इन नेताओं ने कहा है कि मांझी सरकार को खुल कर समर्थन करने से आगामी चुनाव में भाजपा को लाभ की जगह नुकसान अधिक होगा. साथ ही चंद दिन बाद आरंभ हो रहे संसद के बजट सत्र में सरकार को अनावश्यक परेशानी भी उठानी पड़ सकती है.
जदयू ने पहले ही संकेत दिया है कि यदि बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने या मांझी सरकार को बचाने की भाजपा ने कोशिश की, तो वह संसद के बजट सत्र को चलने नहीं देगा. इसके लिए क्षेत्रीय दलों के साथ संयुक्त रूप से सदन में सरकार को घेरने की रणनीति बनेगी. केंद्र सरकार को राज्यसभा में बहुमत हासिल नहीं है.
ऐसे में विपक्ष ने संयुक्त रूप से सरकार की घेराबंदी की, तो उसके लिए बजट को पास कराना भी मुश्किल हो सकता है. इसके पहले से ही सरकार भूमि अधिग्रहण जैसे विधेयकों को लेकर विपक्ष के निशाने पर चल रही है. भाजपा में इस बात को लेकर भी बहस है कि जब मांझी के साथ पप्पू यादव और साधु यादव खुल कर आये हैं, ऐसे में भाजपा का सामने आना कितना उचित होगा.
भाजपा ने राजद पर जंगल राज कायम करने का आरोप लगा रही है, जबकि यह दोनों नेता राजद के शासन काल में रसूखवाले नेता माने जाते थे. इधर, विधानसभा में दलगत सदस्यों की संख्या भी आगे बढ़ने से भाजपा के कदम रोक रही है. सदन में भाजपा के 87 विधायक हैं, जबकि जदयू के 111 सदस्यों में विधायक दल की बैठक में 97 विधायकों ने नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार किया है. ऐसे में जब तक आधिकारिक तौर पर जदयू के दो तिहाई सदस्य टूट कर मांझी खेमे में नहीं आ जाते, तब तक भाजपा के समक्ष दुविधा बनी हुई रहेगी.