14 जिलों में चलाया जायेगा वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्राम

पटना: दक्षिण बिहार में कम बारिश होनेवाले (रेन फेडेड) 14 जिलों में विशेष रूप से जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम (वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्राम) चलाया जायेगा. इसके तहत रेन वाटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल प्रबंधन) और स्वाइल कंजव्रेशन (मिट्टी संरक्षण) पर विशेष जोर दिया जायेगा. इसके लिए खासतौर से कार्यक्रम चलाये जायेंगे. शनिवार को मुख्यमंत्री सचिवालय के संवाद कक्ष […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 29, 2015 6:29 AM
पटना: दक्षिण बिहार में कम बारिश होनेवाले (रेन फेडेड) 14 जिलों में विशेष रूप से जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम (वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्राम) चलाया जायेगा. इसके तहत रेन वाटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल प्रबंधन) और स्वाइल कंजव्रेशन (मिट्टी संरक्षण) पर विशेष जोर दिया जायेगा. इसके लिए खासतौर से कार्यक्रम चलाये जायेंगे.

शनिवार को मुख्यमंत्री सचिवालय के संवाद कक्ष में आयोजित विशेष कैबिनेट की बैठक में इस योजना को मंजूरी दे दी गयी. पांच साल की यह योजना तीन चरणों में पूरी होगी. इसके लिए 611 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गयी जिसमें राज्य की हिस्सेदारी 61 करोड़ 30 लाख होगी. शेष रुपये केंद्र से मिलेंगे. इसके अलावा कैबिनेट में 32 प्रस्तावों को मंजूरी दी. इनमें 30 प्रस्ताव वित्तीय मामलों से संबंधित हैं, जबकि दो प्रस्ताव दो पदाधिकारियों (एक मजिस्ट्रेट और एक डॉक्टर) को बरखास्त करने से संबंधित है.

इसके अलावा सरकार ने महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए पंचम राज्य वित्त अयोग का कार्यकाल दिसंबर 2015 तक बढ़ा दिया है. वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्राम गया, नवादा, जमुई, मुंगेर, बांका, कैमूर, रोहतास, भभुआ, पटना, नालंदा, लखीसराय, शेखपुरा, जहानाबाद और अरवल में चलाया जायेगा. पहले चरण में इन जिलों के सभी गांवों में लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाया जायेगा. इन्हें पानी और मिट्टी के बचाव के उपाय बताये जायेंगे. लोगों को तालाब, पोखर और बांध की जरूरतें और इन्हें बनाने के तरीके बताये जायेंगे. किसानों को समेकित फार्मिग के गुर सिखाये जायेंगे. इसके लिए उद्यान, वानिकी और मूल कृषि के तहत फसलों को एकीकृत करके रोपने और इनके रख-रखाव के बारे में बताया जायेगा. इस कार्यक्रम की डीपीआर तैयार की जायेगी.

दूसरे चरण में जल प्रबंधन और मिट्टी संरक्षण के लिए बांध, तालाब, पोखर और छोटे तालाबों का निर्माण कराया जायेगा, ताकि इनमें बारिश के पानी को संरक्षित किया जा सके. इनमें गांवों में सामुदायिक तालाब बनाने पर भी ध्यान दिया जायेगा. इसके तहत सिंचाई के साधन विकसित कर उत्पादकता बढ़ाने पर जोर होगा. इसके अलावा व्यापक स्तर पर गोशाला निर्माण और पौधरोपण कार्यक्रम भी चलाये जायेंगे. तीसरे चरण में पहले के दोनों चरणों में हुए अच्छे कार्यो को बढ़ाया जायेगा और जो क्षेत्र छूट गये, उनमें इसे खासतौर से चलाया जायेगा.

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