रियल इस्टेट के पांच सौ करोड़ फंसे
पटना: पहले बिल्डिंग बाइलॉज और अब मास्टर प्लान के चक्कर में पटना शहर का विकास पूरी तरह से ठप है. इससे न सिर्फ आम लोगों के आशियाने का सपना टूट रहा है बल्कि रियल इस्टेट बाजार से जुड़े करीब 500 करोड़ रुपये भी फंस कर रह गया है. करीब ढ़ाई साल से नक्शा पास पर […]
पटना: पहले बिल्डिंग बाइलॉज और अब मास्टर प्लान के चक्कर में पटना शहर का विकास पूरी तरह से ठप है. इससे न सिर्फ आम लोगों के आशियाने का सपना टूट रहा है बल्कि रियल इस्टेट बाजार से जुड़े करीब 500 करोड़ रुपये भी फंस कर रह गया है. करीब ढ़ाई साल से नक्शा पास पर रोक के कारण पहले से ही बदहाल हाउसिंग सेक्टर और बदहाल हो गया है. इस दौरान न तो सरकार ने कोई नया प्रोजेक्ट लगाया और न ही प्राइवेट डेवलपर इसकी हिम्मत जुटा सके.
दूसरे निकायों में भी रोक
बिल्डरों की मानें तो न सिर्फ पटना नगर निगम बल्कि आस-पास के शहरी निकायों में भी नक्शा पास करने पर रोक लगी है. इसके पीछे मास्टर प्लान लागू नहीं होने का तर्क दिया जा रहा है. हालांकि यह मास्टर प्लान कब तक लागू होगा. इसको लेकर बोलने को कोई तैयार नहीं दिखता. बिल्डर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष मणिकांत की मानें तो पटना जिले के दूसरे नगर निकायों के साथ ही गया,मुजफ्फरपुर व भागलपुर जैसे शहरों में भी नक्शे पास होने पर रोक लगी है.
जांच प्रक्रिया भी धीमी
राजधानी में अब भी 1200 से अधिक भवन निगरानी जांच के दायरे में हैं. इस कारण निर्माण कार्य रुका हुआ है. इसकी मार न सिर्फ ग्राहकों बल्कि बिल्डरों पर भी पड़ रही है. बड़े बिल्डर तो फिर भी दूसरे राज्यों के प्रोजेक्ट में इनवेस्ट कर रहे हैं, लेकिन कोई छोटे बिल्डरों का तो पूरा प्रोजेक्ट ही इसमें रुका हुआ है. निर्माण में देर होने से उसकी लागत बढ़ती चली जा रही है, जिससे बिल्डर व ग्राहक दोनों कर्ज के बोझ तेल दब गये हैं. पिछले दो साल से चल रही निगरानीवाद प्रक्रिया में करीब 1200 से अधिक भवनों को चिह्न्ति कर नोटिस दिया गया है.
करीब 700 पर वाद भी दायर हुआ. इनमें अब तक मात्र 132 मामले में भी फैसला आ सका है. बिल्डरों का कहना है कि अगर सरकार और नगर निगम जांच को लेकर इतना ही तत्पर है तो अतिरिक्त कर्मियों को लगा कर जांच प्रक्रिया जल्द खत्म करे ताकि बेकसूर लोगों को राहत मिले और उनका प्रोजेक्ट शुरू हो सके.
नहीं हो रहा है शहर का विकास
नक्शा पास नहीं होने से शहर का विकास नहीं हो रहा है. रियल इस्टेट मार्केट बैठ गया है. इतने लंबे पीरियड तक नक्शे पर रोक लगाये जाने के पीछे कोई तर्क नहीं हो सकता. मास्टर प्लान भी आइ-वॉश है. इसके लागू होने के बाद फिर जोनल डेवपलमेंट प्लान की जरूरत होगी. सरकार चाहती, तो नक्शा मामले का निदान पहले भी हो सकता था. इसकी वजह से कई प्रोजेक्ट लंबे समय से बंद पड़े हैं. कई बिल्डरों ने तो यहां अपना ऑफिस तक बंद कर दिया है. आर्किटेक्ट लोगों के सामने भी भयवाह स्थिति है. सरकार को इसको लेकर गंभीरता से सोचना चाहिए.
मणिकांत, उपाध्यक्ष, बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया
सरकार का रेवेन्यू जेनरेशन पूरी तरह बंद
नक्शे पर रोक के कारण सरकार का रेवेन्यू जेनरेशन पूरी तरह बंद हो गया है. निर्माण क्षेत्र से करीब एक लाख मजदूर और करीब 300 उद्योग डायरेक्ट व इन डायरेक्ट रूप से जुड़े हुए हैं, जिनको लगातार नुकसान पहुंच रहा है. किसी भी आम आदमी का सपना होता है कि उसका शहर में अपना एक मकान हो, लेकिन छोटा-मोटा नक्शा भी पास नहीं होने से उनकी परेशानी बढ़ गयी है. बिल्डर भी तो भवन बना कर लोगों को ही देते हैं. भवन बनते तो लोगों को अधिक स्पेश मिलता. रेंट में कमी आती.
विष्णु कुमार चौधरी, उपाध्यक्ष, इंडियन इंस्टीच्युट ऑफ आर्किटेक्ट्स (बिहार-झारखंड)
नक्शे पर रोक का कोई औचित्य नहीं
नक्शे पर रोक का कोई औचित्य नहीं बनता. बिल्डिंग बाइलॉज लागू कर दिया है, तो फिर नक्शे पर रोक क्यों? नियम बनाया है तो उसको पालन कराने के सिस्टम बनाने की जिम्मेवारी भी सरकार की है. नक्शा नहीं पास होने से शहर के अंदर कंस्ट्रक्शन रुक गया है. ढाई साल से इस पर रोक लगी होने से रियल इस्टेट से जुड़ी इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं. स्टील, सीमेंट, प्लाइवुड, एल्यूमिनियम फिटिंग आदि उद्योगों की डिमांड कम होने से नुकसान पहुंच रहा है. कोई भी डिसिजन टाइम बाउंड में लिया जाना चाहिए. संजय गोयनका, पूर्व महासचिव, बीआइए