JDU के चार बागियों की विधायकी बहाल
हाइकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष का फैसला पलटा पटना : पटना हाइकोर्ट के एकलपीठ ने बिहार विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी के फैसले को निरस्त करते हुए जदयू के चार बागी विधायकों की विधानसभा की सदस्यता फिर से बहाल कर दी है. ये विधायक हैं ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू (बाढ़), नीरज कुमार सिंह बबलू (छातापुर), राहुल शर्मा […]
हाइकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष का फैसला पलटा
पटना : पटना हाइकोर्ट के एकलपीठ ने बिहार विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी के फैसले को निरस्त करते हुए जदयू के चार बागी विधायकों की विधानसभा की सदस्यता फिर से बहाल कर दी है.
ये विधायक हैं ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू (बाढ़), नीरज कुमार सिंह बबलू (छातापुर), राहुल शर्मा (घोसी) और रवींद्र राय (महुआ). मंगलवार को न्यायाधीश ज्योति शरण ने यह फैसला सुनाया.
हाइकोर्ट ने कहा कि चारों विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए स्पीकर ने जो आधार बताये थे, वे सही नहीं थे. हाइकोर्ट ने एक नवंबर, 2014 को सदस्यता रद्द करने के स्पीकर के फैसले को निरस्त करते हुए चारों विधायकों की सदस्यता फिर से बहाल करने के साथ सारी सुविधाएं जल्द मुहैया कराने का निर्देश भी दिया है.
हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्यसभा उपचुनाव में चारों विधायकों ने दल विरोधी काम नहीं किया था. चारों विधायकों को हटाने में जिस 10वीं अनुसूची का जिक्र किया गया था, उसमें दल-बदल होता, तो यह मान्य होता, लेकिन इन चारों सदस्यों ने दल-बदल नहीं किया था. इसलिए इसे 10वीं अनुसूची का उल्लंघन नहीं माना जायेगा. इसमें धारा 14 का भी उल्लंघन नहीं हुआ है.
इन सदस्यों ने कोई लाभ पाने के लिए यह काम नहीं किया था, इसलिए विधायकों पर एंटी डिफेक्शन लॉ लागू नहीं होता है.
इन विधायकों ने राज्यसभा उपचुनाव में दल के एक प्रत्याशी शरद यादव के खिलाफ वोट नहीं किया था और न ही उनके खिलाफ कोई प्रत्याशी खड़ा किया था. इस आधार पर उन्होंने दल में रह कर उनका समर्थन किया था. कोर्ट ने कहा कि इन विधायकों को बागियों की संज्ञा नहीं दी जा सकती है. यह इनका पहला कदम था. उन्होंने किसी के दबाव में नहीं, बल्कि अपने मत से मतदान किया था. राज्यसभा चुनाव में मतदान की व्यक्तिगत स्वतंत्रता रहती है. डेमोक्रेसी में डिफेंट का महत्व होता है.
इन लोगों ने सदन के बाहर भी कोई ऐसा काम नहीं किया, जिससे कहा जाये कि उन्होंने खुद दल छोड़ दिया है. जदयू के बागियों की ओर से वरीय अधिवक्ता विनोद कुमार कंठ व शशिभूषण कुमार मंगलम ने तर्क देते हुए कहा था कि विधानसभा के स्पीकर का आदेश निष्पक्ष नहीं था. स्पीकर का पद निष्पक्ष होता है, लेकिन उन्होंने निष्पक्षतापूर्ण कार्रवाई नहीं की थी. सरकार की ओर प्रधान अपर महाधिवक्ता ललित किशोर ने पक्ष रखा था.
