।।पंकज मुकाती।।
पटनाः नीतीश कुमार ने माफ़ी के साथ अपनी पारी फिर शुरू की है. चुनौती इतनी है कि जरा सी चूक उन्हें लगातार माफ़ी की तरफ ले जा सकती है. उन्होंने माना इस्तीफा देना गलती थी. इस बार शपथ के साथ ही अग्निपथ पर हैं. एक महीने के संघर्ष के बाद उन्होंने अपने मांझी से सत्ता की नाव खीच ही ली. ये नाव बोझ से भरी हुई है. इसके पहले तीन बार की शपथ से ये पथ अलग है. पिछली बार वे सीधे जनता से चुनकर आये थे. इस बार वे ब्रेक के बाद पार्टी की बगावत से जूझ कर लौटे हैं. जनता के मन में इस शपथ को लेकर क्या है, नीतीश की छवि कितनी सही, कितनी गलत है.
ये अभी कोई नहीं जानता.ये पार्टी के भीतर से मिला मत है. ये कद, जाति, भरोसा, विश्वास और धोखे की लड़ाई थी. मांझी ने कहा नीतीश ने उन्हें सत्ता से धक्का दिया, क्योंकि वे रिमोट से नहीं चल रहे थे. नीतीश हमेशा की तरह खुद कुछ नहीं बोले. पर उनके रिमोट से संचालित छवि ने परदे पर ये तस्वीर जरूर प्रचारित की कि मांझी ने पार्टी और नेता दोनों को धोखा दिया. खैर, ये कार्यकाल कई मायनो में अलग और चुनौती पूर्ण है. एक तो सामाजिक सरोकार के नाम पर उनके खड़े किये गए महादलित को सम्भालना।नीतीश ने जाति के भीतर जाति का जो ये महा पैंतरा फेंका था.
अगले चुनाव में ये वोट बैंक, उनके लिए सत्ता की चोट भी बन सकता है. क्यूंकि मांझी बीजेपी के हाथो इस वोट को जदयू से दूर ले जा सकते है. दूसरा बड़ा कारण जिस पर सबकी नजर है वह है लालू फैक्टर.लालू विरोध की राजनीति आपको हीरो, बड़ा नेता, सुशासन बाबू जैसे तमगे आसानी से दिला सकती है, और दिलाया भी. लालू राज इतना नकारात्मक दिखाया, बताया गया कि उसमे माचिस की तीली जितनी रौशनी दिखाने वाले को भी जनता सूरज मान लेती. लालू के साथ अपनी छवि बनाये रखने से ज्यादा लालू की छवि से दूरी दिखाने की चुनौती भी रहेगी.प्रत्येक फैसले के पीछे विपक्ष लालू राज ढूंढेगा.जनता के बीच ऐसी बातें तेज़ी से जगह बनाती है. विकास पुरुष कब अहंकारी में बदल जाते हैं ये पता ही नहीं चलता.
दिल्ली चुनाव नतीजे मोदी के लिए ऐसे ही साबित हुए. सबसे बड़ी परेशानी होगी अभूतपूर्व मुख्यमंत्री बन गए मांझी के फैसलों को संभालना. मांझी जो बोझ विरासत में दे गए है उससे निपटना.मांझी ने जो ताबड़तोड़ फैसले लिए हैं, उन्हें पूरा करना नामुमकिन हैं, क्योंकि वो फैसले नहीं एक बगावती जूनून था. उसके पीछे कोई सोच नहीं बस हंगामा था. उन फैसलों को लागू करने का दबाव रहेगा, नीतीश कुमार की जो कार्यशैली है उसमे ये और कठिन है.
क्योंकि वे मांझी के ऐसे फैसलों को जिनका भविष्य नहीं हैं, सिरे से कूड़े में डाल देंगे. ये प्रदेश के लिए अच्छा होगा, पर राजनीति के लिए बुरा. जो भी फैसला वो बदलेंगे एक बड़े वर्ग या कहें वोट बैंक नाराज करेगा.जैसे नियोजित शिक्षकों का वेतन, पुलिस को 13 महीने की सैलरी, टोला सेवक, कृषि सलाहकार सहित लम्बी फेहरिस्त है. इन फैसलों को बदलने का मतलब होगा जनता के बीच गरीब विरोधी छवि बना लेना.इसके साथ ही ये उनका सबसे छोटा कार्यकाल है, छोटे में कई काम निपटाना है, चुनावी साल है तो सत्ता में वापसी की चुनौती भी है. उनके शपथ में ममता बनर्जी, अखिलेशयादव सहित कई दिग्गज आये है. ये कार्यकाल नीतीश को राष्ट्रीय नेता, मोदी विरोधी धड़े का नेतृत्व सौप सकता है, तो एक गलती उन्हें हमेशा के लिए इतिहास में
धकेल सकती है.