केंद्रीय कोल मंत्रालय से आवंटित कोटा हो रहा रद्द, कोयला नहीं उठा रहा बिहार

पटना: केंद्रीय कोल मंत्रालय की तरफ से हर साल राज्य सरकार को एक निश्चित मात्र में कोयला का आवंटन कराया जाता है. कोयला छोटे और मध्यम उद्योगों के उपयोग के लिए सरकारी दर पर दिया जाता है,लेकिन खनन एवं भूतत्व विभाग की तरफ से आवंटित इस कोटा का उठाव नहीं होने के कारण यह तीन-चार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2015 6:20 AM
पटना: केंद्रीय कोल मंत्रालय की तरफ से हर साल राज्य सरकार को एक निश्चित मात्र में कोयला का आवंटन कराया जाता है. कोयला छोटे और मध्यम उद्योगों के उपयोग के लिए सरकारी दर पर दिया जाता है,लेकिन खनन एवं भूतत्व विभाग की तरफ से आवंटित इस कोटा का उठाव नहीं होने के कारण यह तीन-चार साल से लैप्स हो जा रहा है. इस साल भी केंद्रीय कोल मंत्रलय ने 3.85 लाख टन कोयला का कोटा राज्य के लिए निर्धारित किया है, लेकिन कोटा को उठाने के लिए किसी एजेंसी को अभी तक नामित नहीं किये जाने के कारण इसका उठाव नहीं हो रहा है. इस वजह से इस साल भी इस कोटा के लैप्स होने की संभावना है. इसके मद्देनजर कोल मंत्रलय ने राज्य सरकार को पत्र लिखा है.
पत्र में कहा गया है कि अगर खनन विभाग ने इस महीने के अंत तक कोयला उठाव करने के लिए किसी एफएसए (फ्यूल सप्लाइ एजेंसी) को नियुक्त नहीं किया,तो कोटा लैप्स कर जायेगा.
खनिज निगम का ठप होना भी कारण
कुछ साल पहले बिहार राज्य खनिज विकास निगम और बिस्कोमान को केंद्र की तरफ से आवंटित होने वाले इसे कोटे का उठाव करने के लिए नामित एजेंसी बनाया गया था, लेकिन धीरे-धीरे खनिज निगम की हालत काफी खराब हो गयी है. पिछले दो-तीन साल से स्थिति यह है कि इसमें न कोई अधिकारी हैं और न ही कोई कर्मचारी हैं. यहां तक की इसका कोई अपना कार्यालय तक नहीं है. इस वजह से इसके माध्यम से होने वाली तमाम गतिविधियां या सरकारी क्रिया-कलाप भी खत्म हो गयी है. इसके कार्यो में केंद्रीय कोटा के कोयला का उठाव करना भी अहम था. बिस्कोमान को खनिज निगम के साथ मिल कर इसका उठाव करना था, लेकिन राज्य खनिज निगम की ही हालत खास्ता होने से बिस्कोमान ने भी इसमें अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की. केंद्रीय कोटा के कोयला का उठाव नहीं होना भी इसका प्रमुख कारण है.
सभी डीएम से मांगी है जानकारी
इस संबंध में विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इस बार केंद्रीय कोटा का उठाव करने के लिए सभी डीएम और उद्योग विभाग से जानकारी मांगी गयी है. सभी डीएम से अपने-अपने जिले में कोयले की खपत या कोयला पर आधारित लघु उद्योगों की जानकारी मांगी है ताकि इस आधार पर कोयला की कुल खपत का सही आकलन किया जा सके,लेकिन अभी तक रिपोर्ट नहीं आयी है.
