योजना आयोग अभी भंग न करें : मांझी
प्रधानमंत्री से बिहार ने मांगा विशेष राज्य का दर्जा, उठाये कई महत्वपूर्ण मुद्दे पटना : बिहार ने योजना आयोग को जल्दबाजी में भंग करने का विरोध करते हुए इस मामले पर व्यापक चर्चा और निर्णय के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की विशेष बैठक बुलाने की मांग की है. मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने रविवार […]
प्रधानमंत्री से बिहार ने मांगा विशेष राज्य का दर्जा, उठाये कई महत्वपूर्ण मुद्दे
पटना : बिहार ने योजना आयोग को जल्दबाजी में भंग करने का विरोध करते हुए इस मामले पर व्यापक चर्चा और निर्णय के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की विशेष बैठक बुलाने की मांग की है.
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने रविवार को नयी दिल्ली में आयोजित बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया कि इस मसले पर विस्तृत विचार-विमर्श और परिचर्चा के बिना जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लें. 12वीं पंचवर्षीय के मध्य काल में ऐसे फैसले से विकास कार्यक्रम और चालू योजनाओं में रुकावट आयेगी.
योजना आयोग की जगह पर प्रस्तावित ढांचा और तौर-तरीकों पर सभी राज्यों से राय ली जानी चाहिए. उन्होंने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के साथ बीआरजीएफ की राशि में की गयी कटौती को वापस लेने और झारखंड पर बकाया पेंशन मद की 2584 करोड़ रुपये की राशि दिलाने की मांग भी की. प्रधानमंत्री ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक योजना आयोग को भंग करने के मुद्दे पर राज्यों की राय जानने के लिए बुलायी थी.
बैठक में श्री मांझी ने दो टूक कहा, इसके लिए सही मंच राष्ट्रीय विकास परिषद है.जिस प्रकार से इस बैठक के एजेंडे और स्वरूप की सूचना दी गयी है, उससे यह लगता है कि आपने इस विषय पर अपना मन बना लिया है और राज्य यहां सिर्फ मुहर लगाने के लिए हैं. उन्होंने कहा कि वर्षो से योजना आयोग ने देश की सामग्री, पूंजी और संसाधन के आकलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है और प्रभावकारी व संतुलित उपयोग के उद्देश्य से योजनाएं तैयार की हैं. हालांकि क्षेत्रीय विषमताओं को घटाने और आम जनता को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने और मानव विकास की गति को तीव्र करने में उसे सफलता नहीं मिल पायी है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय राष्ट्र और इसकी अर्थव्यवस्था दोनों ही अत्यंत जटिल और विविधतापूर्ण है, जहां विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के विकास के सभी आयामों में स्थिति इतनी भिन्न है कि एक राष्ट्र के अंदर ‘कई दुनिया’ के अस्तित्व में होने का आभास होता है. ऐसी स्थिति में बाजारी शक्तियों को आवश्यकतानुसार समर्थन और नियमन के उद्देश्य से सरकार के प्रभावी हस्तक्षेप की आवश्यकता है. संघीय ढांचे में सरकारी हस्तक्षेप को इस प्रकार गठित करना होगा, जिससे इसे एक ओर राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और अपेक्षाओं पर केंद्रित किया जा सके, वहीं दूसरी ओर विभिन्न क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों के हाशिये पर और गरीब लोगों को विकास की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके. ऐसे में योजना की रणनीति को पूर्ण रूप में नकारा नहीं जा सकता है.
श्री मांझी ने केंद्र सरकार को संपूर्ण देश के भौगोलिक व क्षेत्रीय फैलाव के लिए इस प्रकार का मध्यम और दीर्घकालीन विजन तैयार करने का सुझाव दिया है, जिसमें सभी नागरिकों की हकदारी सुनिश्चित किया जा सके. उन्होंने कहा कि इसके लिए ब्लू प्रिंट तैयार किया जाना चाहिए और घरेलू एवं विदेशी दोनों स्तर की निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की क्षमता और संभावना का मूल्यांकन करना चाहिए.
