बच गयी राजद की इज्जत, धरी रही सारी आशंका
पटना : सीएम मांझी के विधानसभा में बहुमत साबित करने के पहले ही इस्तीफा देने से राजद में टूट की आशंका खत्म हो गयी. गुरुवार की देर रात तक राजद के 24 विधायकों में चार विधायकों के मांझी खेमे में जाने की जोरदार चर्चा रही थी. इसके एक दिन पहले अब्दुल बारी सिद्दीकी के आवास […]
पटना : सीएम मांझी के विधानसभा में बहुमत साबित करने के पहले ही इस्तीफा देने से राजद में टूट की आशंका खत्म हो गयी. गुरुवार की देर रात तक राजद के 24 विधायकों में चार विधायकों के मांझी खेमे में जाने की जोरदार चर्चा रही थी.
इसके एक दिन पहले अब्दुल बारी सिद्दीकी के आवास पर आयोजित लंच हो या फिर विजय कुमार चौधरी के आवास पर डिनर, इसमें राजद के तीन विधायक शामिल नहीं हुए. गुरुवार को राजद के एक अजय कुमार बुल्गानिन का बयान आया कि मैं मांझी सरकार को समर्थन कर सकता हूं. सबसे अजीब स्थिति राघवेंद्र प्रताप सिंह को लेकर बन गयी थी. राघवेंद्र के तेवर से राजद के नेता भी परेशान थे. हालांकि, अंतिम समय तक विधायक दल के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी कहते रहे कि दल के सभी विधायक एकजुट हैं और पार्टी के साथ रहेंगे.
गुरुवार की रात करीब 12 बजे खबर आयी कि पूर्व विधायक राहुल शर्मा के साथ राजद के दो विधायक मुख्यमंत्री से मिलने 01 अणो मार्ग पहुंचे हैं. लेकिन, शुक्रवार को जब मांझी के इस्तीफे की घोषणा हो गयी, तो राजद नेताओं के चेहरे पर भी राहत की लकीरें दिखीं. राजद विधायकों में टूट नहीं होने का प्रमुख कारण मांझी कैंप में निर्धारित विधायकों का नहीं जुट पाना था. राजद में यदि टूट होती, तो उसके विधायकों पर भी दल-बदल कानून की तलवार लटक जाती. पार्टी ने विधायकों को एकजुट करने के लिए व्हीप जारी कर रखा था.
दल-बदल कानून के प्रावधानों के तहत राजद में टूट के लिए आधिकारिक तौर पर 16 विधायकों की जरूरत होती. लेकिन, दल में मांझी से हमदर्दी रखनेवाले विधायकों की संख्या इतनी थी नहीं. जो इक्के-दुक्केविधायकों के नाम सामने आ रहे थे, उन लोगों ने रिस्क लेना उचित नहीं समझा.
सूत्र बताते हैं कि मांझी से हमदर्दी रखनेवाले विधायकों ने गुरुवार की रात मुख्यमंत्री को अपनी मजबूरियां बता दी थीं. यदि गुप्त मतदान की व्यवस्था होती, तो शायद राजद के मांझी समर्थक विधायक अपना पत्ता खोल भी सकते थे. लेकिन, जब यह साफ हो गया कि विधानसभा के अंदर गुप्त मतदान की व्यवस्था नहीं की गयी है, तो सारे विधायकों ने चुप रहना ही बेहतर समझा. जानकार बताते हैं कि रणनीति के तहत मांझी खेमे ने अपने समर्थक विधायकों की संख्या न तो विधानसभा सचिवालय को बतायी थी और न ही राजभवन को.
हालांकि, वे लगातार बहुमत का दावा कर रहे थे. विधानसभा सचिवालय की मजबूरी थी कि मुख्यमंत्री की ओर से उनके समर्थक विधायकों की संख्या नहीं बतायी गयी, जिससे सदन में उनके बैठने का स्थान निर्धारित किया जाता. तकनीकी रूप से विधायक चाहे राजद के हों या जदयू के, उन्हें व्हीप के अनुसार अपने दल के साथ बैठना और वोट करना मजबूरी था. यह ऐसा तकनीकी पेच था, जिसके कारण राजद के नाराज विधायकों ने चुप रहना ही उचित समझा और पार्टी एक टूट से बच गयी.