मुजफ्फरपुर : काठमांडू में अब रहने लायक नहीं है, न बिजली है और न ही पानी मिल रही है. वहां की सड़कों पर अव्यवस्था है. कुछ लोग सड़कों पर या पार्क में किसी तरह रह गुजर बसर कर रहे हैं. जबकि काठमांडू में बहुत कम पार्कहैं. बहुत से लोग सड़क किनारे मनबे के पास रह अपनी समय काट रहे हैं. बच्चों को खाना व दूध तक नहीं मिल पा रहा है. यह आपबीती काठमांडू से हावड़ा जा रहे राधा थौकी, सुदंरा थौकी, इंदिरा थौकी, तोपू, शेखर व देव पांडे और शिप्रा ने बयां की. यह सभी काठमांडू के ललितपुर के मूल निवासी हैं.
इनके पास अब कोई रास्ता नहीं बचा है कि वह काठमांडू में ही रहें. इसलिए अपने संबंधी के घर हावड़ा जा रहे हैं. जब हालात ठीक हो जायेंगे, तो वह काठमांडू लौट आयेंगे. घर व दुकान धवस्त हो चुके हैं. कुछ नहीं बचा, बस जान बची है. अब हालत यह हो गयी है कि मलबे के से दरुगध आने लगी है. कल रात में भारी बरसात हुई है. मैंने भी अपने परिवार के साथ रात घर के बाहर तंबू में गुजारी और हम सब भींग गये. काठमांडू के कुछ गांवों की हालत बहुत खराब है.
वहां घर पूरी तरह ध्वस्त हो गये हैं और लोगों को बिना किसी छत के रात गुजारनी पड़ रही है. ललितपुर में कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है. अबतक सेना नहीं पहुंच सकी है. पुलिस वाले भी नहीं दिखते हैं. जो लोग हैं, वह अपने ऊपर निर्भर हैं. वहां के जो अस्पताल हैं, पूरी तरह भर चुके हैं. सड़क के पास जो जख्मी लोग हैं, उनकी सिर्फ मरहम पट्टी की जा रही है और पारासिटोमोल दिया जा रहा है. किसी को एंटीबायीटिक दवाएं नहीं दी जा रही है. इसके कारण डर बन गया था कि कहीं महामारी तो नहीं फैल जायेगी. हमारा मोबाइल फोन काम नहीं कर रहा है.अपने संबंधी से बात नहीं हो पा रही है. रक्सौल पहुंचने के बाद हमारे परिचित से बात हुई. उन्होंने काठमांडू छोड़ कर आने की बात कही. हमारी मदद के लिए अपने घर बुलाया है.