तीन नवंबर को हाइकोर्ट में दायर की थी याचिका
बिहार विधानसभा के अध्यक्ष कोर्ट का एक नवंबर को फैसला आने के बाद जदयू के चारों बागियों ने तीन नवंबर को हाइकोर्ट में फैसले को चुनौती दी थी. पांच नवंबर को न्यायाधीश ज्योति शरण के एकलपीठ में सुनवाई के लिए मामला गया. एकलपीठ कोर्ट ने सात नवंबर से सुनवाई की तारीख तय की, लेकिन उस दिन सुनवाई नहीं हो सकी. 10 नवंबर से स्पीकर कोर्ट के फैसले के खिलाफ और बागियों की विधानसभा सदस्यता फिर से बहाल करने के लिए सुनवाई शुरू हुई.
दोनों पक्षों की दलील और सुनवाई के बाद 20 नवंबर को सुनवाई पूरी कर ली गयी थी और हाइकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.
चार और बागी जायेंगे कोर्ट
27 दिसंबर को बिहार विधानसभा की स्पीकर कोर्ट ने जदयू के चार और बागियों की विधायिकी खत्म करने का फैसला सुनाया था. ये हैं अजीत कुमार (कांटी), पूनम देवी (दीघा), राजू सिंह (साहेबगंज) और सुरेश चंचल (सकरा). ये निवर्तमान विधायक भी स्पीकर कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे.
क्या कहा हाइकोर्ट ने
चारों विधायकों ने दल विरोधी काम नहीं किया था. उन्होंने दल-बदल नहीं किया था. इन सदस्यों ने कोई लाभ पाने के लिए यह काम नहीं किया था. इसलिए विधायकों पर एंटी डिफेक्शन लॉ लागू नहीं होता है.
इन विधायकों ने राज्यसभा उपचुनाव में दल के एक प्रत्याशी शरद यादव के खिलाफ वोट नहीं किया था और न ही उनके खिलाफ कोई प्रत्याशी खड़ा किया था. इन्होंने किसी के दबाव में नहीं, बल्कि अपने मत से मतदान किया था.
क्या कहा था स्पीकर कोर्ट ने
चारों विधायकों ने राज्यसभा उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ उम्मीदवार उतारे, उनके प्रस्तावक बने, पोलिंग एजेंट व इलेक्शन एजेंट बने. दल के अधिकृत उम्मीदवारों को हराने के लिए प्रत्याशी खड़ा करना इस बात को साफ करता है कि इनका दल के निर्णय-नीतियों में न तो आस्था है और न ही विश्वास है. उनके इस काम व व्यवहार से स्पष्ट है कि वे अपने दल जदयू से स्वेच्छा से परित्याग किया है.
संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करूंगा : विस अध्यक्ष
हाइकोर्ट के फैसले पर स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने संक्षिप्त टिप्पणी की. कहा, मैंने फैसले के बारे में सुना है. इस मामले को लेकर अत्यंत गंभीर हूं. पार्लियामेंट्री डेमोक्रेटिक सिस्टम को मजबूत करने का प्रयास करूंगा.
निर्णय सर्वमान्य,सदस्यता बहाली का स्वागत: सीएम
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह हाइकोर्ट का निर्णय है. चार विधायकों की सदस्यता बहाल हुई है. इसका मैं स्वागत करता हूं. पार्टी के खिलाफ काम करनेवाले पर कार्रवाई की बात मैंने जरूर कही थी, पर इस तरह की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए.
जदयू के बागियों का भाजपा में स्वागत : मोदी
भाजपा नेता सुशील मोदी ने जदयू के उन चारों बागीविधायकों को भाजपा में शामिल होने का न्योता दिया है, जिनकी सदस्यता पटना हाइकोर्ट ने मंगलवार को बरकरार रखने का फैसला सुनाया है.
उन्होंने कहा कि जदयू की अल्पमत सरकार से चार विधायक भी अब बाहर हो गये हैं. हाइकोर्ट के इस फैसले से सरकार को भारी झटका लगा है. साफ हो गया है कि इन चारों विधायकों की सदस्यता समाप्त करने के लिए नीतीश कुमार ने विधानसभा अध्यक्ष पर दबाव बनाया था.