पटना: बाल श्रमिक के रूप में बच्चे लगातार ट्रैफिकिंग के शिकार हो रहे हैं. गरीबी और जानकारी के अभाव में वे आसानी से दलालों के हाथों दूसरे राज्यों में बाल श्रमिक के रूप में काम कर रहें हैं. सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं के जरिये इन बच्चों को रेस्क्यू कर पुनर्वासित तो किया जा रहा है, लेकिन वे कुछ महीने बाद उसी कारखाने में दोबारा काम करने पहुंच रहे हैं. ये बातें शनिवार को होटल चाणक्या में ‘ट्रैफिकिंग पीड़ित बच्चों का पुनर्वास’ विषयक कार्यशाला में वक्ताओं ने कहीं.
बाल कल्याण समिति लें उचित निर्णय
न्यायमूर्ति वीएन सिन्हा ने कहा कि सबसे पहले इस समस्या के मूल कारणों को जान इसे दूर करना होगा. साथ ही सरकार को इसके प्रति गंभीर होकर काम करना होगा. बचपन बचाओ आंदोलन के मुख्तारुल हक ने बताया कि बच्चों को पुनर्वासित करने के लिए प्रत्येक जिले में सीडब्लूसी कमेटी गठित की गयी है, जो रेस्क्यू के बाद बच्चों को पुनर्वासित करने के लिए होम में रखती है. वहीं उन बच्चों की काउंसेलिंग कर उनके माता-पिता को सौंप देती हैं. सीडब्लूसी इस काम में जल्दबाजी न कर बच्चों को थोड़ा समय दें, ताकि बच्चे रि-ट्रैफ्रिकिंग के शिकार होने से बच सकें. मौके पर सुरेश कुमार केपी मिश्र समेत कई संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित हुए.
माता-पिता को करें आर्थिक रूप से सशक्त
प्रयास जुवेलाइन एंड सेंटर व इंडिया नेपाल ह्यूमन लिबर्टी नेटवर्क के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में बाल श्रम आयोग के अध्यक्ष चंद्रदेव प्रसाद चंद्रवंशी ने कहा कि लगातार रेस्क्यू के बाद भी बच्चे दोबारा कारखानों में कार्य करने जा रहे हैं. इसके लिए सरकार को सजग होकर काम करना होगा. बच्चों को तब तक पुनर्वासित केंद्र में रखा जाना होगा, जब तक वे पूरी तरह से स्कूली शिक्षा के प्रति सजग नहीं हो जाये. साथ ही उनके माता-पिता को भी आर्थिक रूप से सशक्त करना होगा. बाल श्रम आयोग की उपाध्यक्ष अनीता सिन्हा ने कहा कि बच्चों को बाल श्रम मुक्त करने के लिए सरकारी व गैरसरकारी स्तर पर मिल कर काम करने की जरूरत है. थानों को भी इसके प्रति संवेदनशील होना होगा.