पटना: राजधानी की सफाई में लगे नगर निगम के कर्मियों के वेतन पर छह करोड़ रुपये प्रति माह खर्च हो रहा है. निगम के सुपरवाइजर व अधिकारी के स्वीकृत 675 पदों में मात्र 231 ही कार्यरत हैं. सफाई मजदूरों के 3,496 पदों में 1,514 रिक्त हैं. ऐसे में कैसे होगी सफाई? ऊपर से राजधानीवासी शहर को सुंदर बनाने को लेकर जागरूक नहीं हैं.
यह टिप्पणी सोमवार को पटना हाइकोर्ट ने राजधानी की साफ-सफाई को लेकर दायर लोकहित याचिका की सुनवाई के दौरान की. न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा व विकास जैन के खंडपीठ ने कहा कि अकेले नगर निगम कूड़ा-कचरे की सफाई नहीं कर सकता. खंडपीठ ने आम लोगों के प्रति भी नाराजगी दिखायी. एएन कॉलेज के सामने रखे कूड़ेदान का हवाला देते हुए न्यायाधीश ने कहा कि लोग उसमें कूड़ा नहीं फेंकते हैं. सड़क पर सड़ा अंडा फेंक देते हैं. नाले में पॉलीथिन डालते हैं और इसके बाद सफाई नहीं होने की शिकायत करते हैं.
जयपुर से सीखिए
कोर्ट ने नगर विकास विभाग को फटकार लगाते हुए कहा कि विभाग को इस बात की लगातार मॉनीटरिंग करते रहना चाहिए कि कितनी राशि निगम को जारी की गयी और उसे किस मद में खर्च किया गया. विभाग के सचिव की अध्यक्षता में विशेष टीम गठित करने को कहा. इस टीम में विभागीय सचिव के अलावा निगम के अधिकारी और एक गैर सरकारी पदाधिकारी शामिल किये जायेंगे. यह टीम दो महीने में कोर्ट को बतायेगी कि किस मद में कितनी राशि खर्च की गयी. खंडपीठ ने निगम के हलफनामे को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि कई ऐसे पदों पर लोग कार्यरत हैं, जिनका कोई काम समझ में नहीं आता. खंडपीठ ने अगली सुनवाई में सालिमपुर अहरा व दलदली रोड में अब तक हुई प्रगति के बारे में जानकारी लाने को कहा. कोर्ट ने जयपुर शहर का उदाहरण देते हुए कहा कि अधिकारियों को दूसरे राज्यों से सीख लेनी चाहिए, जहां कई नयी मशीनों का प्रयोग किया जाता है.