देर रात ही हो गया था निर्णय, जानें क्या है इस्तीफे के पीछे की कहानी
पटना : मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के इस्तीफे की पटकथा गुरुवार की देर रात करीब दो बजे ही लिख दी गयी थी. एक बजे रात्रि तक मुख्यमंत्री आवास पर मांझी समर्थक मंत्री जदयू और राजद के बागी विधायकों का इंतजार करते रहे. इक्के-दुक्के विधायक आये भी, लेकिन जिस संख्या का इंतजार था, वह पूरा हो […]
पटना : मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के इस्तीफे की पटकथा गुरुवार की देर रात करीब दो बजे ही लिख दी गयी थी. एक बजे रात्रि तक मुख्यमंत्री आवास पर मांझी समर्थक मंत्री जदयू और राजद के बागी विधायकों का इंतजार करते रहे. इक्के-दुक्के विधायक आये भी, लेकिन जिस संख्या का इंतजार था, वह पूरा हो नहीं पाया. इसी समय कोर कमेटी की बैठक हुई. कोर कमेटी में मांझी और उनकी सरकार के मंत्री नरेंद्र सिंह, वृशिण पटेल, नीतीश मिश्र, महाचंद्र प्रसाद सिंह, सम्राट चौधरी, डॉ भीम सिंह और शाहिद अली खान शामिल थे.
कोर कमेटी की बैठक में सदन में विश्वासमत पेश करने की जगह राज्यपाल के समक्ष जाकर अपना इस्तीफा सौंप देने की रणनीति पर सहमति जतायी. सुबह एक बार फिर जुटने की बात तय कर मंत्री गण अपने-अपने घर लौट गये. सुबह नौ बजे सभी मंत्री एक अणो मार्ग पर एकत्र हुए और एक बार फिर मंत्रणा हुई. इस्तीफा के अलावा कोई चारा नहीं देख 10 मिनट के अंदर ही मुख्यमंत्री इस्तीफा देने राजभवन के लिए निकल पड़े. मांझी राजभवन अकेले गये. वह सीधे राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी से मुलाकात की और अपना इस्तीफा सौंप दिया.
दरअसल, मांझी खेमे को यह उम्मीद थी कि मंत्री पद के लोभ में यदि दर्जन भर विधायक भी पाला बदलने को तैयार हो गये, तो सरकार को बचाने में वह सफल हो जायेंगे. सदन में बहुमत के लिए 117 विधायकों की जरूरत थी. उनके पास आधिकारिक तौर पर 12 विधायक थे. 87 विधायक भाजपा के थे. यह संख्या हो जा रही थी 99. पटना उच्च न्यायालय में आठ बागी विधायकों का मामला लंबित था. मांझी खेमे को उम्मीद थी कि कोर्ट इन विधायकों को भी वोट करने का अधिकार दे देगा. यदि ऐसा होता, तो मांझी समर्थक विधायकों की संख्या बढ़ कर 107 हो जाती. अब बहुमत के लिए सिर्फ 10 विधायकों की जरूरत थी. लेकिन, गुरुवार का दिन मांझी के लिए लकी साबित नहीं हुआ. मांझी खेमे को झटका पर झटका लग रहा था.
रणनीतिकार मांझी को बहुमत के जुगाड़ का भरोसा दिलाते रहे. लेकिन, एक -एक विधायकों की उम्मीद पाले मांझी को यह समझते देर नहीं लगी कि उनके हाथ में 12 से अधिक विधायक नहीं हैं. एक ओर कोर्ट ने विश्वासमत पेश किये जाने के एक दिन पहले आठ पूर्व विधायकों को वोट करने के अधिकार देने से मना कर दिया था. वहीं विधानसभा सचिवालय ने गुप्त मतदान की प्रक्रिया को अमान्य कर दिया और जदयू, कांग्रेस और राजद ने व्हीप जारी कर अपने सभी विधायकों को सदन में मांझी सरकार के विश्वास मत के खिलाफ वोट करने का निर्देश दिया था.