पटना: राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करने के पुलिस के सपनों पर ‘उधार’ का ग्रहण लग गया है. पटना पुलिस राजधानी के 20 हेवी ट्रैफिक जोन के इलाकों में ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन यानी एएनपीआर कैमरा लगाना चाहती है, ताकि विधि-व्यवस्था, अपराध नियंत्रण और यातायात प्रबंधन में कोई प्रॉब्लम नहीं हो.
लेकिन उसकी यह योजना फिलहाल परवान चढ़ती नहीं दिखाई दे रही है. इसकी मूल वजह उधार है. एसएसपी ने कैमरा लगाने के लिए जिस एजेंसी को काम देने का फैसला किया, उस पर नगर निगम का डेढ़ करोड़ से ज्यादा का बकाया है. विज्ञापन मद में इसी बड़ी रकम के बकाया होने के कारण मेसर्स क्राफ्ट आउटडोर मीडिया प्रालि नामक यह एजेंसी डिफॉल्टर की श्रेणी में है.
जब एसएसपी ने इस काम के लिए नगर निगम से एनओसी देने का आग्रह किया, तो इसी ‘उधार’ को आधार बना कर नगर आयुक्त कुलदीप नारायण ने एसएसपी जितेंद्र राणा को खरी-खरी कह दिया है कि जिस एजेंसी को आपने कैमरा लगाने का काम सौंपा है, उसके ऊपर 31 मार्च, 2014 तक एक करोड़ 69 लाख 53 हजार 579 रुपये विज्ञापन शुल्क के मद में निगम का बकाया है. मालूम हो कि एसएसपी ने 15 दिसंबर को इस संबंध में पत्र लिखा है. इसके जवाब में शुक्रवार को भेजे गये पत्र में नगर आयुक्त ने लिखा है कि जब तक एजेंसी के द्वारा निगम का पूर्ण बकाया का भुगतान नहीं कर दिया जाता, तब तक हम उस एजेंसी को एनओसी नहीं जारी कर सकते हैं. ऐसे में एसएसपी को अब दूसरी एजेंसी को काम सौंपना होगा या फिर एजेंसी को बकाया रकम का भुगतान करना होगा.
कैसे काम करता है एएनपीआर कैमरा?
एएनपीआर यानी ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन सिस्टम से गाड़ियों के लोकेशन मिलने में काफी मदद मिलती है. पुलिस इस सिस्टम में वांटेड वाहनों के नंबर डाल देती है, जब भी वांटेड नंबरों की गाड़ी सिस्टम को दिखाई देती है, उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम को अलर्ट मैसेज मिल जाता है. इससे पीसीआर अपराधियों को भागने से पहले ही काबू कर सकती है और आपराधिक वारदात में शामिल वाहनों को पकड़ सकती है. एएनपीआर सिस्टम लगने पर ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों का ऑटोमेटिक चालान हो सकता है, क्योंकि ट्रैफिक नियम तोड़ने वाले वाहन चालक की गाड़ी का नंबर सिस्टम में नोट हो जाता है.