झारखंड विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद अब बिहार सभी राजनीतिक दलों का फोकस बननेवाला है. केंद्र के बाद चार राज्यों में सत्ता में आने के बाद भाजपा बिहार विधानसभा के चुनाव में 175 सीटें जीत कर सरकार बनाने का दावा कर रही है. वहीं, उसके जीत के घोड़े को बिहार में रोकने के लिए लालू प्रसाद और नीतीश कुमार आपस में हाथ मिला चुके हैं. दोनों दलों की विलय प्रक्रिया आखिरी दौर में है. लालू-नीतीश जैसे क्षत्रपों की पहल रंग लायी, तो 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का मिशन 175 चक्रव्यूह में घिर सकता है. इधर, भाजपा बिना एक दिन गंवाये सामाजिक समीकरणों को अपने पक्ष में लामबंद करने में जुटी है. पार्टी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव चार जनवरी को पटना पहुंच रहे हैं. पटना पहुंचने के बाद पार्टी की चुनावी तैयारियों का वह जायजा लेंगे.
भाजपा ने अगले साल होनेवाले विधानसभा चुनाव में 175 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य में उसे सहयोगी दल रालोसपा और लोजपा का भी साथ होगा. जानकारी के मुताबिक 24 जनवरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के पटना आने के पहले पार्टी सहयोगी दलों के साथ तालमेल पर अपना मन बना लेना चाहती है. सूत्रों के अनुसार डेढ़ सौ से अधिक सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार होंगे, जबकि बाकी की सीटें सहयोगी दलों को दी जा सकती हैं.
आसान नहीं राह : राजनीतिक जानकार बताते हैं लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा का वोट प्रतिशत लगातार गिर रहा है. ऐसे में बिहार में उसकी राह आसान नहीं दिखती. नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि के सहारे चुनावी जंग जीतने को बेकरार भाजपा के लिए सहयोगी दल रालोसपा और लोजपा भी बड़ी बाधा खड़ी कर सकते हैं. सहयोगी दलों के साथ सीटों के बंटवारे में झारखंड का उदाहरण उत्साहजनक नहीं है.
आजसू और बाबूलाल मरांडी की पार्टी के साथ चुनाव मैदान में उतरी भाजपा को लोकसभा चुनाव में 57 सीटों पर बढ़त मिली थी. पर, आठ महीने बाद हुए विधानसभा के चुनाव में उसे महज 37 सीटें ही मिलीं. कमोवेश यही स्थिति महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों में भी रही है. ऐसी स्थिति में जातीय राजनीति की धूरी रहे बिहार में भाजपा को सवर्णो के साथ-साथ अतिपिछड़े और महादलित मतों को गोलबंद करने की भारी चुनौती होगी. लोकसभा चुनाव में करीब 120 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी.
लोकसभा चुनाव में करीब 120 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी भाजपा
लोकसभा चुनाव में बिहार में भाजपा ने अपने दम पर करीब 120 सीटों पर बढ़त बनायी थी. रालोसपा और लोजपा की सीटें शामिल करने पर यह आंकड़ा 172 तक पहुंचा था. सरकार बनाने के लिए किसी भी गंठबंधन को कम-से-कम 122 सीटों की जरूरत होगी. हालांकि, उम्मीदवारों की संख्या पर अभी तक एनडीए के किसी भी दल ने आधिकारिक तौर पर दावा पेश नहीं किया है. लेकिन, सहयोगी दल दबी जुबान में यह कहने लगे हैं कि यदि भाजपा सामाजिक समीकरणों को दरकिनार कर उम्मीदवार थोपने की कोशिश करेगी, तो इसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ सकता है.
लोकसभा चुनाव में भाजपा, रालोसपा और लोजपा विधानसभा की 172 सीटों पर आगे रही थी. इनमें भाजपा करीब 120 सीटों पर आगे रही है. हमने 2015 के विधानसभा चुनाव में 175 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. इसमें दोनों सहयोगी दलों का भी साथ होगा. कौन दल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा, इस बारे में अभी कोई बातचीत नहीं हुई है. सीट बंटवारे में कोई दिक्कत नहीं आयेगी.
मंगल पांडेय, अध्यक्ष प्रदेश भाजपा