इसके साथ ही राज्यों की आर्थिक तकनीकी, भौतिक एवं सामाजिक मूलभूत संरचनाओं का आकलन करते हुए इसके आधार पर संस्था द्वारा मार्गदर्शिका और अनुशंसाएं गठित की जानी चाहिए, जो प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित मुख्यमंत्रियों की परिषद के अनुमोदन के बाद विभिन्न मंत्रालयों के लिए स्कीमों के तैयार करने और आवंटन देने का आधार बनाना चाहिए. एक थिंक टैंक के रूप में इस संस्था को ऐसी दक्षता विकसित करनी होगी कि वह विभिन्न मंत्रालयों और राज्यों को पूरे विश्व में हो रहे नवाचारी और श्रेष्ठ प्रक्रियाओं से अवगत करा सके.
मुख्यमंत्री ने पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (बीआरजीएफ) में कटौती का विरोध करते हुए कहा कि बिहार के बंटवारे के समय राज्य पुनर्गठन अधिनियम में योजना आयोग में एक विशेष प्रकोष्ठ के गठन का प्रावधान किया गया, जिसे बिहार की आवश्यकताओं का आकलन कर योजनाओं के माध्यम से आवश्यक सहयोग प्रदान करने का दायित्व दिया गया, लेकिन इसका कोई विशेष प्रतिफल नहीं निकला. दुर्भाग्यवश, बीआरजीएफ के तहत प्राप्त विषेष योजना उद्व्यय को भी विगत वर्ष एवं वर्तमान वर्ष में कम कर दिया गया है. ऐसे प्रावधानों को वस्तुत: और बढ़ाने की जरूरत थी न कि कम करने की.
राज्य पुनर्गठन अधिनियम में बिहार और झारखंड के बीच पेंशन के बंटवारे के लिए एक फॉमरूला दिया गया था. वर्ष 2010-11 तक के पेंशन दायित्वों के बंटवारे के सिद्घांत को ध्यान में रखते हुए 2584 करोड़ रुपये को झारखंड से बिहार में हस्तांतरित करने का आदेश केंद्र सरकार ने पारित किया गया, लेकिन सितम्बर, 2012 में पारित आदेश का आज तक अनुपालन नहीं हुआ है. मुख्यमंत्री के कहा कि इस तरह के अंतरराज्यीय विषयों के निबटारे के लिए प्रभावी संस्थागत व्यवस्था एवं कार्रवाई आवश्यक जरूरी है.
बिहार को भी साथ लेकर चलना होगा
मुख्यमंत्री श्री मांझी ने बैठक में खरी-खरी भी सुनायी. उन्होंने कहा, यदि देश को विकास करना है और उस विकास को निरंतरता प्रदान करनी है, तो बिहार एवं अन्य पिछड़े राज्यों को भी साथ लेकर चलना होगा. साथ ही विकास की नीतियों का गठन और आवंटन इस प्रकार करना होगा कि जिससे सभी सूचकांकों की खाई एक समय सीमा के भीतर घटे. चाहे योजना और गैर योजना के काल्पनिक विभेद को बना कर रखे और योजना आयोग जैसी संस्था और वित्त आयोग जैसी संवैधानिक संस्था दोनों को राज्यों को संसाधन हस्तांतरित करने हेतु उपयोग करें अथवा दोनों को मिला कर एक नयी संस्था बनायी जाये, लेकिन विकास की खाई को पाटना मूल उद्देश्य होना चाहिए. उन्होंने कहा कि हाल के कुछ वर्षों को छोड़ कर अखिल भारतीय औसत और बिहार की स्थिति के बीच की खाई लगातार बढ़ती गयी है.
