एक साथ आये लालू प्रसाद-नीतीश कुमार

स्पेशल सेल लोकसभा चुनाव के नतीजे आये एक महीने ही हुए थे कि राज्यसभा का चुनाव आ गया. यह चुनाव राजद के साथ जदयू की नयी दोस्ती का पैगाम लेकर आया. लेकिन इसकी झलक जीतन राम मांझी सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव पर हुए मतदान के दौरान ही मिल गयी थी. इस साल 23 मई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 29, 2014 6:05 AM

स्पेशल सेल

लोकसभा चुनाव के नतीजे आये एक महीने ही हुए थे कि राज्यसभा का चुनाव आ गया. यह चुनाव राजद के साथ जदयू की नयी दोस्ती का पैगाम लेकर आया. लेकिन इसकी झलक जीतन राम मांझी सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव पर हुए मतदान के दौरान ही मिल गयी थी. इस साल 23 मई को विधानसभा में राजद के समर्थन से मांझी सरकार को विश्वास मत हासिल हो गया.

फिर राज्यसभा में बढ़ी नजदीकी

राज्यसभा के द्विर्षिक चुनाव में जदयू के दो उम्मीदवारों पवन कुमार वर्मा और गुलाम रसूल बलियावी के खिलाफ चुनाव मैदान में दो उम्मीदवार थे. आम्रपाली ग्रुप के प्रमुख अनिल शर्मा और पूर्व सांसद साबिर अली. भाजपा दोनों निर्दलीयों के साथ थी. जदयू के बागियों के सहारे सियासत की चालें चली जा रही थीं. पर जदयू उम्मीदवारों को राजद तथा कांग्रेस का समर्थन मिल जाने से राज्य में नये सियासी समीकरण का पुख्ता आधार तैयार हो गया. चुनाव में जदयू के पवन कुमार वर्मा को 122 तथा अनिल शर्मा को 108 वोट मिले. इसी तरह गुलाम रसूल बलियावी को 123 तथा साबिर अली को 107 वोट मिले. भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार तो खड़े नहीं थे लेकिन जदयू के खिलाफ लड़ाई की कमान उसके ही हाथों से संचालित व नियंत्रित हो रही थी.

उपचुनाव ने और करीब ला दिया

संसदीय चुनाव से उलट मांझी सरकार के विधानसभा में विश्वासमत और राज्यसभा चुनाव में जदयू-राजद की निकटता ने विधानसभा की दस सीटों पर होने वाले उप चुनाव में आकार लिया. दस सीटों पर हुए उप चुनाव की प्रक्रि या 25 अगस्त को परिणाम आने के साथ पूरी हो गयी. लेकिन खास बात यह रही कि नीतीश और लालू के बीच हुई एकता ने भाजपा के खिलाफ एक ध्रुव को खड़ा कर दिया. भाजपा के हाथों शिकस्त खायी मध्यमार्गी दलों को इस एका से लगने लगा कि पिछड़ों, दलितो और अल्पसंख्यकों को एक आधार पर लाकर भाजपा के सामाजिक समीकरणों को परास्त किया जा सकता है. उप चुनाव के नतीजों से भी इसकी संभावनाएं दिखने लगीं. उप चुनाव वाली दस सीटों में से जदयू, राजद और कांग्रेस को छह सीटें मिल गयीं जबकि भाजपा को चार. 2010 के विधानसभा चुनाव में इन दस सीटों में से छह पर भाजपा की जीत हुई थी. इस तरह उप चुनाव में उसकी हाथों से दो सीटें छिटक गयीं.

इस दोस्ती को व्यापक बनाने की कोशिश

इस नयी दोस्ती को राजद-जदयू के रणनीतिकार इसलिए भी अहम मानते हैं कि इससे उनका सामाजिक आधार बड़ा होगा. इसे और व्यापक चेहरा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पहल की जाने लगी. बात एक नयी राजनैतिक पार्टी बनाने तक पहुंच गयी. कम से कम बिहार में इसका दर्शन पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक आधारित राजनीति को आवेग देने वाला होगा जबकि विकास का सवाल उसका कामकाजी एजेंडा होगा. इसके लिए नीतीश कुमार से बेहतर चेहरा इस राजनीति के पास नहीं है. साल का अंत आते-आते जदयू-राजद के विलय और सरकार में राजद के विधायकों के शामिल होने की रूपरेखा खींची जाने लगी. हालांकि इसमें कई पेच भी है. बड़ा सवाल यह है कि राज्य में नये दल का नेतृत्व कौन करेगा? लालू प्रसाद या नीतीश कुमार? इतना तय हो गया है कि लालू-नीतीश की इस दोस्ती से भाजपा की चुनौती कम नहीं होने वाली.

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