विलुप्त हुई डोली की परंपरा
पूर्व में दूल्हे राजा की शाही सवारी थी डोलीडोली की जगह अब इस्तेमाल हो रही लग्जरी कारसंवाददाता, कुर्था (अरवल)दूल्हे राजा की शान की सवारी थी डोली, जिसे कहार (किसी जाति विशेष नहीं, बल्कि डोली ढोनेवाले मजदूर को कहार कहा जाता था) अपने कंधे पर लाद कर दुल्हन के घर पहुंचाते थे. आज समय के साथ-साथ […]
पूर्व में दूल्हे राजा की शाही सवारी थी डोलीडोली की जगह अब इस्तेमाल हो रही लग्जरी कारसंवाददाता, कुर्था (अरवल)दूल्हे राजा की शान की सवारी थी डोली, जिसे कहार (किसी जाति विशेष नहीं, बल्कि डोली ढोनेवाले मजदूर को कहार कहा जाता था) अपने कंधे पर लाद कर दुल्हन के घर पहुंचाते थे. आज समय के साथ-साथ परंपराओं में भी काफी बदलाव आ गया है, नतीजा डोली की परंपरा ही विलुप्त हो गयी. इसकी जगह अब लग्जरी कारों ने ले ली है. अब लग्न के दिनों में लग्जरी कारों को फूलों से आकर्षक तरीके से सजाया जाता है, जिसमें दूल्हे राजा सवारी करते हैं. इसका असर कहारों पर भी पड़ा. समय की मार ने इनका धंधा ही समाप्त कर दिया, नतीजा ये लोग भी जीविकोपार्जन के लिए अन्य कामों में जुट गये. आज के बच्चों के लिए डोली की परंपरा किस्से-कहानियों की बातें रह गयी हैं. ‘चलो रे डोली उठावो कहार’ बच्चे जब इस गाने को सुनते हैं, तो उनके मन में एक जिज्ञासा पैदा होती है, और अपने अभिभावक से पूछ बैठते हैं, डोली व कहार क्या है. अभिभावक उसे बारीकी से समझाते हैं, लेकिन फिर भी उसके मन में डोली व कहार के विषय पर संशय बरकरार रहता है, क्योंकि उसने कभी कहीं इस तरह दूल्हे राजा को सवारी करते देखा ही नहीं. आधुनिकता की होड़ में यह परंपरा किताब के पन्नों में सिमटता जा रहा है.