उन्होंने कहा कि एक दौर था कि आंबेडकरवादी कहलाना और बनने की ललक एक फैशन की तरह था. यह आज भी उसी तरह देखा जा सकता है. उसी प्रवाह में जगजीवन राम जैसे अच्छे कार्य करने वाले का मूल्यांकन भी वह द्वेषपूर्ण ढंग से करते थे. वे उन्हें सवर्णो का पिट्ठू,आंबेडकर-दलित विरोधी तक भी उपमा दिया करते थे. यह उनकी सोच दिखाती थी, लेकिन धीरे-धीरे बाबूजी की सकारात्मक छवि लोगों की समझ में आने लगी कि उन्होंने दलित समाज के उत्थान और आंबेडकर के कार्य व सोच को भी आगे बढ़ाने का काम किया. मौके पर सुरेंद्र प्रसाद, रमाकांत प्रसाद,आशीष रजक,राजेंद्र प्रताप,संजय कुमार,अशोक प्रियदर्शी, मंजीत आनंद समेत दर्जनों प्रबुद्धजन उपस्थित थे.
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राजनेताओं में मॉडल थे जगजीवन राम
पटना: भारत में दलितों के रोल मॉडल बदलते रहे हैं. आंबेडकर व बाबू जगजीवन राम के बीच दलित चिंतक व युवा अपने आपको देखते रहे हैं. राष्ट्रीय राजनेताओं में बाबू जगजीवन राम एक मॉडल थे. उन्होंने अपने निर्णय से भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाने में मदद की. उनके व्यक्तित्व से सभी को सीख लेने […]
पटना: भारत में दलितों के रोल मॉडल बदलते रहे हैं. आंबेडकर व बाबू जगजीवन राम के बीच दलित चिंतक व युवा अपने आपको देखते रहे हैं. राष्ट्रीय राजनेताओं में बाबू जगजीवन राम एक मॉडल थे. उन्होंने अपने निर्णय से भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाने में मदद की. उनके व्यक्तित्व से सभी को सीख लेने की जरूरत है. ये बातें जगजीवन राम और उनका नेतृत्व पुस्तक के विमोचन के दौरान गांधीवादी चिंतक डॉ रजी अहमद ने कहीं.
गांधी संग्रहालय में राजेंद्र प्रसाद की पुस्तक का विमोचन अर्थशास्त्री ईश्वरी प्रसाद व गांधीवादी डॉ रजी अहमद ने संयुक्त रूप से किया. उन्होंने बाबू जगजीवन राम के व्यक्तित्व और कृतित्व का बखान करते हुए उन्हें दलितों का महान नेता और प्रखर सुधारवादी नेता बताया. लेखक राजेंद्र प्रसाद ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए जगजीवन राम को राजपुरुष की संज्ञा दी और आंबेडकर को युगपुरुष बताया.
नहीं पहुंचे रमई राम व श्याम रजक
बाबू जगजीवन राम पर लिखी गयी पुस्तक का विमोचन रमई राम,श्याम रजक और दामोदर रावत के द्वारा किया जाना था,लेकिन इन तीनों में एक भी नेता नहीं पहुंचे और न ही उनका कोई संदेश ही आया. गांधी संग्रहालय में मौजूद दलित चिंतकों द्वारा इस विषय पर कड़ी प्रतिक्रिया दी जा रही थी. दलित बुद्धिजीवियों ने कहा कि उन्हें बुलाने की आवश्यकता ही नहीं थी.
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