विधानसभा में बहुमत साबित करने के पहले अपने ही दल की सरकार के फैसलों को रद्द करने का उन्हें कोई नैतिक अधिकार नहीं था. भाजपा मानती है कि रद्द किये गये फैसले लागू करने योग्य थे. इस कार्रवाई से सूबे के शिक्षक, पुलिसकर्मी, होमगार्ड, किसान सलाहकार, रसोइयां, विकास मित्र, महिला, टोला सेवक, सवर्ण और पिछड़ा व अति पिछड़ा वर्ग बुरी तरह प्रभावित हुआ है. कई ऐसे निर्णय थे जिसे लागू करने में सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं बढ़ता. इसे रद्द कर नीतीश कुमार ने सबकी उम्मीदों पर प्रहार किया है. यह कहना कि निर्णय लेने के दौरान नियम व प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, महज एक बहाना है.
अगर कोई प्रक्रियागत कमी थी, तो उसे दूर किया जा सकता था. उन्होंने पूछा है कि कैबिनेट की बैठक में मुख्य सचिव व अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित थे या नहीं? अगर थे, तो संलेख में उन्होंने अपनी कोई असहमति की टिप्पणी दर्ज की है या नहीं? उन्होंने कहा है कि नीतीश कुमार पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को नीचा दिखाने के लिए बदले की कार्रवाई कर रहे हैं.
पूर्व सरकार भी जदयू की ही थी, उसी ने तमाम निर्णय लिये थे. ऐसे में नीतीश कुमार की नैतिक जिम्मेवारी बनती है वे सभी फैसलों को लागू करें. जनहित के मुद्दे नहीं दबा सकती सरकार : संख्या बल के आधार पर नीतीश सरकार जनहित के मुद्दों को दबा सकती है, इस मुगालते में वह न रहे. विधान सभा सत्र में भाजपा उनका यह मुगालता दूर कर देगी. उक्त बातें रविवार को विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता नंद किशोर यादव ने कही.