पांच वर्षो तक बिना पैसे के काम, अब बाहर

पटना: मगध विश्वविद्यालय के शाखा कार्यालय के कर्मचारियों की अजीब दास्तान है. पांच वर्षो से ये बिना पैसे के काम करते रहे, लेकिन जब इन कर्मचारियों ने मेहनताने की मांग की, तो विवि ने उन्हें कर्मचारी मानने से ही इनकार कर दिया. ये कर्मचारी यहां सिर्फ इसलिए काम करते रहे थे कि एक दिन उनकी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 15, 2014 6:39 AM

पटना: मगध विश्वविद्यालय के शाखा कार्यालय के कर्मचारियों की अजीब दास्तान है. पांच वर्षो से ये बिना पैसे के काम करते रहे, लेकिन जब इन कर्मचारियों ने मेहनताने की मांग की, तो विवि ने उन्हें कर्मचारी मानने से ही इनकार कर दिया.

ये कर्मचारी यहां सिर्फ इसलिए काम करते रहे थे कि एक दिन उनकी नियुक्ति मान्य हो जायेगी और वे यूनिवर्सिटी के नियमित कर्मचारी हो जायेंगे. यूनिवर्सिटी भी इनसे लगातार काम लेती रही, लेकिन अब इनको अवैध बता रही है.

मगध विश्वविद्यालय के शाखा कार्यालय में 2009 में इन कर्मचारियों की नियुक्ति एक विज्ञापन के माध्यम से तत्कालीन कुलपति ने की थी. कर्मचारियों के अनुसार इनकी नियुक्ति पूरी प्रक्रिया के तहत हुई थी. वहीं विश्वविद्यालय के अनुसार इनकी नियुक्ति अवैध है. जानकारी के अनुसार उस समय 30-32 कर्मचारियों की नियुक्ति हुई थी. उसमें से 12-13 कर्मचारियों ने लंबे इंतजार के बाद शाखा कार्यालय को अलविदा कह दिया. वर्तमान में 14 कर्मचारी ऐसे हैं, जिनका कहना है कि उनकी नियुक्ति पूरी प्रक्रिया से हुई थी और उन्हें नियमित करने का आश्वासन मिला था. 2012 में तत्कालीन कुलपति अरुण कुमार ने सिंडिकेट से प्रावधान करके थर्ड ग्रेड को सात हजार और फोर्थ ग्रेड को चार हजार रुपये विवि की तरफ से दिलवाये थे और एक महीने में सभी को नियमित करने का आश्वासन दिया था. इसके बाद कुलपति बदल गये और मामला पेंडिंग हो गया. उनके बाद जो कुलपति आये, उन्होंने मामले पर विचार करने का आश्वासन दिया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ. अब वर्तमान कुलपति से जब उन्होंने अपनी मांग रखी, तो उन्होंने इन्हें अवैध करार दे दिया.

तो कर्मियों ने कैसे किया काम?

सवाल यह उठता है कि जब कर्मचारी अवैध थे, तो इन कर्मचारियों से पांच वर्षो तक काम किस आधार पर लिया गया. क्या सरकारी दफ्तर में ऐसा संभव है कि कोई भी फर्जी कर्मचारी आकर काम करके चला जाये. इन सवालों को लेकर ये कर्मचारी राजभवन न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं और पिछले कई दिनों से आंदोलन भी कर रहे हैं. वर्तमान कुलपति से मुलाकात कर भी उन्होंने गुहार लगायी, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

हमलोगों के नाम से काम एलॉट किया जाता था, जो काम एलॉट किया जाता था, उसका कागज भी हमारे पास है, मसलन कैश की रसीद काटने का प्रमाण, माइग्रेशन बनवाने का प्रमाण. ये काम बाहरी व्यक्ति कैसे कर सकता है. हमने राजभवन व न्यायालय में सबूतों के साथ गुहार लगायी है.

राजकुमार, कर्मचारियों का नेतृत्वकर्ता व कर्मचारी

जिस प्रक्रिया से नियुक्ति होती है, उसके अनुसार इनकी नियुक्ति नहीं हुई है. ऐसे में यूनिवर्सिटी ने इन्हें अपना कर्मचारी मानने से इनकार कर दिया है. ये कर्मचारी कुछ काम नहीं कर रहे थे, बस अपने इंटरेस्ट में आते-जाते रहते थे. 2008-09 में तत्कालीन कुलपति को यह अधिकार होता था कि वे कर्मचारियों की भरती कर लेते थे. उस समय ऐसे करीब दो-ढाई सौ कर्मचारियों की नियुक्तियां की गयी थीं, जो वैध नहीं थी. इस पर एफआइआर भी हुआ और मामला कोर्ट में भी गया. इसके बाद से सारे कॉलेजों व कार्यालयों से ऐसे कर्मचारियों को हटा दिया गया था.

मनोज कुमार, शाखा इंचार्ज

ये सारे कर्मचारी वैध नहीं थे, इसलिए इन्हें हटा दिया गया है. ये कैसे काम कर रहे थे, इसका जवाब शाखा इंचार्ज देंगे.

प्रो इश्तेयाक, कुलपति, मगध विश्वविद्यालय

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