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1934 की तरह आया भूकंप, तो मरेंगे दो लाख से ज्यादा
आज से करीब 81 साल पहले हिमालय क्षेत्र में 8.5 की तीव्रता वाला भूकंप आया था. उसका असर बिहार और नेपाल पर गंभीर रूप से पड़ा था. जानकारों का कहना है कि बिहार में उसी तीव्रता का भूकंप आता है, तो तबाही पहले से कई गुनी ज्यादा होगी. दो लाख लोगों का जीवन समाप्त हो […]
आज से करीब 81 साल पहले हिमालय क्षेत्र में 8.5 की तीव्रता वाला भूकंप आया था. उसका असर बिहार और नेपाल पर गंभीर रूप से पड़ा था. जानकारों का कहना है कि बिहार में उसी तीव्रता का भूकंप आता है, तो तबाही पहले से कई गुनी ज्यादा होगी. दो लाख लोगों का जीवन समाप्त हो सकता है. इस रिपोर्ट का मकसद लोगों में डर पैदा करना कतई नहीं है, बल्कि प्रभात खबर की कोशिश है कि लगातार आ रहे इस जलजले के प्रति लोगों का नजरिया बदले. वे ज्यादा सचेत हों.
अध्ययन रिपोर्ट में हुआ खुलासा, बेतरतीब निर्माण को रोकने का आ गया है समय
पटना : बिहार में भूकंप से होने वाले नुकसान के बारे में किये गये एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर राज्य में 1934 की तीव्रता जैसा भूकंप आ जाये, तो यहां दो लाख से ज्यादा लोगों की जान जा सकती है. यह अध्ययन रिपोर्ट तैयार की है आइआइटी रुड़की के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ आनंद एस आर्या ने. वर्ष 1934 में 15 जनवरी को 8.5 तीव्रता भूकंप आया था.
उस समय बिहार में 7153 और नेपाल में 8519 लोगों की मौत हुई थी. बिहार का मुंगेर और नेपाल का भटगांव शहर पूरी तरह से बरबाद हो गये थे. मोतिहारी, मुजफ्फरपुर और दरभंगा में भी बड़ी तबाही हुई थी. पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सहरसा, और पूर्णिया का एक बड़ा भू-भाग जमीन में धंस गया था. मुजफ्फरपुर में सबसे अधिक 2539 मौतें हुई थीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 1988 में 6.6 तीव्रता का भूकंप आया था.
1934 में आये भूकंप की शक्ति इससे 750 गुणा अधिक थी. रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है जिस तरह से जनसंख्या बढ़ी है और निर्माण हुआ है, उसमें अगर 1934 की तीव्रता जैसा भूकंप आता है, तो वह विनाशकारी होगा. नुकसान का आकलन 1931 और 2011 के जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है. बिहार में भूकंप के बारे में अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉ आनंद एस आर्या आइआइटी रुड़की के अर्थक्वेक इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर एमेरिटस हैं.
बिना सोचे-समङो निर्माण से बचें
आपने आपदा प्रबंधन प्राधिकार को नवंबर 2014 में रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें आकलन किया गया है कि 1934 की तरह भूकंप आया, तब कितना नुकसान होगा. अब जिस तरह से भूकंप आ रहे हैं, उसमें सरकार और समाज को कितनी तेजी से सुरक्षात्मक उपाय करने होंगे?
भूकंप आ रहे हैं और आगे भी आयेंगे क्योंकि यह इलाका भूकंप प्रभावित जोन में आता है. लेकिन, यह कब आयेगा, इसकी भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता है. जरूरत है, लोगों को जागरूक और समझदार होने की. बिना सोचे-समङो निर्माण से बचने की. हमने हिंदी में एक गाइडलाइन बनायी है, जिसमें बताया गया है कि भूकंप प्रभावित इलाके में मकान का निर्माण कैसे होना चाहिए.
इसमें मसाला बनाने, छड़ बांधने से लेकर ईंट जोड़ने तक के बारे में बताया गया है. इस गाइडलाइन को पढ़ने और समझने में किसी को 15 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगेगा. लोगों को यह समझना होगा.
