13 साल पहले ही बेकार हो गये थे अग्निशमन संयंत्र
पटना:तारामंडल में अगलगी पर नियंत्रण के लिए उपाय तो किये गये हैं, लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए. बुधवार को यूपीएस रूम में अगलगी की घटना के बाद कर्मी दमकल गाड़ियों के पहुंचने का इंतजार करते रहे. वहां काम करने वाले कर्मी भी दबी जुबान में स्वीकार कर रहे हैं कि अगर समय रहते दमकल की […]
पटना:तारामंडल में अगलगी पर नियंत्रण के लिए उपाय तो किये गये हैं, लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए. बुधवार को यूपीएस रूम में अगलगी की घटना के बाद कर्मी दमकल गाड़ियों के पहुंचने का इंतजार करते रहे. वहां काम करने वाले कर्मी भी दबी जुबान में स्वीकार कर रहे हैं कि अगर समय रहते दमकल की गाड़ियां नहीं पहुंचती, तो कुछ भी हो सकता था. वे चाह कर भी आग पर काबू नहीं पा सकते थे, क्योंकि परिसर में मौजूद संयंत्र कारगर नहीं हैं. उनका कहना था कि संयंत्र की उतनी क्षमता थी नहीं कि उससे आग पर काबू पाया जा सकता.
समाप्त हो गयी थी वैधता : तारामंडल परिसर में लगे करीब तीन दर्जन अग्निशमन संयंत्र की वैधता 2000 में ही समाप्त हो चुकी थी. 1999 में रिफिलिंग हुई थी , जो 2000 तक ही मान्य थे. इसके बाद वे शो पीस की तरह टंगे हैं. सिलिंडरों पर स्पष्ट लिखा है कि इनकी वैधता अधिक से अधिक दो वर्षो के लिए होती है. अगिAशमन विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि सिलिंडरों को एक साल में ही रिफिल कर देना चाहिए. अधिक से अधिक दो साल तक इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. दो साल तक अगर इसका इस्तेमाल नहीं भी होता है, तो इसे रिफिल कर देना चाहिए.
संयंत्र पर एक इंडिकेटर लगा होता है. इंडिकेटर का कांटा अगर हरे रंग पर है, तो यह इस्तेमाल करने योग्य है. कांटा के लाल रंग पर पहुंचते ही इसकी क्षमता खत्म हो जाती है. विशेषज्ञों ने बताया कि बड़े-बड़े हॉल के लिए सीओटू भरे सिलिंडर अगिAशमन के लिए अच्छे होते हैं.
ये सिलिंडर पांच किलो से 50 किलो तक के होते हैं. इससे आग पर काबू पाया जा सकता है. तारामंडल में एक सीज फायर सिलिंडर की क्षमता कम से कम 30 से 35 किलो की होनी चाहिए. वर्तमान में यहां नौ किलो के सिलिंडर दीवारों पर टंगे हैं.