प्रति व्यक्ति आवंटन गरीब और कमजोर राज्यों में अपेक्षाकृत कम हुआ है और क्रमश: इसमें गिरावट होती गयी है. पिछली पंचवर्षीय योजनाकाल में बिहार सहित पूर्वी क्षेत्र को द्वितीय हरित क्रांति के लिए उपयरुक्त क्षेत्र माना गया, लेकिन कृषि के विकास के लिए दिया गया आवंटन इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत कम था. इतना ही नहीं सिंचाई की सुविधा को विकसित करने के लिए एआइबीपी की जो स्कीम गठित हुई, उसकी कठिन शर्तो के कारण पिछले दो पंचवर्षीय योजनाकाल में बिहार इस योजना का उपयोग ही नहीं कर सका.
नुरूम के तहत स्कीम का फायदा ज्यादातर उन्हीं राज्यों को मिला, जहां पहले से शहरीकरण अधिक है. उन्होने कहा कि ऐसी स्थिति में हम कैसे उम्मीद करें कि बिहार जैसे पिछड़े राज्यों के नागरिकों को हम मूलभूत अधिकार उपलब्ध करा सकेंगे और बिहार व राष्ट्रीय औसत के बीच की खाई को पाटने में सफल होंगे.
न मिला विशेष दर्जा तो नहीं बढ़ेगा विकास दर
श्री मांझी ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की पुरानी मांग दोहराते हुए कहा कि इसके बिना पिछले नौ वर्षो के दौरान प्राप्त किये गये विकास दर को भविष्य में बढ़ाये रखना संभव नहीं होगा. उन्होंने कहा कि संसाधनों की कमी के बावजूद बिहार सरकार ने समावेशी विकास का लक्ष्य और सुशासन की व्यवस्था स्थापित कर कई सुधारात्मक कदम उठाये हैं. नतीजतन पिछले कुछ वर्षो में बिहार के विकास की दर लगातार राष्ट्रीय औसत से अधिक रही है और कुछ वर्षों में तो यह राज्यों में सबसे अधिक है. लेकिन, प्रति व्यक्ति सार्वजनिक निवेश काफी कम होने के कारण बिहार विभिन्न सामाजिक आर्थिक सूचकांकों के न्यूनतम स्तर पर है.
राज्य और केंद्र सरकार के प्रयास तभी सफल होंगे जब उसके साथ-साथ निजी क्षेत्र के निवेश में भी उत्तरोत्तर वृद्घि हो. पिछड़े क्षेत्रों में निवेश को तभी आकर्षित किया जा सकता है, जब उन क्षेत्रों में निवेश के लिए विशेष आकर्षण पैदा किया जा सके.
यह वैसे राज्यों के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण हो जाता है, जिनके पास खनिज संसाधन या बंदरगाह नहीं है एवं जो स्थल अवरुद्घ है. बिहार को विषेष राज्य का दर्जा प्राप्त हो जाने से केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यांश कम हो जाने से राज्य के पास अपनी योजनाओं के लिए उपलब्ध संसाधन की बढ़ोतरी होगी,
अन्य बाह्य स्नेतों से संसाधन प्राप्ति की क्षमता भी बढ़ेगी तथा करों एवं करदेयता में छूट के कारण निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा, जिसके फलस्वरूप रोजगार के अवसर बढ़ेगें, लोगों का जीवन स्तर सुधरेगा और इस प्रकार बढ़े हुए निजी निवेश के साथ अधिक सरकारी उद्व्यय के कारण राज्य विकास दर में निश्चित रूप से और भी वृद्घि होगी.
बिहार ने दिये सुझाव
जल्दबाजी में न लें योजना आयोग को भंग करने का फैसला
प्रस्तवित ढांचा और तौर-तरीका की रूपरेखा सभी राज्यों को भेजी जाये
मध्यम व दीर्घकालीन विजन का ब्लू प्रिंट तैयार करें, जो पूरे देश के लिए हो
चर्चा के लिए एनडीसी की बैठक बुलायी जाये
प्रस्तावित संस्था गरीब व पिछड़े राज्यों के क्षमता संवर्धन में सहयोग दे
थिंक टैंक के रूप में गठित हो नयी संस्था
एक शक्तिशाली मूल्यांकन प्रकोष्ठ हो, जो राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के कार्यान्वयन एवं मध्यावधि त्रुटियों के संबंध में युक्तिसंगत सुझाव दे