उन्होंने कैबिनेट की प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए कहा कि रूल ऑफ एग्जिक्यूटिव बिजनेस के तहत कैबिनेट का संचालन होता है, जो संविधान से निकलता है. जिन फैसलों को निरस्त किये जाने का निर्णय लिया गया है, वे अन्यान्य मद में लिये गये फैसले थे. कैबिनेट में जो फैसला लिया जाता है, उसके लिए संबंधित प्रशासी विभाग से एक कैबिनेट नोट (मंत्रिपरिषद के लिए संलेख) आता है. इस संलेख पर यदि विधिक राय लेनी होती है, विधि विभाग से राय ली जाती है.
वित्तीय मामलों में वित्त विभाग की राय ली जाती है. सेवा इत्यादि से संबंधित मामलों में सामान्य प्रशासन विभाग मामले को देखता है और अपनी राय देता है. प्रशासी विभाग ऐसे मामलों को मंत्रिपरिषद की स्वीकृति के लिए मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग को भेजता है. मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग समीक्षा कर संबंधित विभागों द्वारा दी गयी राय को देखते हुए मंत्रिपरिषद की बैठक की कार्य सूची में शामिल करता है और उस पर मंत्रिमंडल विचार करता है और निर्णय लेता है. उन्होंने कहा कि नये सिरे से ऐसे मामलों पर विचार कर निर्णय लिया जायेगा.
अगर पूर्व की सरकार भी चाहती तो वह खुद ऐसे निर्णयों पर कुछ नहीं कर सकती थी. उन्होंने कहा कि मांझी सरकार द्वारा लिये गये इन निर्णयों को ‘नो डिसीजन’ कहा जायेगा. खबरों में आने के लिए उनके द्वारा ऐसे निर्णय लिये गये. मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार इन विषयों में समीक्षा कर मेरिट के आधार पर कोई भी निर्णय ले सकती है. उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर पुलिसकर्मियों को 13 महीने का वेतन देना है, तो यह निर्णय मेरे कार्यकाल में ही सैद्धांतिक रूप से हुआ है. इस विषय को अन्यान्य में नहीं करना चाहिए, बल्कि उसको बाकायदा कैबिनेट नोट के जरिये करना चाहिए था. वह तो नहीं हुआ, इस प्रकार के निर्णय नहीं माने जायेंगे. इसी प्रकार अन्य विषयों पर पूरी प्रक्रिया को अपना कर उचित तरीके से यदि प्रशासी विभाग प्रस्ताव लायेगा, तो इस पर मंत्रिपरिषद उचित निर्णय लेगी.