12.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आर्थिक मजबूरी में बेटे को अस्पताल में छोड़ गये मां-बाप

पटना: उसे किस नाम से बुलाऊं. उसकी मां ने उसे कोख तो दी, पर नाम ही नहीं दिया. सिर्फ दो दिनों की उम्र में सहरसा से लाकर राजधानी के अस्पताल में भरती कराया, उसकी परेशानी दूर करने के लिए, मगर फिर छोड़ दिया लावारिस मरने के लिए. वह पिछले 37 दिनों से कंकड़बाग स्थित आस्था […]

पटना: उसे किस नाम से बुलाऊं. उसकी मां ने उसे कोख तो दी, पर नाम ही नहीं दिया. सिर्फ दो दिनों की उम्र में सहरसा से लाकर राजधानी के अस्पताल में भरती कराया, उसकी परेशानी दूर करने के लिए, मगर फिर छोड़ दिया लावारिस मरने के लिए.

वह पिछले 37 दिनों से कंकड़बाग स्थित आस्था लोक अस्पताल के एनआइसीयू में लावारिस पड़ा है. उसकी उम्र भी लगभग उतनी ही है. अस्पतालकर्मियों ने उसे नाम दिया है ‘ आलोक ’. इसलिए हम भी उसको इसी नाम से पुकारेंगे. आलोक ने जब से आंखें खोली हैं, अपने आस-पास नर्स या डॉक्टर को ही पाया

. न तो मां के आंचल की छांव मिली, न पिता का दुलार. उसकी इच्छा तो होती है बाहर घूमने की, मगर वह गोद नहीं, जो उसे बाहर की दुनिया दिखाये. एनआइसीयू का बेड उसके लिए मां की गोद और बोतलबंद दूध खाना है. रात भर सोता है, मगर नींद टूटते ही मां के गोद की कमी खलने पर रोने लगते हैं. नर्से किसी तरह उसे चुप कराती हैं. आलोक की कहानी एक महीने पुरानी है.

सहरसा निवासी संजीव सिंह और सुलेखा देवी ने उसे प्रोफेसर कॉलोनी, कंकड़बाग स्थित आस्था लोक अस्पताल में भरती कराया था. अस्पताल के रजिस्टर में उसके माता-पिता ने बस इतना ही पता दर्ज कराया है. पूर्णिया में डिलिवरी कराने के बाद बच्चे का मलद्वार नहीं होने की वजह से उसे यहां लाया गया था. अस्पताल के डॉक्टरों ने उसकी स्थिति को देखते हुए उसे भरती कराने को कहा. उसी दिन डॉक्टरों के एक दल ने जटिल ऑपरेशन कर उसे ठीक किया और उचित देख-रेख के लिए एनआइसीयू में रख दिया. उस वक्त माता-पिता ने 20 हजार रुपये एडवांस जमा कराये.

अचानक गायब हुए माता-पिता

इस बीच तीन-चार दिन बाद ही माता-पिता अचानक गायब हो गये. अस्पताल कर्मियों ने लगातार उनके मोबाइल नंबर 8651606290 पर फोन किया, मगर रिस्पांस नहीं मिला. 22 नवंबर को हुई बात में पिता ने जल्दी ही बच्चे को लेने आने की बात कह कर तुरंत फोन काट दिया. इसके बाद उनका फोन नॉट रिचेबल आने लगा. इसके बाद 28 नवंबर को फिर बात हुई. इस बाद भी जल्द आने की बात कह कर फोन काट दिया गया. अस्पतालवालों ने भरोसा भी दिलाया कि उनसे बकाया पैसा नहीं मांगा जायेगा. तीसरी बार चार दिसंबर को फोन किये जाने पर बताया गया कि यह संजीव कुमार का फोन नहीं है. यह कह कर फोन काट दिया गया. ‘ प्रभात खबर ’ ने भी इस नंबर पर ट्राइ किया, लेकिन मोबाइल नंबर स्विच ऑफ आता रहा.

बच्च बिल्कुल स्वस्थ्य, नियमित हो रही देख रेख

इधर, अस्पताल प्रशासन बच्चे की नियमित देख-रेख में जुटा है. मैनेजर कुणाल के मुताबिक, डॉक्टर उसकी नियमित मॉनीटरिंग कर रहे हैं. उसे एनआइसीयू में वॉर्मर से गरम करके रखा जा रहा है, जिस पर हर दिन ढाई से तीन हजार रुपये खर्च हो रहे हैं. अब तक सिर्फ वॉर्मर पर रखने का खर्च 80 हजार रुपये से अधिक हो गया है. यही नहीं, ऑपरेशन वगैरह मिला कर बच्चे पर कुल डेढ़ लाख रुपये से अधिक खर्च हो चुका है. इसके बावजूद हमने मानवता के नाते उनके अभिभावकों को फोन कर कहा कि बच्चे को आकर ले जाएं. हम कोई फीस नहीं लेंगे. अगर फिर भी बच्चे के अभिभावक नहीं आते हैं, तो हमें मजबूरन उसे किसी नि:संतान दंपति या गोद देनेवाली संस्था को देना होगा. अधिक दिनों तक हम उसकी देखभाल में सक्षम नहीं हो पायेंगे. अस्पताल में अभिभावकों ने पूरा पता भी नहीं लिखवाया है. हमने पूर्णिया के उस अस्पताल में भी जानकारी ली, जहां डिलिवरी हुई थी, मगर कुछ पता नहीं लग सका.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें