झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं पुलिस के जवान

फोटो-3-झोपड़ी में चल रहा भरियार ओपी.डुमरांव. भरियार ओपी की शुरुआत सन् 1980 में ललन तिवारी की जमीन पर 150 रुपये किराये पर की गयी थी. भरियार ओपी को देख कर कोई भी व्यक्ति इसे थाना नहीं कह सकता. यहां जवानों को रहने के लिए उजड़ी हुई झोपडि़यां हैं. पुलिस के पास एक पुरानी जीप है, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2014 7:02 PM

फोटो-3-झोपड़ी में चल रहा भरियार ओपी.डुमरांव. भरियार ओपी की शुरुआत सन् 1980 में ललन तिवारी की जमीन पर 150 रुपये किराये पर की गयी थी. भरियार ओपी को देख कर कोई भी व्यक्ति इसे थाना नहीं कह सकता. यहां जवानों को रहने के लिए उजड़ी हुई झोपडि़यां हैं. पुलिस के पास एक पुरानी जीप है, जिसकी बैटरी भी कमजोर है. गश्त पर जाने समय धक्का देकर चालू करना पड़ता है. अगर किसी संगीन अपराधी को पकड़ना हो, तो इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस उस अपराधी को कैसे पकड़ पायेगी. इस ओपी में बिजली की भी व्यवस्था नहीं है. यहां हाजत की भी व्यवस्था नहीं है. अपराधी को पकड़ने के बाद अपनी रिस्क पर बैठा कर रखना पड़ता है. इस ठंड के मौसम में अगर वर्षा हो, तो जवानों को सिर ढकने के लिए भी कोई जगह नहीं है. ओपी में पदस्थापित जवान जन सुरक्षा की जगह स्वयं सुरक्षा को मजबूर हैं….क्या कहते हैं थाना प्रभारीप्रभारी हृदयानंद राम ने बताया कि थाना के पास अपनी भूमि नहीं है. भूमि के लिए विभाग को पत्र लिखी गयी है. फिलहाल किसी तरह इस झोपड़ी में अपना व सुरक्षा का कार्य करना पड़ रहा है.

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