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बड़ा सवाल: आखिर गलत कौन? महापौर या नगर निगम आयुक्त पांच साल में बदले छह आयुक्त

पटना: बीते पांच वर्षो में पटना नगर निगम सकारात्मक कार्यो के बजाय विवादों को लेकर अधिक चर्चा में रहा है. वर्ष 2005 से 2010 तक जहां नगर निगम ने तीन नगर आयुक्त देखें, वहीं मेयर अफजल इमाम के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2010 से 2015 के बीच छह नगर आयुक्त बदल दिये गये. 3 मई, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2015 7:07 AM
पटना: बीते पांच वर्षो में पटना नगर निगम सकारात्मक कार्यो के बजाय विवादों को लेकर अधिक चर्चा में रहा है. वर्ष 2005 से 2010 तक जहां नगर निगम ने तीन नगर आयुक्त देखें, वहीं मेयर अफजल इमाम के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2010 से 2015 के बीच छह नगर आयुक्त बदल दिये गये.
3 मई, 2010 को जब अफजल इमाम पहली बार मेयर बने, तो उस वक्त मनीष कुमार नगर आयुक्त थे. पद संभालने के बाद ही उनका आयुक्त से विवाद शुरू हो गया. स्थिति इतनी बिगड़ी कि मनीष कुमार ने सार्वजनिक रूप से मेयर पर कमेंट करते हुए कहा कि अगर उनका इतिहास जानना हो, तो आलमगंज थाने चले जाइए.
इसके बाद सरकार ने मनीष कुमार को हटा कर श्रीधर चेरीबोलू को आयुक्त बनाया, मगर वह भी अधिक दिन नहीं रह सके.
उनके बाद आदेश तितरमारे को आयुक्त बने. उनसे भी मेयर का विवाद हुआ तो तितरमारे ने सरकार को चिट्ठी लिख संचिका में हेरफेर का आरोप लगाया.
इनके बाद दिवेश सहेरा आयुक्त बनाये गये, मगर विवादों की वजह से उनका कार्यकाल भी सीमित ही रहा. उनके बाद आये पंकज कुमार पाल ही करीब डेढ़ साल तक आयुक्त रह सके. कुलदीप नारायण भी करीब पौने दो साल तक आयुक्त रहे.
विवादों के बीच ही आये कुलदीप नारायण
कुलदीप नारायण ने भी विवादों के बीच ही नगर निगम में कदम रखा. उनका मेयर के साथ विवाद होटल बुद्धा इन की नापी के दौरान चर्चा में आया. हाइकोर्ट के आदेश पर अवैध भवनों पर चल रही कार्रवाई के दौरान ही इस होटल की नापी के दौरान कुलदीप नारायण और अफजल इमाम पहली बार आमने-सामने खड़े दिखे. उसके बाद लगातार उनके संबंधों में तल्खी आती चली गयी. कमिश्नर पर आरोप लगाया जाता रहा कि जनहित का कोई काम नहीं हो रहा. इसको लेकर स्थायी समिति के सदस्यों ने हाइकोर्ट में केस भी दायर किया है. कमिश्नर पर मेयर के खिलाफ पार्षदों को भड़काने का आरोप भी लगा. अविश्वास प्रस्ताव में मेयर की जीत के बाद कटुता और बढ़ गयी. पूरा निगम दो खेमों में बंट गया. उसके बाद दोनों एक-दूसरे की बुलायी गयी स्थायी समिति व बोर्ड
बैठकों का बहिष्कार करने लगे. मेयर-कमिश्नर के बीच संवादहीनता का हाल यह था कि दोनों एक-दूसरे पर बैठक में अभद्र शब्दों का प्रयोग किये जाने का आरोप लगाते थे. इसको लेकर बैठकों की वीडियोग्राफी भी करायी जाती थी.

कमिश्नर के आदेश

पर परिसर में अलग से लगाये गये सीसीटीवी कैमरे को हटाये जाने पर जबरदस्त ड्रामा हुआ. इन दोनों के बीच मामला सुलझाने को लेकर डीएम को भी दायित्व सौंपा गया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. डीएम ने भी अपने ऑर्डर में नगर निगम के इन दोनों शीर्षस्थों के बीच सामंजस्य की कमी व संवादहीनता को जिम्मेदार ठहराया था. बाद में सरकार ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए कुलदीप नारायण को निलंबित कर दिया.

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