— कहने के लिए राजधानी में रह रहे हैं, लेकिन सुविधा कुछ नहीं है. शहर कचरे के ढेर पर है. वार्ड पार्षद को इसकी चिंता नहीं है. आज जब अपनी कुरसी खतरे में दिख रही है,तो वे सड़क पर उतर रहे है. निगम भंग होने से प्रशासन भी बदलेगा ताकि बेहतर नागरिक सुविधा उपलब्ध हो. राजन कुमार– प्रमुख सड़कों पर रोशनी नहीं है. इसको लेकर वार्ड पार्षद से निगम अधिकारी तक शिकायत की गयी,लेकिन समुचित लाइटिंग की व्यवस्था नहीं हुई. ऐसे निगम बोर्ड या प्रशासन के रहने का क्या मतलब. निगम भंग करने की घोषणा की,तो क्या जरूरी है है कि यह स्थिति नहीं बने. भंग होने के साथ पूरी संरचना में बदलाव होना चाहिए. विजय कुमार- कोई वार्ड पार्षद काम नहीं करते हैं. सभी अपने स्वार्थ को पूरा कर रहे हैं. सड़कों पर कचरा बिखरा रहता है. इस स्थिति में वार्ड पार्षद को आवाज उठानी चाहिए, लेकिन नहीं उठाते है. ऐसी स्थिति में पार्षद को नहीं रहना चाहिए.मनोज कुमार गुप्ता- निगम बोर्ड ठीक होता,तो शहर की यह स्थिति नहीं रहती. इसमें सिर्फ वार्ड पार्षद ही दोषी नहीं हैं. निगम के अधिकारी भी उतने ही दोषी है. वार्ड पार्षदों को चाहिए कि यदि योजना का क्रियान्वयन नहीं हो,तो आंदोलन करें, लेकिन,कभी आंदोलन नहीं किया. कुल्लू – राजधानी में न तो सफाई की बेहतर सुविधा है और न लोगों को शुद्ध पानी मिल रहा है. जबकि दोनों मूलभूत काम है,लेकिन निगम इस काम को करने में भी असमर्थ है,तो भंग कर देना ही उचित है. रवि
– आम लोगों से बात, निगम होना चाहिए भंग,सं
— कहने के लिए राजधानी में रह रहे हैं, लेकिन सुविधा कुछ नहीं है. शहर कचरे के ढेर पर है. वार्ड पार्षद को इसकी चिंता नहीं है. आज जब अपनी कुरसी खतरे में दिख रही है,तो वे सड़क पर उतर रहे है. निगम भंग होने से प्रशासन भी बदलेगा ताकि बेहतर नागरिक सुविधा उपलब्ध हो. […]
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