भूकंपरोधी निर्माण में लागत मात्र पांच फीसदी ही बढ़ती है. लोग सिर्फ पांच प्रतिशत अधिक खर्च कर अपने आगे की जेनरेशन को एक भूकंपरोधी घर दे सकते हैं.
और सरकार कितनी तैयार है?
जहां तक सरकार की बात है, तो उन्हें मेरी यही सलाह होगी कि तीन-चार माले की बिल्डिंग के निर्माण की मॉनिटरिंग के लिए एक कमेटी बना दे. इसमें आíकटेक्ट, स्ट्रचरल इंजीनियर और एक म्युनिसिपल इंजीनिर हो. वे सर्टिफाइ करें कि बिल्डिंग का नक्शा से लेकर स्ट्रर तक सही है.
ज्यादा ऊंची इमारतों के लिए नगर विकास विभाग एक कमेटी बनाये और एक प्रश्नावली तैयार करे. इसमें ऊंची इमारतों से संबंधित हर सवाल का जवाब मांगा जाये.
पुरानी सरकारी या निजी इमारतों को भूकंपरोधी कैसे बनाया जा सकता है?
सिर्फ सरकारी ही नहीं, किसी भी पुरानी इमारत को भूकंपरोधी बनाया जा सकता है. सरकारी इमारतों को बनाने के लिए उनका नक्शा देखना जरूरी होता है. भवन निर्माण विभाग ने मुझसे हाइकोर्ट का भवन और सचिवालय भवन को भूकंपरोधी बनाने के संबंध में सलाह मांगी है. मैने उन्हें कहा है कि आप हमें इन भवनों का ड्राइंग दे दीजिए. उसी के आधार बताया जा सकता है कि इसको भूकंपरोधी कैसे बनाया जाये.
बाढ़ की तरह भूकंप के साथ सहजीवन की शुरुआत का समय
उत्तर बिहार के लोग हजारों साल के अपने अनुभव के आधार पर बाढ़ के साथ रहना सीख चुके हैं. ठीक उसी तरह अब हमें भूकंप के साथ रहना सीखना होगा. जापान का समाज भूकंप का प्राय: सामना करता है.
वहां के लोगों ने उसके साथ जीने की कला विकसित की है. हिमालय क्षेत्र में करीब 81 वर्ष पहले 1934 में बड़ा भूकंप आया था. वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी भी भूकंप प्रभावित इलाके में इतने लंबे समय तक भूकंप का नहीं आना बड़े भूकंप की चेतावनी है.
25 अप्रैल और उसके बाद आये भूकंप उसी की कड़ी हो सकते हैं. इसलिए अब समय भूकंप से डरने का नहीं, सचेत हो जाने का है. बिहार के आठ जिले भूकंप प्रभावित जोन-5 और 24 जिले जोन-4 में आते हैं. इसलिए इस इलाके में पहले भी धरती डोलती रही है और आगे भी डोलेगी.
भूकंप में नुकसान तीव्रता पर कम, जगह पर ज्यादा निर्भर
रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता मापी जा सकती है, नुकसान का आकलन नहीं किया जा सकता है. नुकसान का आकलन मरकली स्केल से किया जाता है, लेकिन यह वैज्ञानिक नहीं है, इसलिए इसकी चर्चा नहीं होती है.
भूकंप में नुकसान उसकी तीव्रता पर कम और जगह पर ज्यादा निर्भर करता है. मान लीजिए कि 1934 में जिस स्तर का भूकंप आया था, उस स्तर का भूकंप पटना सिटी में आये और एक ऐसे शहर में आये जो खुला हुआ हो,तो नुकसान कहां ज्यादा होगा? जाहिर है पटना सिटी में. 1988 में भी भूकंप आया था.
पटना और रांची हिल गया था, लेकिन गया को उसने बाइपास कर दिया था. इस प्राकृतिक आपदा की भविष्यवाणी करना एकदम असंभव है. सचेत और सतर्क रह कर ही नुकसान को कम किया जा सकता है.
लक्ष्मी निवास राम, पूर्व कुलपति पटना विवि
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