पटना: ग्रामीण विकास मंत्री नीतीश मिश्र ने सीएजी की उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज किया है, जिसमें मनरेगा में कम खर्च करने की बात कही गयी है. 2007-08 से 2011-12 की अवधि में मनरेगा के परफॉरमेंस ऑडिट की रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद बिहार पर उठ रहे सवालों पर मंत्री ने कहा कि बिहार ने आवंटन से अधिक राशि मनरेगा में खर्च की है. तथ्यों को गलत तरीके से रखा जा रहा है. सीएजी की रिपोर्ट में भी बिहार में हुए खर्च का ब्योरा दिया गया है.
मंत्री ने कहा, सीएजी की रिपोर्ट में यह कहा जाना कि देश का 46 प्रतिशत गरीब परिवार बिहार, यूपी व महाराष्ट्र में रहता है और कुल संसाधनों का मात्र 20 फीसदी ही खर्च किया गया, यह पूरी तरह गलत है. वर्ष 2007-12 के बीच बिहार को मनरेगा के तहत 6292.44 करोड़ रुपये उपलब्ध कराये गये. इस अवधि में राज्य सरकार ने अपने शेयर के अलावा 489 करोड़ रुपये अपने कोष से खर्च किये. इस तरह कुल 8110.84 करोड़ रुपये खर्च किये गये.
साल-दर-साल मनरेगा में बिहार का प्रदर्शन बेहतर हुआ है. 2011-12 में 1637.75 करोड़ रुपये खर्च हुए, तो 2012-13 में दो हजार करोड़ खर्च हुए, जो 22 प्रतिशत अधिक है. 8.66 करोड़ की तुलना में 9.38 करोड़ मानव दिवस का सृजन हुआ. महिलाओं की भागीदारी 28.85 प्रतिशत से 30.48 प्रतिशत हुई. एससी की भागीदारी 43 प्रतिशत रही. वर्ष 2011-12 में एक लाख 37 हजार 649 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार दिया गया, तो 2012-13 में एक लाख 48 हजार 660 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार दिया गया. इनमें आठ फीसदी वृद्धि हुई.
राशि मिलने में होती है देर
मंत्री ने केंद्र पर आरोप लगाया कि राशि मिलने में काफी देर होती है. स्वीकृत श्रम बजट की तुलना में किसी भी साल पर्याप्त राशि नहीं दी गयी. इसे लेकर फरवरी महीने में ही मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री को पत्र लिखा था. सचिव अमृत लाल मीणा ने कहा कि चालू वित्तीय वर्ष में श्रम बजट के तहत 10.56 करोड़ मानव दिवस के सृजन की तुलना में 2600 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं. नियमानुसार वित्तीय वर्ष के शुरुआती महीनों में ही 1300 करोड़ मिलने हैं, पर मात्र 449 करोड़ ही मिल सका है. हरेक पंचायत पर यह मात्र पांच लाख रुपये ही आता है. बाकी राशि अगस्त-सितंबर में मिलेगा.