदद चाहती हैं, ताकि अपनी बेटी को समाज की मुख्यधारा से जोड़ सकें. रीना अकेली नहीं, जो इस दर्द को अपने सीने में दबाये जीने को मजबूर हैं. बिहार की लगभग एक लाख महिलाओं की यही कहानी है, जो अपनी बेटियों को इस अंधेरी राह से बाहर निकालना चाहती हैं.

रीना और उनकी जैसी महिलाओं को आज मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इंडिया नेपाल मानव स्वतंत्रता नेटवर्क संस्था पूरे बिहार में कार्य कर रही है. नेटवर्क के राज्य समन्वयक बीके शर्मा ने बताया कि बिहार के 35 जिलों के विभिन्न स्थान रेड लाइट एरिया के रूप में चिह्न्ति हैं. इनकी आबादी लगभग एक लाख तक है. इसके लिए कई तरह के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. किशोरी चेतना केंद्र के तहत इस धंधे से जुड़ी महिलाओं का पुनर्वास व उनकी बेटियों को अलग पहचान दी जा रही है.

महिला विकास सेंटर के निदेशक परमहंस प्रसाद सिंह ने बताया कि वर्ष 1997 से रेडलाइट एरिया की महिलाओं व उनकी बेटियों को बचाने का काम किया जा रहा है. बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र खासतौर पर रेडलाइट एरिया के रूप में प्रमुख है. यहां से लड़कियों को आसानी से दूसरे देशों में भेजा जाता है.

योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं
मानव व्यापार की रोकथाम एवं पीड़ितों के पुनर्वास योजना के तहत वर्ष 2008 में समाज कल्याण निदेशालय में मानव व्यापार विरोधी कोषांग ‘अस्तित्व’ की स्थापना की गयी है. इसके तहत राज्य स्तरीय मानव व्यापार विरोधी समन्वय समिति व जिला स्तरीय समिति बनायी गयी है. लेकिन, कार्यक्रम का सही क्रियान्वयन नहीं होने से इसका लाभ पीड़ितों को नहीं मिल पा रहा है.

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