छोटे उद्योगों को हो रहा नुकसान
केंद्रीय कोटा के कोयला का उठाव नहीं होने से राज्य में छोटे और मध्यम उद्योगों को सरकारी दर पर कोयला नहीं मिल रहा है. इससे सबसे ज्यादा ईंट-भट्टा उद्योग को फायदा मिलता. इन्हें बाजार मूल्य पर कोयला नहीं खरीदना पड़ता. राज्य में ईंट-भट्टों की संख्या करीब छह हजार है. इन्हें सरकारी दर से करीब चार गुना अधिक मूल्य पर बाजार से कोयला खरीदना पड़ता है. कोयला का सरकारी दर करीब ढ़ाई हजार रुपये टन है जबकि बाजार मूल्य करीब 8500-9000 रुपये प्रति टन है. हालांकि उद्योगों को सीधे कोल फील्ड या कोल कंपनी से कोयला मंगवाने की आजादी है, लेकिन कम खपत वाले या छोटे उद्योगों को झारखंड या अन्य किसी कोल फिल्ड से कोयला मंगवाना काफी महंगा पड़ेगा. ऐसे में ये बाजार से ही कोयला खरीदने को मजबूर होते हैं.
पदाधिकारियों की बैठक शुक्रवार को होगी. इस संबंध में उचित और ठोस निर्णय विभाग लेगा. इसके लिए बेहतर प्रयास किया जायेगा.
राम लखन राम रमण ,मंत्री,खनन एवं भूतत्व विभाग
खनिज निगम का ठप होना भी कारण
कुछ साल पहले बिहार राज्य खनिज विकास निगम और बिस्कोमान को केंद्र की तरफ से आवंटित होने वाले इसे कोटे का उठाव करने के लिए नामित एजेंसी बनाया गया था, लेकिन धीरे-धीरे खनिज निगम की हालत काफी खराब हो गयी है. पिछले दो-तीन साल से स्थिति यह है कि इसमें न कोई अधिकारी हैं और न ही कोई कर्मचारी हैं. यहां तक की इसका कोई अपना कार्यालय तक नहीं है. इस वजह से इसके माध्यम से होने वाली तमाम गतिविधियां या सरकारी क्रिया-कलाप भी खत्म हो गयी है. इसके कार्यो में केंद्रीय कोटा के कोयला का उठाव करना भी अहम था. बिस्कोमान को खनिज निगम के साथ मिल कर इसका उठाव करना था, लेकिन राज्य खनिज निगम की ही हालत खास्ता होने से बिस्कोमान ने भी इसमें अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की. केंद्रीय कोटा के कोयला का उठाव नहीं होना भी इसका प्रमुख कारण है.
सभी डीएम से मांगी है जानकारी
इस संबंध में विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इस बार केंद्रीय कोटा का उठाव करने के लिए सभी डीएम और उद्योग विभाग से जानकारी मांगी गयी है. सभी डीएम से अपने-अपने जिले में कोयले की खपत या कोयला पर आधारित लघु उद्योगों की जानकारी मांगी है ताकि इस आधार पर कोयला की कुल खपत का सही आकलन किया जा सके,लेकिन अभी तक रिपोर्ट नहीं आयी है.
छोटे उद्योगों को हो रहा नुकसान
केंद्रीय कोटा के कोयला का उठाव नहीं होने से राज्य में छोटे और मध्यम उद्योगों को सरकारी दर पर कोयला नहीं मिल रहा है. इससे सबसे ज्यादा ईंट-भट्टा उद्योग को फायदा मिलता. इन्हें बाजार मूल्य पर कोयला नहीं खरीदना पड़ता. राज्य में ईंट-भट्टों की संख्या करीब छह हजार है. इन्हें सरकारी दर से करीब चार गुना अधिक मूल्य पर बाजार से कोयला खरीदना पड़ता है. कोयला का सरकारी दर करीब ढ़ाई हजार रुपये टन है जबकि बाजार मूल्य करीब 8500-9000 रुपये प्रति टन है. हालांकि उद्योगों को सीधे कोल फील्ड या कोल कंपनी से कोयला मंगवाने की आजादी है, लेकिन कम खपत वाले या छोटे उद्योगों को झारखंड या अन्य किसी कोल फिल्ड से कोयला मंगवाना काफी महंगा पड़ेगा. ऐसे में ये बाजार से ही कोयला खरीदने को मजबूर होते हैं.
पदाधिकारियों की बैठक शुक्रवार को होगी. इस संबंध में उचित और ठोस निर्णय विभाग लेगा. इसके लिए बेहतर प्रयास किया जायेगा.
राम लखन राम रमण ,मंत्री,खनन एवं भूतत्व विभाग

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