12.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आखिर क्यों नहीं टूटे नीतीश समर्थक, काम आ गयी JDU की रणनीति

पटना : जिस जदयू में टूट करा कर अपनी सरकार बचाये रखने की रणनीति पर काम कर रहा मांझी खेमा मैदान में उतरने से पहले ही सरेंडर कर दिया. मंत्री के 27 पद खाली होने के बावजूद मांझी खेमे में जदयू विधायकों की संख्या 12 से अधिक बढ़ नहीं पायी. गुरुवार की देर रात तक […]

पटना : जिस जदयू में टूट करा कर अपनी सरकार बचाये रखने की रणनीति पर काम कर रहा मांझी खेमा मैदान में उतरने से पहले ही सरेंडर कर दिया. मंत्री के 27 पद खाली होने के बावजूद मांझी खेमे में जदयू विधायकों की संख्या 12 से अधिक बढ़ नहीं पायी. गुरुवार की देर रात तक विधायकों को मनाने-रिझाने का सिलसिला चलता रहा. खबर आयी कि कुछ विधायक चेहरे पर गमछा डाल 01, अणो मार्ग की ओर जाते देखे गये.
शुक्रवार की सुबह तक यह संशय बना हुआ था कि आखिरकार मांझी खेमे में जदयू के कितने विधायक जाने को तैयार हुए. निगाहें राजद पर भी थीं. लेकिन, सुबह करीब 10 बजे मांझी के इस्तीफे से यह साबित हो गया कि जदयू में टूट की सारी कोशिशें नाकाम सिद्ध हुईं.
मांझी खेमे का 140 विधायकों के समर्थन का दावा भी हवा-हवाई साबित हुआ. अंतिम समय तक मांझी के पक्ष में जो 12 विधायक खड़े रहे, उनमें कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह के दो विधायक बेटे सुमित कुमार सिंह और अजय प्रताप भी शामिल थे. इनके अतिरिक्त मंत्री नीतीश मिश्र, वृशिण पटेल, शाहिद अली खान, दिनेश कुशवाहा, ज्योति मांझी, राजीव रंजन, रामेश्वर पासवान, राजेश्वर राज और अनिल कुमार थे. इनमें चार दिनेश कुशवाहा, राजीव रंजन, राजेश्वर राज व अनिल कुमार जदयू से निलंबित हैं.
मांझी खेमे ने नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के इसलामपुर क्षेत्र के विधायक राजीव रंजन को नया मुख्य सचेतक नियुक्त किया था. लेकिन, विधानसभा अध्यक्ष ने उन्हें यह कहते हुए मान्यता नहीं दी कि मुख्य सचेतक नियुक्त करने की सिफारिश सत्ताधारी पार्टी की ओर से की जाती है. जदयू ने श्रवण कुमार के अतिरिक्त किसी और के नाम की सिफारिश नहीं की है.
राजीव रंजन को मुख्य सचेतक नहीं माने जाने से जदयू विधायकों पर मांझी का साथ देने का विधिक दबाव भी नहीं रह गया था. दूसरी ओर मांझी ने अंतिम दिन भी खुले मंच से मंत्री पद का प्रलोभन दिया, लेकिन विधायक टस-से-मस नहीं हुए. इसके पहले पीएम नरेंद्र मोदी के मिलने के बाद मांझी ने दिल्ली में मंत्री व दो डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर दिया था.
सूत्रों के अनुसार विधायकों के समक्ष यह संशय की स्थिति बनी रही कि छह माह बाद विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें किस दल का टिकट मिल पायेगा. जदयू विधायकों के समक्ष एक विश्वास यह था कि यदि जदयू और राजद के बीच चुनावी गंठबंधन या विलय की बात बनी, तो भाजपा विरोध के थोक वोट के वह हकदार होंगे.
हालांकि, भाजपा ने मांझी सरकार को समर्थन देने की सार्वजनिक तौर पर एलान कर जदयू विधायकों को मांझी खेमे में आने का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश की थी. लेकिन, भाजपा के इस दावं को समझते हुए नीतीश कुमार के रणनीतिकार भी रात भर सतर्क रहे. उनकी नजर ढुलमुल रवैयेवाले विधायकों पर बनी हुई थी. सुबह जब सत्र आरंभ होने के घंटे भर पहले मांझी के राजभवन जाने की सूचना आयी, तो मांझी के समर्थन में आने का दावा करनेवाले विधायकों के भी हौसले पस्त हो गये. तमाम ऑफर के बावजूद जदयू, राजद और कांग्रेस की संयुक्त रणनीति ने मांझी के दावों की हवा निकाल दी.
खास-खास बातें
दो-तिहाई विधायक नहीं जुटने पर दल बदल कानून के दायरे में आने का डर
दल से अलग होने पर छह माह बाद होनेवाले चुनाव में टिकट पर अनिश्चितता
राजद के साथ गंठबंधन या विलय हुआ, तो भाजपा विरोध का थोक वोट मिलने की संभावना
ढुलमुल रवैयेवाले विधायकों पर
पार्टी नेतृत्व की पैनी नजर

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें