दवा में गड़बड़ी का होता रहा शोर

स्वस्थ बिहार की राह में यह साल नये किस्म के कांटों के उभर जाने का रहा. कमोबेश पूरे साल दवाओं को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आती रहीं. यहां तक कि सरकारी स्तर पर कम गुणवत्तापूर्ण दवा की खरीद कर ली गयी और उसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ा. सरकार ने इस मामले में जांच […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 31, 2014 6:01 AM
स्वस्थ बिहार की राह में यह साल नये किस्म के कांटों के उभर जाने का रहा. कमोबेश पूरे साल दवाओं को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आती रहीं. यहां तक कि सरकारी स्तर पर कम गुणवत्तापूर्ण दवा की खरीद कर ली गयी और उसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ा. सरकार ने इस मामले में जांच बिठायी और उसके आधार पर एक अधिकारी को बरखास्त किया गया और दस को सस्पेंड किया गया.
इससे यह बात सामने आयी कि मरीजों की जान को जोखिम में डालकर तिजोरी भरने वाली मन:स्थिति गहरी बैठी हुई है. इसके चलते बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में हुईं तिब्दलियों की जगह भ्रष्टाचार की बातें चर्चा में रहीं.भागलपुर के सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीज की मौत के बाद नकली या कम गुणवत्तापूर्ण दवाओं का मामला सामने आया था. अदालत के निर्देश पर मामले की जांच करायी गयी. अव्वल तो यह है कि इस साल सरकार के स्तर पर कई ऐसे काम किये जाने थे जिससे स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में एक नया आयाम जुड़ता. इस वर्ष यह रेखांकित करने वाली बात सामने आयी कि राज्य में प्रजनन दर में 0.4 फीसदी की गिरावट आयी है. इससे पता चलता है कि बिहार के लोगों में स्वास्थ्य और भविष्य को लेकर चेतना आ रही है.
दूसरी बात गौर करने लायक है कि यहां शिशु मृत्यु दर मोटे तौर पर राष्ट्रीय स्तर के आसपास पहुंच गया है. राष्ट्रीय स्तर पर प्रति एक हजार नवजात बच्चों पर यह 42 बच्चों का है तो बिहार में यह 43 है. ये आंकड़े भले थोड़ी तसल्ली दे जायें पर चिंता की बात यह है कि बिहार के अपेक्षाकृत पिछड़े इलाकों में शिशु मृत्यु दर कहीं ज्यादा है. मसलन पटना में यह 21.4 है तो सहरसा में 31.5 है. इससे यह भी पता चलता है कि स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बड़ा गैप बना हुआ है. यह सही है कि अस्पताल पहुंचनेवाले रोगियों की तादाद में इजाफे की रफ्तार बरकरार रही है. राज्य में सभी तरह के अस्पतालों की संख्या 11559 है, जरूरत इससे कहीं ज्यादा की है.
जूनियर डॉक्टरों-नर्सो की हड़ताल
पर नहीं जाने का कोई तरीका नहीं तलाशा जा सका. इसी तरह डॉक्टरों के आधे पद खाली है. ऐसी स्थिति में अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरीजों के लिए दवाएं लिखने और रोगों की पहचान को लेकर किस तरी की दिक्कत आती होगी. राज्य में डॉक्टरों के 4851 पद में से 2461 ही नियमति डॉक्टर मौजूद हैं. इसी तरह ठेके पर डॉक्टरों के 2375 पदों में से 1594 ही भरे हुए हैं.

Next Article

Exit mobile version